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अपने गांव में रहकर देश -विदेश में राजस्थान का मान बढ़ा रहा है ये शख्श

पांचाल राजस्थान की संस्कृति और कला का भारत में ही बल्कि विदेशों में भी अनवरत तरीके से प्रतिनिधित्व करते हुए राजस्थान को गौरन्वान्वित कर रहे हैं।

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rajendra panchal


जब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, एनएसडी में प्रवेश के समय कलाकार से संस्थान से पास होकर उसका मकसद पूछा जाता है तो सभी कलाकार अपने प्रदेश में वापस जाकर अपनी लोक कला एवम संस्कृति के पुनरुत्थान इसके प्रचार प्रसार के लम्बे चौड़े वायदे करते है और संस्थान में प्रवेश पाने में सफल हो जाते हैं। तीन साल बाद उन अधिकांश प्रशिक्षित कलाकारो में से कुछ तो मुंबई जाने वाली पहली रेलगाड़ी में बैठ जाते है तो कुछ दिल्ली में ही रूककर अपनी जीविकोपार्जन में लग जाते है। सिर्फ इक्के दुक्के लोग ही दोबारा अपनी जमीन पर उस वादे को निभाने आते है जो उन्होंने एनएसडी में प्रवेश लेते वक्त किया था। उन्हीं कलाकारों में से एक है राजेन्द्र पांचाल। पांचाल राजस्थान की संस्कृति और कला का भारत में ही बल्कि विदेशों में भी अनवरत तरीके से प्रतिनिधित्व करते हुए राजस्थान को गौरन्वान्वित कर रहे हैं।

महानगरों की चकाचौंध से दूर राजस्थान के कोटा शहर के पास एक छोटा सा गाँव है 'रोटेदा'। इसी गांव में अपना 'पैराफिन थिएटर ग्रुप 'चला रहे राजस्थान संगीत नाट्य अकादमी ,युवा पुरुस्कार से सम्मानित राजेंद्र पांचाल राजस्थान के अभिनय और निर्देशन में एक ऐसा नाम है जो राजस्थान की कला जगत का परिचायक बन चुका है। मूलत: कोटा निवासी पांचाल अभी तक 'सुकवि सूर्यमल्ल की', 'चिड़ी चमेली', ‘फूल केसुला फूल', 'अभिज्ञान शकुन्तलम', जैसे कई नाटकों का निर्देशन कर चुके हैं। वहीं नाटक 'माय फादर माय मॉम' ,'व्हेन आई वाज ए चाइल्ड' का उन्होंने लेखन और निर्देशन किया है। इसी साल उन्हें महेंद्र एक्सलेंसी अवार्ड इन थिएटर, मेटा-2017 में नाटक 'सुकवि सूर्यमल्ल की' लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरुस्कार से सम्मानित किया गया हैं। पांचाल भारत रंग महोत्सव सहित देश भर के तमाम थिएटर फेस्टिवल्स में अपने नाटकों का मंचन करने के अलावा वो रोमानिया, स्लोवाकिया, चीन और बोस्निया देशो में बतौर कलाकार काम कर चुके हैं। पांचाल अभी अपने 'पैराफिन थिएटर ग्रुप' के माध्यम से लगातार नाट्य जगत में राजस्थान के ध्वजावाहक बने हुए हैं। पांचाल जयपुर में होने वाले चौथे अंतरराष्ट्रीय रंग राजस्थान महोत्सव में मराठी नाटक 'अंजली शर्मा' उर्फ 'अंजी' का मंचन करेंगे मराठी लेखक विजय तेंदुल्कर द्वारा लिखित इस नाटक का मंचन पहली बार राजस्थानी में होगा । कोटा में चल रही इस नाटक की तैयारियों के बीच पांचाल से हुई बात-चीत के अंश:


प्रश्न : नाट्यकला से आपका पहला परिचय कैसे हुआ?

पांचाल : कोटा में ही सबसे पहले एक नाट्य कार्यशाला में भाग लिया तब ऐसी सुखद अनुभूति हुई कि फिर कभी पीछे देखने की जरुरत नहीं हुई। घर में कला का माहौल था उसी वातावरण में पला- बढ़ा था तो इससे जुड़ने में मुझे और मजा आया। फिर कुछ दिनों बाद 'स्पिक मैके' संस्था से जुड़ा और वहीं से मैं जाने माने रंगकर्मी हबीब तनवीर के साथ जुड़ा। उनके मार्गदर्शन में बहुत कुछ सीखने को मिला। वहाँ जो मेरे नज़रिये में बदलाव, जो आत्मउत्थान हुआ वो जीवन बदल देने वाला था। उनके साथ रहते हुए मैंने तय कर लिया था कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं करना हैं। स्नातक करने के बाद राजस्थान विश्वविधालय से नाट्यकला में डिप्लोमा किया। मगर जिस तरह का काम सीखना चाहता था वो नहीं सीख पाया। अंततः मैंने एनएसडी की ओर रुख किया।


प्रश्न : हबीब तनवीर के साथ काम करते हुए आपका अनुभव कैसा रहा ?

पांचाल : हबीब तनवीर जी के साथ रहने से मुझे अपने पूर्वाग्रहों से निजात पाने में सफलता मिली। उनके सानिध्य में उस मानसिकता से मुक्ति मिली जो इंसान को जात , वर्ण, धरम ,समुदाय ,गरीब -अमीर में विभाजित कर देती हैं। उन्हीं की प्रेरणा से मैंने कैदियों अनाथों तबकों निःशक्तजनो ,वरिष्ठ नागरिको ,तथा समाज के पतित तबकों के साथ काम किया। हमारे प्रान्त की सहरिया और अन्य पिछड़ी जातियों के साथ काम करने से जो आत्म संतुष्टि मिली है वो अवर्णनीय हैं।


प्रश्न : पैराफिन ग्रुप क्या हैं ? इसके माध्यम से आप क्या सन्देश प्रसारित करना चाहते है?

पांचाल : पैराफिन ग्रुप सिर्फ एक थियेटर संस्था नहीं हैं ये एक जीवन पद्धति है। कलाकार बनने से पहले यहां पहले एक इंसान बनना सिखाया जाता है कला तो बहुत बाद में आती हैं। यहाँ एक निश्चित दिनचर्या होती है और आपको उसी के अनुसार चलना पड़ता है और इस दिनचर्या में अभिनय से लेकर शारीरिक श्रम तक सब कुछ शामिल रहता है गुरु और शिष्य की परम्परा का ग्रुप में बहुत ज़्यादा महत्व हैं। साथ ही यह बताना कि थियेटर सिर्फ अभिनय तक ही सीमित नहीं है। इसमें नृत्य कला और संगीत कला का भी उतनी ही प्रमुख स्थान हैं जितना अभिनय का हैं। ये एक खाने की रेसिपी जैसा है जिसमे सभी मसालो का सही अनुपात में इस्तेमाल होना ज़रूरी है। अगर एक भी मसाला कम या ज़्यादा होता हैं तो खाने का ज़ायका बिगड़ जाता हैं। मैं थिएटर से प्यार करता हुँ इस का प्रचार-प्रसार करना मेरा मुख्य उद्देश्य है। मेरे नाटकों का प्राथमिक उद्देश्य समाज सेवा या कल्चर का प्रचार करने का नहीं हैं। ना ही किसी तरह का सन्देश देने का है लेकिन कोई सकारात्मक सन्देश जाता है तो अच्छी बात है।


प्रश्न : आज के नये कलाकार जो तुरंत सब कुछ पा लेना चाहते हैं, उन नए कलाकारों को क्या सलाह देना चाहेंगे ?

पांचाल : आप भले किसी क्षेत्र को चुनो। चाहे वो सिनेमा, थियेटर ,म्यूजिक, पेंटिंग, एडिटिंग, फोटोग्राफी ,एक्टिंग ,डांसिंग कुछ भी हो। सबसे पहले ये तय करो कि आपके लिए सफलता के मायने क्या हैं? अगर आपने यह तय कर लिया तो आप आने वाली आधी समस्याओ को ख़त्म कर चुके हैं। उसके बाद बिना किसी भटकाव के अपने लक्ष्य से नज़र नहीं हटाते हुए जिस जूनून और लगन के साथ अपना सफर शुरू करते है उसी प्रबलता के साथ तब तक अपनी कला पर काम करते रहे । जब तक की आपका लक्ष्य पूरा न हो जाये।दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं हैं जिसमे अड़चने नहीं आती हैं मगर आप बिना विचलित हुए अपनी यात्रा ज़ारी रखें।


प्रश्न : आपने स्वेच्छा से सरकारी अनुदान के लिए मना कर दिया। इसकी क्या वजह थी ?

पांचाल : ये एक व्यक्तिगत निर्णय था । मुझे लगा कि मेरे काम में अनुदान का हस्तक्षेप ज़्यादा होने लगा तो मैंने उससे दूर होना ही मुनासिब समझा । क्योंकि जब मैंने अपना काम शुरू किया था तब अनुदान के बारे में नहीं सोचा था । उस वक्त सिर्फ अपनी कला को ज़ेहन में रखकर शुरुआत की थी। मुझे अनुदान मिला मेरे काम को देखकर ,अब अगर वही अनुदान मेरे काम में बाधा डालें तो मैं ये स्वीकार नहीं कर सकता। मैं भी ये नहीं कहता की अनुदान मत लो। अनुदान तब तक लो जब तक वो आपकी रचनात्मकता में वो रुकावट पैदा नहीं करे। आपको कई बार ऐसे फैसले लेने पड़ते है जहाँ रचनात्मकता और अनुदान में से एक को चुनना पड़ता हैं।


प्रश्न : आपके अनुसार वो 5 रंगकर्मी जो आपकी विरासत को आगे बढ़ा सकते है ?

पांचाल : मेरी कोई विरासत नहीं है। मैं खुद अभी सीख रहा हुँ । जो भी काम करता हुँ उसी को अपना अंतिम कार्य मानते हुए पूरे दिल से करता हुँ और उसी में आननद लेता हुँ।


प्रश्न : आपका सपना क्या हैं? राजस्थानी कल्चर को कितनी ऊचाइयों पर ले जाना चाहते हैं ?

पांचाल : देखिये मेरा कोई ख़ास सपना नहीं हैं बस चाहता हुँ कि जिस तरह अच्छी थिएटर तालीम के लिए मुझे बिना वजह कई साल भटकना पड़ा था उस तरह हमारे प्रतिभाशाली कलाकारों को नहीं भटकना पड़े। उन्हें एक अच्छा मंच प्रदान करना चाहता हुँ। नाटक करते वक्त मेरा ध्यान उसके प्रारूप और उसके कंटेंट पर होता हैं।नया और अच्छा काम करते रहना चाहता हुँ । जहाँ तक कल्चर की बात हैं मुझे नहीं लगता कि मैं राजस्थान के कल्चर को नयी उचाईयों पर ले जाने के लिए सही व्यक्ति हुँ। हमारा कल्चर पहले से ही महान है और सारे विश्व में विख्यात हैं। वो पहले से ही बहुत ऊंचाइयों पर हैं।


प्रश्न :आपको लगता है मरते हुए राजस्थानी कल्चर को ग्लोरिफ़ाई करने के लिए स्पोंसरशिप की जरुरत है ?

पांचाल : देखिए थोड़े शब्दों में कहूँ तो मुझे लगता है कि कल्चर मर नहीं, बल्कि बदल रहा हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम है जो कल था वो कल नहीं होगा। एक वक्त के बाद चीज़े धीरे -धीरे अदृश्य हो जाती है उनका रंग फीका पड़ने लगता है कल्चर बदल रहा हैं किसकी वजह से ? हमारे खुद की वजह से, क्यूंकि हम खुद बदल रहे है।


प्रश्न : हाल ही में आपको मेटा में सर्श्रेष्ठ अभिनेता और 2013 में 'राजस्थान संगीत नाट्य अकादमी ,युवा पुरुस्कार' से नवाज़ा गया। आप दोनों समारोहों से नदारद रहे।ऐसे समारोहों से दूरी रखने का कोई विशेष कारण ?

पांचाल : इसमें दूरी बनाये रखने के पीछे कोई विशेष कारण नहीं हैं ,पर समारोह और साक्षात्कार की जगह मैं अपने काम को प्राथमिकता देना पसंद करता हूँ। जैसे मैंने पहले कहा कि पुरुस्कार, अनुदान जैसी चीजों के लिए मैं इस क्षेत्र में नहीं आया। मुझे अपनी कला से प्रेम था और उसी की वजह से में यहाँ हुँ और उसी को ज़ारी रखना चाहता हुँ।