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Rangमंच : कितने दूर… कितने पास, जयपुर थिएटर से विशाल

एनएसडी से ग्रेजुएट विशाल विजय के दिल में बचपन से रचा-बसा है रंगमंच, हिंदी फिल्मों में भी कर चुके हैं काम

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जयपुर

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Aryan Sharma

Jan 05, 2023

Rangमंच : कितने दूर... कितने पास, जयपुर थिएटर से विशाल

विशाल विजय

आर्यन शर्मा @ जयपुर. जयपुर रंगमंच की खूबसूरत बात यह है कि यहां से शुरुआत करने वाले कई कलाकार भले ही कॅरियर या कामकाज के सिलसिले में अब पिंकसिटी से बाहर रहते हैं, लेकिन उनके दिल में जयपुर रंगमंच बसा हुआ है। यही वजह है कि उन्हें जब भी और जिस तरह भी मौका मिलता है, वे जयपुर रंगमंच में अपनी 'भूमिका' निभाने से नहीं चूकते। ऐसे ही एक कलाकार हैं विशाल विजय। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) से 2003 में ग्रेजुएट विशाल फिलहाल प्रयागराज में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर थिएटर एंड फिल्म में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। पिछले साल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी जॉइन करने से पहले विशाल जयपुर में थिएटर डायरेक्शन में पूरी तरह से सक्रिय थे। इतना ही नहीं, वह थिएटर की वर्कशॉप भी लेते थे। अब भले ही वह जॉब के सिलसिले में जयपुर से दूर हैं, लेकिन जयपुर रंगमंच से उनका जुड़ाव बरकरार है।
दरअसल, जयपुर रंगमंच के उनके साथी जयपुर में अपने स्तर पर रिहर्सल कर नाटक तैयार करते हैं, वहीं प्रयागराज में रह रहे विशाल अपनी संस्था फोर्थ वॉल के तहत निर्देशन और नाटक के मंचन से जुड़ी व्यवस्था में सपोर्ट करते हैं। जब भी मौका मिलता है तो जयपुर आकर अपनी टीम के साथ रिहर्सल और नाटक की अन्य व्यवस्थाओं में जुट जाते हैं। नाटक के मंचन से कुछ दिन पहले रिहर्सल के फाइनल दौर में भी साथ होते हैं। कुछ इस तरह विशाल के निर्देशन में उनकी टीम नाटक 'शकुंतला की अंगूठी' और '12 एंग्री मैन' के जयपुर में शो कर चुकी है।

पांच ऐसे नाटक देखे, जिन्होंने सोचने को किया मजबूर
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विशाल का बचपन से ही रंगमंच से एक मजबूत नाता रहा है। उनके पिता विजय माथुर एनएसडी से ग्रेजुएट थे और राजस्थान यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ ड्रामा में प्रोफेसर थे। लिहाजा, घर में नाटकों का रीडिंग सेशन और रिहर्सल होता रहता था। घर में थिएटर का माहौल होने से 7-8 साल की उम्र से ही विशाल की रुचि भी नाटकों में बढ़ने लगी। स्कूल के एनुअल डे फंक्शन और इंटर हाउस एक्टिविटीज के कल्चरल इवेंट्स में वह हिस्सा लेने लगे। फिर इंटर स्कूल इवेंट्स में परफॉर्म किया। जब कॉमर्स कॉलेज में पढ़ रहे थे, तब उन्होंने अपने पिता के मार्गदर्शन में तीन-चार नाटकों में अभिनय किया। इस दरमियान विशाल ने तीन ऐसे नाटक भी देखे, जिन्हें देखकर वह काफी प्रभावित हुए। उन्हें लगा कि ये कलाकार स्टेज पर कुछ ऐसा कर रहे हैं, जो मुझे नहीं आता है। ये कलात्मकता के किसी ऐसे आयाम पर हैं, जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता हूं। इनमें हबीब तनवीर का नाटक 'देख रहे हैं नैन', रतन थियम का 'उत्तर प्रियदर्शी' और बी. वी. कारंत निर्देशित 'बाबूजी' शामिल था। विशाल का कहना है कि इन फनकारों के नाटकों में फोक का स्ट्रॉन्ग एलीमेंट रहा है। कथा वस्तु यूनीक रही है। साथ ही इम्प्रोवाइज किए हुए होते थे। विशाल कहते हैं, 'इसके बाद मैंने दो नाटक एक्टिंग ओरिएंटेड देखे। इनमें एक था नादिरा जहीर बब्बर निर्देशित 'दयाशंकर की डायरी'। इसमें आशीष विद्यार्थी की जबरदस्त सोलो परफॉर्मेंस थी। दूसरा था रोहिणी हट्टंगडी का सोलो-एक्ट प्ले 'अपराजिता'। इन नाटकों को देखकर मैंने अपने मन को टटोला तो यह महसूस हुआ कि मैं नाटकों में अभिनय तो कर रहा हूं, पर काम में क्राफ्ट नहीं दिख रहा है। दिमाग में एक क्वेश्चन मार्क आ गया था। खैर, बीकॉम के फाइनल ईयर में मैंने एमबीए में एडमिशन के लिए कैट की तैयारी शुरू कर दी थी। इसके साथ ही नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का फॉर्म भी भर दिया, क्योंकि मेरे टीचर और वरिष्ठ लोगों ने यह सलाह भी दी थी कि दिल परफॉर्मिंग आर्ट में है तो उसमें एक्सप्लोर करो। और फिर, मेरा एनएसडी में एडमिशन हो गया।'

एनएसडी में मिला वाचिक अभिनय का अहम सबक
बकौल विशाल, एनएसडी में शुरुआत आसान नहीं थी। मुझे घर से बाहर दूसरे शहर में एडजस्ट होने में समय लगा। यहां रामगोपाल बजाज एक्टिंग के प्रोफेसर थे। पंचानन पाठक, उत्तरा बाओकर और आलोक चटर्जी विजिटिंग फैकल्टी थे। यहां मुझे वाचिक अभिनय का अहम सबक मिला। जब एनएसडी में था, उसी दौरान फिल्म 'लक्ष्य' के लिए ऑडिशन हो रहे थे। मैंने ऑडिशन दिया और कैप्टन साकेत अहलूवालिया के रोल के लिए सलेक्ट हो गया। इस बीच, साल 2002 में मैंने अपनी नाट्य संस्था फोर्थ वॉल रजिस्टर करा ली थी। 2004 में मुंबई शिफ्ट हो गया। 'लक्ष्य' के बाद मेरे पास कोई काम नहीं था। मैंने कई पायलट शूट किए। सस्पेंस, थ्रिलर और क्राइम टीवी शो के एक-एक एपिसोड में छोटा-मोटा काम किया। फिर दोस्तों के साथ वर्कशॉप लेना शुरू कर दिया। 'लक्ष्य' के बाद फिल्म 'हल्ला बोल' और 'चटगांव' में काम किया। मैं 2004 से 2010 तक मुंबई रहा। इसके बाद जयपुर लौट आया।

जयपुर लौटे तो शुरू किया प्रोफेशनल थिएटर
जयपुर वापसी के बाद विशाल ने अभिनय दर्पण वर्कशॉप शुरू की। इसमें वह युवाओं को अभिनय के डिफरेंट पहलू बताते हैं। साथ ही वाचिक अभिनय पर खास फोकस करते हैं। यही नहीं, जयपुर में वह प्रोफेशनल थिएटर भी करने लगे और अब तक कई नाटकों का निर्देशन कर चुके हैं। इस बीच, दूरदर्शन के लिए टेलीफिल्म 'सावित्री' और 'नीली झील' में एक्टिंग भी की। विशाल कहते हैं, 'अब मैं प्रयागराज शिफ्ट हो गया हूं, इसके बावजूद जयपुर में फोर्थ वॉल संस्था के तहत नाटक इसलिए कर पा रहा हूं, क्योंकि जयपुर रंगमंच के मेरे साथी सेल्फ मोटिवेटेड हैं और डायरेक्टर की प्रजेंस के बिना नाटक तैयार करने में सक्षम हैं। मेरा सपोर्ट व्यवस्था वाला ज्यादा रहता है। मसलन, ऑडिटोरियम बुक करना, रिहर्सल हॉल बुक करना आदि। हमारी टीम जयपुर में 'शकुंतला की अंगूठी' और '12 एंग्री मैन' के बाद अब महेश एलकुंचवार लिखित नाटक 'प्रतिबिम्ब' के मंचन की तैयारी कर रही है।' यही नहीं, विशाल ने प्रयागराज में भी नाटक के मंचन के लिए 'पहल' की है। प्रयागराज के स्थानीय कलाकारों के साथ उन्होंने नाटक 'दूल्हा बिकाऊ' का रीडिंग सेशन शुरू कर दिया है। विशाल का मानना है कि किसी भी नाटक के रिपीट शो से एक्टर बेहतर होता जाता है। एक्टर की निरंतरता बढ़ेगी तो उसे पहचान भी मिलेगी।

इन फिल्मों में किया अभिनय

























फिल्मरिलीज डेटडायरेक्टर
लक्ष्य18 जून 2004फरहान अख्तर
हल्ला बोल11 जनवरी 2008राजकुमार संतोषी
चटगांव12 अक्टूबर 2012बेदव्रत पेन

विशाल निर्देशित नाटक

कुछ प्रमुख नाटक, जिनमें किया अभिनय