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नेताजी की विचारधारा की बात करें, मूर्ति लगाना दिखावा – गहलोत

subhash chandra bose jayanti सीएम ने बोस की जयंती पर वर्चुअल कार्यक्रम में लगाया भाजपा-आरएसएस पर निशाना

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नेताजी की विचारधारा की बात करें, मूर्ति लगाना दिखावा - गहलोत

नेताजी की विचारधारा की बात करें, मूर्ति लगाना दिखावा - गहलोत

जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर रविवार को आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम में भाजपा और आरएसएस पर निशाना साधा। गहलोत ने कहा कि भाजपा-आरएसएस इतिहास को तोड़ना मरोड़ना जानते हैं। इन्होंने अमर जवान ज्योति हटा दी, ये फैसले इसलिए हैं कि पिछली उपलब्धियों को समाप्त कैसे करें। उन्होंने कहा कि नेताजी की मूर्ति लगाना तो दिखावा है, वे उनकी विचारधारा पर बात करें। बोस की विचारधारा वही थी जो कांग्रेस की रही है, लोकतंत्र में भाईचारा, समाजवाद, धर्मनिर्पेक्षता। ये लोग कहते हैं कि 70 साल में देश में कुछ नहीं हुआ, देश जो कुछ भी बना है, वह 7 साल में बना है। गहलोत ने कहा कि इन लोगों के ऊपर
मुझे बड़ा तरस आता है। लेकिन आज भय, हिंसा और तनाव का वातावरण है, मन की बात कोई नहीं कर सकता। भाजपा-आरएसएस के लोग अपराध बोध से ग्रस्त हैं। आजादी में इनका कोई योगदान नहीं है। धर्म-जाति के आधार पर राजनीति करते हैं। इस अवसर पर शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने भी सम्बोधित किया।

गोडसे की मूर्ति लगाने व पूजा करने लगे

गहलोत ने कहा कि भाजपा-आरएसएस के लोगों ने कभी महात्मा गांधी को स्वीकार नहीं किया, अब भले ही गांधी की बातें करते हैं। ये लोग नाथूराम गोडसे की मूर्तियां लगाने लग गए और पूजा करने लगे हैं। इन्हें क्या हक के देश और उसके युवाओं को गुमराह करने का।

आरएसएस मुख्यालय पर तिरंगा नहीं लगाते

मुख्यमंत्री ने कहा कि नेहरू-इंदिरा को जय हिंद बोलते हुए देखा और हर कांग्रेस नेता जय हिंद बोलता है। मन में गर्व की अनुभूति होती है। लेकिन आरएसएस वाले क्या बोलते हैं? ये तिरंगा झंडा नहीं लगते अपने नागपुर स्थित मुख्यालय पर। ये लोग तिरंगे झंडे को स्वीकार नहीं करते थे, अब जाकर मानने लग गए।

लोकतंत्र में टॉलिरेंस पॉवर चाहिए, लेकिन...

गहलोत ने कहा कि लोकतंत्र में सबसे अधिक टॉलिरेंस पॉवर चाहिए। आलोचना करने वालों को भी ध्यान से सुनें। आज असहमति व्यक्त करने वाले देशद्रोही बन जाते हैं। भाजपा-आरएसस के लोग किस्से कहानियां कहते हैं कि गांधी-नेहरू से बोस-वल्लभभाई पटेल विचार नहीं मिलते थे। ये नहीं बताते कि नेहरू हमेशा बोस के यहां रुकते थे, उनके लगातार बातें करते थे और दोनों एक दूसरे की सुनते भी थे। उनके बीच विचारों का मतभेद था, लेकिन मनभेद कभी नहीं रहा। नेहरू जब जेल में थे, तो बोस ने कमला नेहरू को जर्मनी ले जाकर उनका इलाज करवाया। राष्ट्रपिता तक की उपाधि बोस ने ही दी थी। विचार अलग, रास्ते अलग थे, लेकिन उद्देश्य एक ही था।