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चुनावी घोड़े तो दौड़ा दिए, लेकिन बिना बल के कैसे जीतेंगे बाहुबली

locationजयपुरPublished: Jun 07, 2018 10:49:15 am

Submitted by:

santosh

प्रदेश में साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सत्ताधारी भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने ताकत तो झोंकनी शुरू कर दी है।

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चुनावी घोड़े तो दौड़ा दिए, लेकिन बिना बल के कैसे जीतेंगे बाहुबली

सुरेश व्यास /जयपुर। प्रदेश में साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सत्ताधारी भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने ताकत तो झोंकनी शुरू कर दी है, लेकिन ग्राउंड लेवल पर दोनों ही दलों की परेशानियां कम नहीं होती दिख रही।
एकजुटता के दावे के बावजूद कांग्रेस में पावर पोलिटिक्स चल रही है, वहीं पिछले करीब डेढ़ माह से बिना प्रदेशाध्यक्ष के चल रही भाजपा को बूथ स्तर की तैयारियों के लिए नए सिरे से हाथ-पैर मारने पड़ रहे हैं।
राजस्थान में कांग्रेस एंटी इंकमबेंसी की ओवर कॉन्फिडेंस में फंसी है तो भाजपा को समझ में नहीं आ रहा कि पिछले करीब साढ़े चार साल से उपेक्षित महसूस कर रहे कार्यकर्ताओं को कैसे सम्भाला जाए। फिर भी दोनों दलों के नेताओं ने इस साल के आखिर में होने वाले चुनावों के लिए घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए हैं।
गाउंड रिएलिटी दिखा रही आईना
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट अकेले ही ‘मेरा बूथ, मेरा गौरव’ अभियान में जूझ रहे हैं तो भाजपा की चुनावी जमीन में बुवाई करने के लिए अकेली मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जिले-जिले में घूम रही है, लेकिन दोनों ही नेताओं को पार्टी की ग्राउंड रिएलिटी आइना दिखा रही है।
कुछ और ही कहानी कहती है भीड़
भाजपा के सामने दिक्कत है कि कार्यकर्ताओं का मनोबल नजर नहीं आ रहा। सीएम के दौरे में भीड़ तो जुटती है,लेकिन भीड़ के चेहरे पढ़ते ही हकीकत सामने आ जाती है। मुख्यमंत्री ने हाल के दिनों में 50 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया है।
भाजपा के लगभग डेढ़ सौ मंडलों में पड़ने वाले इन क्षेत्रों की हकीकत ने राजे को हैरान ही किया है। पिछले दिनों जयपुर में हुई पार्टी की अहम बैठक में उन्हें कहना पड़ा कि सांसद-विधायक लोगों से मिलते ही नहीं हैं।
मंडलों के पार्टी नेताओं को सरकार की योजनाओं की जानकारी नहीं है। यह स्थिति पार्टी के लिए ठीक नहीं है। इधर मंत्रियों के जिलों के दौरों में कार्यकर्ता कह रहे हैं कि उनकी सुनवाई नहीं हो रही तो चुनाव में पार कैसे पड़ेगी।
कांग्रेस पर पावर पोलिटिक्स की मार
भाजपा की इसी स्थिति से कांग्रेस उत्साहित हो जाती है, लेकिन खुद उसकी जमीन भी पोली है। पार्टी में पर्दे के पीछे पावर पोलिटिक्स चल रही है। पार्टी ने बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने के लिए मेरा बूथ मेरा गौरव अभियान शुरू किया।
आलाकमान ने सभी प्रमुख नेताओं को इसमें शिरकत करने की हिदायत दी, लेकिन प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट अभियान और चारों सहप्रभारी ही इसमें जूझ रहे हैं। सूबे के बाकी बड़े नेता सम्भाग स्तरीय कार्यक्रमों में ही नजर आए हैं।
…तो कौन बनेगा मुख्यमंत्री
इस बीच, मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग भी पार्टी में उठने लगी है। इससे पावर पोलिटिक्स को और हवा मिली है। इधर पार्टी का कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में है। कांग्रेस में ही सवाल खड़ा हो रहा है कि पार्टी विधानसभा चुनाव जीत गई तो मुख्यमंत्री कौन होगा?
भाजपा को नहीं मिल रहा सेनापति
भाजपा के सामने हालांकि यह स्थिति नहीं है, लेकिन पिछले डेढ़ महीने से भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष नहीं होना चुनावी साल में पार्टी को भारी पड़ता दिख रहा है। प्रदेशाध्यक्ष की लड़ाई राज्य और केंद्र के नेताओं के बीच अहम की लड़ाई बनी हुई है और आज-कल, आज-कल करते हुए भी कोई फैसला नहीं हो पा रहा।
पार्टी ने आज से चुनावी चौपाल कार्यक्रम शुरू किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता मंडल स्तर पर चौपाल लगाकर सीधे मतदाता तक पहुंचने की कोशिश करेंगे। राज्य सरकार के कामकाज का फीडबैक लेंगे, लेकिन कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना भाजपा के लिए भी चुनौती से कम नहीं है।
बहरहाल, दोनों ही दलों के ये हालात विधानसभा चुनाव रोचक होने का संकेत दे रहे हैं। चुनावों में दोनों ही दलों से आना-जाना होना तय है। टिकटों पर तकरार भी होगी, लेकिन लाख टके का सवाल है कि बिना बल के कांग्रेस व भाजपा के बाहुबली अपनी नैय्या कैसे पार लगाएंगे।
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