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जेएलएफ में बोले फोटोग्राफर विक्की रॉय: अपने फील्ड में महारत हासिल है तो फिर अंग्रेजी आए या न आए, यह मायने नहीं रखता

Jaipur Literature Festival 2025: पेंटर बुलबुल शर्मा कहती हैं कि आर्ट एक ऐसा माध्यम है, जो बच्चों में सीखने का आत्मविश्वास पैदा करता है।

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जयपुर

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Alfiya Khan

Jan 31, 2025

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जयपुर। अंग्रेजी भाषा आना अच्छी बात है। कुछ जगहों पर यह जरूरी होता है लेकिन अगर आपको अपने फील्ड में महारत हासिल है तो फिर अंग्रेजी आए या न आए, यह मायने नहीं रखता। आपने देखा होगा कि कई भारतीय क्रिकेटर्स को अच्छी अंग्रेजी भाषा नहीं आती, लेकिन वे अपने फील्ड में महारथी हैं।

यह कहना है फोटोग्राफर विक्की रॉय का, जिन्होंने संघर्षपूर्ण जीवन के बावजूद अपनी स्किल के दम पर एक मुकाम बनाया और फोर्ब्स 30 अंडर 30 की लिस्ट में उनका नाम शामिल हुआ। वह कहते हैं कि एक बार विदेश में जब मैं फोटोग्राफी के लिए गया तो वहां अन्य देशों के बहुत-से फोटोग्राफर्स थे।

उनके साथ बातचीत करने में मुझे परेशानी थी क्योंकि मैं उस समय अंग्रेजी नहीं बोल पाता था लेकिन मैंने देखा कि वहां बहुत अच्छे-अच्छे फोटोग्राफर्स थे, जो जापान व अन्य देशों से थे, लेकिन उनकी भी अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं थी। स्किल आपके अंदर एक आत्मविश्वास पैदा करती है।

सेशन का संचालन करते हुए राजस्थान पत्रिका समूह के वाइस प्रेसीडेंट और कुलिश स्कूल के डायरेक्टर अरविंद कालिया ने किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा की वजह से बहुत बदलाव आया है। राजनीतिक परिवेश में परिवर्तन आ रहे हैं। तकनीकी माहौल बदल रहा है। डेमोग्राफिक शिफ्ट हो रहे हैं। आज बच्चे स्कूल जा रहे हैं, लेकिन आने वाले समय में स्कूल लोगों के घरों तक पहुंचेगे।

पैशन को कम उम्र से ही पहचानने दें

पेंटर और ऑथर बुलबुल शर्मा कहती हैं कि आर्ट एक ऐसा माध्यम है, जो बच्चों में सीखने का आत्मविश्वास पैदा करता है। अपने बच्चे को उसका पैशन कम उम्र से ही पहचानने दें। बच्चों को ड्रॉइंग करना पसंद आता है। क्योंकि यह उनके अंदर साहस पैदा करता है कि मैं यह कर सकता हूं।

आर्ट बहुत मोटिवेशन देती है। मैं भिलाई में पढ़ी। पढ़ने में ज्यादा अच्छी नहीं थी लेकिन मुझे पेंटिंग करना बेहद पसंद था। इसमें मेरे पेरेंट्स बहुत सपोर्टिव रहे। स्टूडेंट्स की वेलबीइंग के लिए यह बहुत जरूरी है कि उनके पास सपोर्ट ग्रुप हो। इसमें पेरेंट्स की बड़ी भूमिका होती है।

समझदारी के साथ एआइ का इस्तेमाल करें

शिक्षाविद और कुलिश स्कूल की प्राइमरी ईयर्स प्रोग्राम की कॉर्डिनेटर अंतरा नाइक का कहना है कि स्किल स्टूडेंट्स को अवसरों का मार्गदर्शन करने में मदद करती है। यह उन्हें नए अवसरों को पहचानने और उनका सही तरीके से उपयोग करने की क्षमता देती है। पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ बैठकर बात करनी चाहिए। वे किस दिशा में जाना चाहते हैं, यह जानने की कोशिश करनी चाहिए।

अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को बच्चों पर थोपने के बजाय वह क्या करना चाहते हैं, उन्हें खुद अपनी राह चुनने की स्वतंत्रता देनी चाहिए। एआइ स्टूडेंट्स की स्किल को खत्म कर रहा है, इस सवाल पर वह कहती हैं कि एआइ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसके साथ दोस्ती करें। यह आपको सीखना है कि तकनीक का इस्तेमाल कैसे करें।

समझदारी के साथ इसका प्रयोग करें। वहीं क्षेत्रीय भाषाएं लुप्त होने के सवाल पर वह कहती हैं कि कुलिश स्कूल में पहली कक्षा से संस्कृत विषय पढ़ाया जा रहा है। लिटरेसी वीक मनाया जाता है ताकि अपनी भाषा को रिवाइव किया जा सके। वहां विदेशी भाषाएं भी सिखाई जाती हैं। यह बच्चों के ऊपर है कि वे क्या चुन रहे हैं। मातृभाषा आना भी बेहद जरूरी है।

पहले टीचर से सवाल पूछने में डर लगता था

अंतरा बताती हैं कि पहले स्कूल में टीचर से सवाल पूछने पर भी डर लगता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब स्टूडेंट्स और टीचर्स के बीच संवाद बेहतर हुआ है।

बच्चों को आउट ऑफ द बॉक्स सोचने दें

पेंटर बुलबुल शर्मा का कहना है कि बच्चों को आउट ऑफ द बॉक्स सोचने दें। उन्हें वह आजादी दें कि अपनी रचनात्मकता को पहचान सकें। इस सेशन में शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए यह स्पष्ट किया गया कि केवल शैक्षिक ज्ञान नहीं, बल्कि समग्र विकास के लिए बच्चों को सही दिशा और समर्थन मिलना जरूरी है। 21वीं सदी में शिक्षा का लक्ष्य सिर्फ ज्ञान देना नहीं, बल्कि बच्चों को ऐसे कौशल और मानसिकता से सशक्त बनाना है, जो उन्हें आने वाली चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाए।

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