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बच्चों को मौत से बचाने के लिए JK loan अस्पताल के डॉक्टर्स का रिसर्च,पहली बार संक्रमण से बचाने के लिए गर्भनाल से बहने वाले खून से होगी नवजात की जांच

नवजातों को सेप्सिस से होने वाली मौतों से बचाने की तैयारी,बच्चों को मिलेगी दर्द से निजात,घटेगी मृत्युदर

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Research of doctors of JK loan hospital to save lakhs of childrendeath

Research of doctors of JK loan hospital to save lakhs of childrendeath

जेके लोन अस्पताल के डॉक्टर्स का रिसर्च अब छोटे बच्चों को दर्द से निजात दिलाएगा। साथ ही उन्हें मौत के मुंह में जाने से भी बचाएगा। अब नवजातों को संक्रमण से बचाने के लिए उनकी नसों से खून का सैंपल लेकर जांच की आवश्यकत्ता नहीं होगी।

बल्कि बच्चे के दुनिया में आते ही उसके गर्भनाल को काटते समय जो खून बहता है, उसके ब्लड के सैंपल से नवजात की जांच की जाएगी।

जिससे बच्चे में होने वाली संक्रमित बीमारियों को पता लग सकें। शिुश रोग विशेषज्ञ डॉक्टर्स का मानना है कि भारत में सबसे ज्यादा नवजात बच्चों की मौत सेप्सिस से हो जाती है।

इसका कारण देरी से बीमारी का पता लगने से बच्चे के शरीर में संक्रमण अधिक फैल जाने से वह मौत के मुंह में चले जाते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। नवजात के पैदा होने के 24 घंटे के भीतर उसकी बीमारी का गर्भनाल के खून से होने वाली जांच से सटीक पता लग सकेगा।

जयपुर के डॉक्टर्स ने हर साल भारत में सेप्सिस से होने वाली लाखों बच्चों की मौतों को रोकने का प्रयास करने की दिशा में यह महत्वपूर्ण और सटीक रिसर्च कर दिखाया हैं। जिसके परिणाम भी अब तक शत प्रतिशत आए हैं।

जयपुर जेके लोन अस्पताल के सीनियर प्रोफेसर डॉ.रामबाबू शर्मा,एसो.प्रोफेसर डॉ.धनराज बागड़ी,असिस्टेंड प्रोफेसर डॉ.नीलम सिंह और सीनियर रेजीडेंट डॉ.चिरंजी लाल ने पहली बार रिसर्च कर बच्चों में पैदा होने के साथ होने वाली संक्रमित बीमारियों का सटीक पता लगाने के लिए यह रिसर्च किया हैं।

रिसर्च के सटीक परिणाम सामने आने के बाद इन शिशु रोग विशेषज्ञों का यह रिसर्च राष्ट्रीय स्तर के रिसर्च आर्टिकल जनरल ऑफ नियोनेटोलॉजी में छपा हैं। जो नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम से जुड़ा हैं।

ऐसे में कल्चर रिपोर्ट से सटीक संक्रमण रोग की पहचान होगी यह भी शत प्रतिशत तय नहीं हैं। जब तक कल्चर रिपोर्ट आएगी तब तक संक्रमण बच्चे के फैल चुका होता है। जांच रिपोर्ट आने से पहले डॉक्टर अंदाजे से एंटीबायॉटिक देता है जिससे की रोग का सही निदान नहीं हो पाता है।

अब नए रिसर्च से नाल के खून से जांच होने पर 24 घंटे में रोग का पता लगा पाएगा और बच्चे की जान बचाने में हम सफल हो पाएंगे। उसे जो संक्रमण है वहीं बीमारी की दवा दे पाएंगे और बच्चे को चार दिन तक एनआइसीयू में रखने की आवश्यकत्ता भी नहीं होगी। क्योकि संक्रमण रोग का पता लगने पर अंदाजे से दवा देने की आवश्यकत्ता नहीं होगी। बच्चा मां के आंचल से चिपक कर ब्रेस्ट फिडिंग करता हुआ दवा ले सकेगा।

नवजात सेप्सिस विश्व स्तर पर नवजात मृत्यु का एक महत्वपूर्ण कारण है। हर साल करीब 10 लाख बच्चे संक्रमण बीमारियों के कारण जान गंवा देते है। सेप्सिस जिसे रक्त विषाक्तता या सिस्टेमिक इन्फ़्लमेटरी रिस्पॉंस सिंड्रोम भी कहते हैं।

यह एक प्राणघातक स्थिति है जो तब होती है जब किसी भी संक्रमण के विरुद्ध शरीर की प्रतिक्रिया अपने स्वयं के ऊतकों और अंगों को क्षति पहुंचाने लगती है। इस स्थिति से आघात (शॉक) लगता है, शरीर के कई अंग खराब हो जाते हैं, और मृत्यु हो जाती है, विशेष रूप से यह तब होता है जब इसे शुरूआत में पहचाना ही नहीं जा सकें।लेकिन अब इसे तुरंत पहचनानकर इलाज हो सकेगा।

सीनियर प्रोफेसर डॉ.रामबाबू शर्मा के अनुसार नए रिसर्च से पीसीटी मार्कर से जल्द से जल्द नवजात शिशुओं में जल्द से जल्द इंफेक्शन की जांच नाल से की जाकर जल्द से जल्द सटीक इलाज किया जा सकेगा। जिससे नवजातों की मृत्युदर में कमी आएगी। शिशु एनआइसीयू की बजाए अपनी मां के पास ब्रेस्ट फिडिंग करते हुए इलाज करवा सकेगा।