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झोपड़ियों में रहने वाले लोग अपनी हस्तकला से जयपुर को चमकाने का कर रहे काम, पैसों की कमी से नहीं मिल रहीं इस कार्य को रफ्तार

शहर के मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के निकट रहने वाले रहवासी अपनी हस्तकला से शहर के रेस्टोरेंट, कैफे आदी जगहों को चमकाने का काम कर रहे हैं। बांस की लकड़ी से बने यह बैम्बू रेस्टोरेंट और कैफे लोगों को अत्यधिक पंसद आ रहे हैं। लोग आज के समय में लकड़ी से बनी वस्तुओं को ज्यादा पसंद कर हैं।

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जयपुर। शहर के मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के निकट रहने वाले रहवासी अपनी हस्तकला से शहर के रेस्टोरेंट, कैफे आदी जगहों को चमकाने का काम कर रहे हैं। बांस की लकड़ी से बने यह बैम्बू रेस्टोरेंट और कैफे लोगों को अत्यधिक पंसद आ रहे हैं। लोग आज के समय में लकड़ी से बनी वस्तुओं को ज्यादा पसंद कर हैं। बैम्बू कारीगर सुरेश का कहना है कि बांस की लकड़ी से बनी वस्तुएं आज के समय में लोगों के बीच एक ट्रेंड बन चुकी हैं। आज भी लोग सीमेंट से बनी इमारतों को छोड़कर लकड़ी से बने रेस्तरां और कैफे में जाना पसंद करते हैं। बांस की लकड़ी का एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि बांस की लकड़ी पॉल्युशन फ्री वस्तु है जिससे किसी प्रकार का पॉल्युशन नहीं देखने को मिलता हैं। यदि सरकार हमारी मदद कर तो हम इस कार्य को एक अच्छी रफ्तार दे सकते हैं।

आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण कार्य में रफ्तार नहीं-
बैम्बू कारीगर सुरेश का कहना हैं कि हमारे पास कोई घर नहीं हैं। हम सरकारी जमीन पर ही झोपड़ी बनाकर रह रहे है। यदि सरकार हमारी इस कार्य में मदद करे तो हम अपने कार्य को नई ऊंचाइयो तक लेकर जा सकते हैं। हमारे इस कार्य को सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। वर्तमान में बांस की कीमत इतनी हो चुकी है कि जितना हम कमाते है, उतना तो बांस की लकड़ी खरीदने में ही पैसे खर्च हो जाते हैं। यदि यह लकड़ी हमें कम पैसों में मिल जाए तो हम अन्य सजावटी सामान भी बना सकते हैं।

बांस की लकड़ी है पॉल्युशन फ्री-
बांस की लकड़ी पॉल्युशन फ्री है, इससे किसी भी प्रकार का पॉल्युशन नहीं देखने को मिलता हैं। बांस से जब हम कोई वस्तु बनाते है और जब वस्तु बन जाने पर कुछ बांस के टुकड़े बचते भी हैं तो हम उनसे छोटे उत्पाद बनाने का काम करते हैं। इसके विपरीत प्लास्टिक की किसी भी वस्तु को बनाने में भारी मात्रा में वायू प्रदूषण होता है और वह हमारे वातावरण पर विपरीत असर डालता हैं।

एनजीओ से मिल रही है हमारे बच्चों को शिक्षा-
सुरेश की पत्नी कंवरी देवी का कहना है कि वर्तमान में किसी एनजीओ से मदद मिलने पर हमारे बच्चें पढ़ पा रहे हैं। पहले हम अपने बच्चों को बैम्बू कार्य ही करवाते थें। लेकिन अब हम अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर अफसर बनते देखना चाहते हैं। हमारे पास इतना पैसा नहीं कि हम अपने बच्चों को किसी स्कूल में पढ़ा सकें। एनजीओ से आने वाले शिक्षक ने भरोसा जताया है कि वह हमारे बच्चों का दाखिला एक बड़े प्राइवेट स्कूल में करवाएंगे।