इसकी वजह से जोड़ों में सूजन और दर्द हो जाता है। ऑस्टियो आर्थराइटिस उम्र बढऩे, मोटापा, हॉर्मोन्स के अनियंत्रित हो जाने और बैठे रहने वाली जीवनशैली के कारण होता है। आमतौर पर घुटने, कूल्हे, पैर और रीढ़ इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार रूमेटॉयड आर्थराइटिस (आरए), आर्थराइटिस का एक अन्य प्रकार है, जोकि सबसे ज्यादा पाया जाता है। आरए एक ऑटोइम्यून डिजीज है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर पर हमला करना शुरू कर देती है, खासतौर से जोड़ों पर। यदि इसे नजरअंदाज किया जाता है और जांच नहीं की जाती है तो उसकी वजह से जोड़ों में सूजन और गंभीर क्षति हो सकती है। आरए के मरीजों की त्वचा पर गांठें बन जाती हैं, जिन्हें रूमेटॉयड नॉड्यूल्स कहा जाता है। अक्सर यह जोड़ों जैसे पोरों, कुहनी या ऐड़ी में होता है।
डॉक्टरों का कहना है कि कई बार रूमेटॉयड आर्थराइटिस को सोरियाटिक आर्थराइटिस (पीएसए) समझ लिया जाता है, यह आर्थराइटिस का एक अलग प्रकार है, जोकि भारत में काफी ज्यादा पाया जाता है। सोरियाटिक आर्थराइटिस एक ऐसी समस्या है जो सोरायसिस से जुड़ी है। यह इन्फ्लेमेटरी आर्थराइटिस का एक रूप है, जिसकी वजह से उंगलियों, पैर के अंगूठों, घुटनों और रीढ़ में सूजन हो जाती है। उसके साथ ही जोड़ों में दर्द और कड़ापन भी शामिल है। आमतौर पर यह सोरायसिस से पहले होता है और सोरायसिस से पीडि़त लोगों को कई बार सोरियाटिक आर्थराइटिस के गंभीर जोखिम का सामना करना पड़ता है।
शोध में यह बात सामने आई है कि एक चौथाई सोरायसिस मरीज सोरियाटिक आर्थराइटिस से पीडित पाए जाते हैं। फोर्टिस अस्पताल के डॉ. अमित शर्मा ने बताया कि पूरे माह में 700-750 मरीजों में से 15 से 20 मरीजों को सोरियाटिक आर्थराइटिस होता है। पीएसए वाले लोगों को मूल रोग की देरी से पहचान होने के कारण जोड़ों के स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त होने और मोटापे, हृदय रोग, मेटाबोलिक सिंड्रोम इत्यादि जैसी गंभीर बीमारियों हो सकती हैं। शुरुआती चरण में बायोलॉजिक जैसे उपचार विकल्प उपलब्ध कराने से इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।