
मकर के साथ-साथ कुंभ राशि के देवता भी शनि ही है, शनि कुंभ राशि में पूरे 30 साल बाद लौटे हैं और अब पूरे ढाई साल इस राशि में रहेंगे। इसका असर लगभग सभी राशियों पर अलग-अलग पड़ने वाला है।
शनि ग्रह के गोचर के बारे में कुछ बुनियादी बातें जान जान लेना जरूरी है। शनि बहुत धीरे चलते हैं, ऐसे में हर ढाई साल में एक बार एक राशि से दूसरी राशि में जाते हैं, तीस वर्षों में बारह घरों के पूर्ण चक्र को पूरा करते हैं। अभी का गोचर मकर से कुंभ में है। शनि के कुंभ में आने से धनु राशि साढ़ेसाती (Shani Sade Sati) यानी दीर्घ कल्याणी से मुक्त हो गई है जबकि मकर पर साढ़ेसाती का अंतिम ढैया यानी ढाई साल, कुंभ पर दूसरा ढैया और मीन पर प्रथम ढैया शुरू हो गया है। इसके साथ ही कर्क और वृश्चिक राशि पर लघुकल्याणी ढैया प्रारंभ हुई जबकि मिथुन व तुला राशि लघुकल्याणी ढैया से मुक्त हो गई। जब शनि गोचर में जन्मकालीन राशि से द्वादश, चन्द्र लग्न व द्वितीय भाव में स्थित होता है तब इसे शनि की 'साढ़ेसाती' या 'दीर्घ कल्याणी' कहा जाता है। शनि जब गोचर में जन्मकालीन राशि से चतुर्थ व अष्टम भाव में स्थित होता है तब इसे शनि की 'ढैय्या' या 'लघु कल्याणी' कहा जाता है। इसकी अवधि ढाई वर्ष की होती है।
यह तो कर ही लीजिए।
शनि के राशि परिवर्तन के अलग-अलग समूहों के लिए व्यापक प्रभाव अलग-अलग होंगे, विशिष्ट प्रभाव व्यक्ति पर निर्भर करेगा। ज्योतिष अध्ययनकर्ता गिरीश पुरोहित के अनुसार शनि न्याय के देवता हैं, ऐसे में न्याय ही करेंगे यानी आपको फायदा भी हो सकता है और नुकसान भी, घबराने की बजाय शनि की दशा के दौरान गणेश, हनुमान और शिव से प्रार्थना करने से व्यक्ति को शक्ति प्राप्त करने और कठिन परिस्थितियों से बेहतर तरीके से निपटने में मदद मिल सकती है। हर शनिवार शनि चालीसा का जाप करें और नजदीकी मंदिर में भगवान की पूजा करने का प्रयास करें। पवित्र नामों का जाप करते हुए हनुमान को पीपल के पत्ते चढ़ाएं और शनि की मूर्ति को तिल का तेल चढ़ाएं। कौवा शनि का वाहन है, पक्षी के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करें और उसे थोड़ा पानी और उबले हुए चावल चढ़ाएं। भक्तों और जरूरतमंदों को तिल आधारित भोजन दान करने से इस चरण के दौरान आशीर्वाद और वांछित लाभ प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
मंत्र जाप से मिलेगा और फायदा
प्राणायाम, लंबी सैर, उपवास और जप से मन में शाति बनाए रखें। शनिदेव को प्रसन्न करने के कुछ मंत्र है।
– ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
-ॐ शं शनैश्चराय नमः।
-ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
-ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
– ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।
Updated on:
18 Jan 2023 09:46 am
Published on:
18 Jan 2023 09:42 am
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