एक स्टडी का दावा है कि यह बहुत अमानवीय काम है लेकिन सफाई कर्मचारी हाथ से मैला ढोना जारी रखे हुए हैं। नियोक्ता न केवल उनका शोषण करते हैं बल्कि कई बार बहुत क्रूर भी हो जाते हैं। विशेष रूप से महिला श्रमिक परिवार को बनाए रखने और अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए ऐसा करना जारी रखती हैं, इस उम्मीद में कि यह संकट उनके साथ ही खत्म हो जाए और उनके बच्चों पर इसकी छाया न पड़े।
एक स्टडी का दावा है कि यह बहुत अमानवीय काम है लेकिन सफाई कर्मचारी हाथ से मैला ढोना जारी रखे हुए हैं क्योंकि नियोक्ता न केवल उनका शोषण करते हैं बल्कि कई बार बहुत क्रूर भी हो जाते हैं। विशेष रूप से महिला श्रमिक परिवार को बनाए रखने और अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए ऐसा करना जारी रखती हैं, इस उम्मीद में कि यह संकट उनके साथ ही खत्म हो जाए और उनके बच्चों पर इसकी छाया न पड़े।
58 हजार से ज्यादा लोग इस पेशे में
2013 और 2018 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के हवाले से लोकसभा में एक जवाब में पिछले साल बताया गया था कि भारत में 58,000 से अधिक लोग मैला ढोने में लगे हुए हैं। कार्यकर्ताओं का दावा है कि यह संख्या कम आंकी गई है और 2013 के कानून में इस तरह के काम पर रोक लगाने के बावजूद यह प्रथा प्रचलित है। 2022 में पेश किए गए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच सालों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347 लोगों की मौत हुई है, इनमें से 40 फीसदी मौतें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में हुई हैं। राजस्थान में इस अवधि में 13 मौतें हुईं।
इस प्रदेश में एनजीओ ने की स्टडी
तमिलनाडु में सोशल अवेयरनेस सोसाइटी फॉर यूथ (SASY) द्वारा 'मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड रिहैबिलिटेशन (PEMSR) 2013 एक्ट के कार्यान्वयन की स्थिति' पर एक स्टडी रिपोर्ट में राज्य के सफाई कर्मचारियों के बीच लिए गए साक्षात्कारों में कुछ चौंकाने वाले तथ्य मिले हैं। दलित मानवाधिकार संगठन एसएएसवाई ने वर्ष 2021-22 में तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में मैला ढोने, सीवर टैंक से होने वाली मौतों, सफाई कर्मचारियों के खिलाफ जाति आधारित भेदभाव की घटनाओं और संबंधित घटनाओं से संबंधित 21 मामलों का अध्ययन किया। रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश मामले ठीक से दर्ज नहीं किए गए थे और अगर सोशल मीडिया पर यह घटनाएं वायरल नहीं होती तो यह मामले प्रकाश में ही नहीं आए होते।
निजी कंपनियां कर रही मनमानी
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि जब एक निजी कंपनी में ऐसी घटना होती है, तो वे पीड़ितों को उनके खिलाफ मामला दर्ज करने से रोकने के लिए तुरंत कुछ पैसे देते हैं। ज्यादातर मामले तभी सामने आते हैं जब सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है। उत्पीड़ित समुदायों के कई लोग गरीबी के कारण व्यवसाय में हैं और विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में मानव और पशु अपशिष्ट को संभालने में शामिल हैं। मजदूरों से बेहद खतरनाक तरीके से काम करवाया जाता है। पर्याप्त सुरक्षात्मक गियर और तकनीकी सहायता नहीं है और वे इसे मैन्युअल रूप से करना जारी रखते हैं। रिपोर्ट में प्रमुख शहरों में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए मशीनों की खरीद के लिए सिफारिशें की गई हैं। अध्ययन में मैला ढोने वालों की ऐसी मौतों को रोकने के लिए बायो टॉयलेट की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है, उनके पुनर्वास के लिए धन आवंटन में वृद्धि की अनुशंसा है।
अदालत में नहीं गया कोई मामला
तमिलनाडु के सिर्फ 15 मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई थी और उनमें से केवल छह मामलों को ही पीईएमएसआर अधिनियम के तहत दर्ज किया गया था। पीओए (एससी/एसटी) अधिनियम 2016 के तहत आठ मामले दर्ज किए गए थे। 15 मामलों में से केवल नौ मामलों में 15 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया था। सात मामलों में कथित तौर पर अपराधियों की धमकियों के कारण शिकायतें नहीं दी गईं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से किसी भी मामले में कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया गया था, और इसलिए कोई मामला अदालत में नहीं आया।
कानून का नहीं होता पूरी तरह पालन
हाथ से मैला उठाने का निषेध, हाथ से मैला ढोने वालों के नियोजन का निषेध और उनका पुनर्वास (पीईएमएसआर) अधिनियम, 2013 के तहत एक प्रतिबंधित प्रथा है। यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति द्वारा मानव मल को उसके निपटान तक मैन्युअल रूप से साफ करने, ले जाने, निपटाने या किसी भी तरीके से संभालने पर प्रतिबंध लगाता है।
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