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मीठी नींद में सो गया कड़वी बातें करने वाला एक संत

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tarun sagar maharaj

अमित शर्मा

'लड़ लेना, झगड़ लेना, पर बात करना बंद मत करना। बात बंद करने पर सुलह के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं।' कड़वे प्रवचन के दौरान अक्सर तरुण सागरजी ये बात कहा करते थे। वो कहते थे कि मैं तुमसे मीठी-मीठी बातें नहीं करूंगा, बल्कि शब्दों के कोड़े मारूंगा। आज जब तरुण सागर जी नहीं रहे, उनकी कही, उनकी लिखी हर बात याद आ रही है। मध्यप्रदेश के छोटे से गांव से निकला बालक पवन कब संन्यासी हो गया, कब शुल्लक, कब मुनि, पता ही नहीं चला।

हर कीर्तिमान, उम्र से पहले। तरीबन 9-10 साल पहले उनकी तबीयेत काफी बिगड़ी थी, तब वो दक्षिण में चातुर्मास कर रहे थे। तब विदेश इलाज के लिए ले जाया जाना था पर दिगम्बर जैन संत हवाई यात्रा नहीं करते। बाद में देसी इलाज से तबीयत में सुधार आया। तरुण सागरजी ने दो बार जयपुर में चातुर्मास किया है। पहली बार अखबारों की सुर्खियां बनीं थी- 'छोटी पड़ गई बड़ी चौपड़'। उन्हें सुनने वाले सिर्फ जैन नहीं होते थे, सभी धर्मों के लोग होते थे। वो वॉइस मॉड्यूलेशन के महारथी थे। प्रवचन में कभी तेज-कठोर, तो कभी एकदम मृदुभाषी हो जाते थे।

उनके प्रवचन का यही अंदाज उन्हें औरों से अलग बनाता था। यही कारण है कि मुनि होते हुए भी उनखी ख्याति आचार्यों से कम न थी। 12 साल पहले कर्नाटक के श्रवणबेलगाोला में रिपोर्टिंग के दौरान मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई। महामस्तकाभिषेक में ढाई सौ से ज्यादा संत मौजूद थे, पर वो सबसे अलग। जैन संत पैदल ही विहार करते हैं। बहुत बीमार होने पर बस पालकी तक का सहारा लिया जा सकता है।

बारिश के वक्त चातुर्मास होता है, तब तकरीबन 4 महीने एक जगह रहते हैं। तरुण सागरजी के प्रवचनों को कड़वे प्रवचन के नाम से जाना जाता रहा। इस पर उनकी किताबें भी आईं और वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाए गए। सबसे लंबी पुस्तक, सबसे छोटी किताब। उनकी कड़वीं बातें सिर्फ आम श्रद्धालुओं के लिए नहीं थी, राजनेताओं को भी घेरा करते थे।

उनका कहना था कि सबसे खतरनाक लोग विधानसभाओं और लोकसभाओं में हैं, इसलिए वहां संतों का जाना और प्रवचन करना बेहद जरूरी है। गुरु पूर्णिमा पर देश दुनिया से उनके भक्त उनके पास पहुंचते थे। उनकी खूबी थी वो पढ़ते बहुत थे। इसी कारण उनके प्रवचनों में शेक्सपीयर का उदाहरण भी होता था और मुल्ला नसुरुद्दीन का। उन्होंने देश के सैनिकों के बीच जाकर भी प्रवचन किया था। ग्राम गुहंची से निकला पवन, तरुणसागर बन महावीर की वाणी को मंदिरों से निकाल आम जन तक लाने का अपना काम पूरा कर चुका।

अब उनकी कड़वी बातें याद रखने का वक्त है, ताकि जिंदगी में मिठास बनी रहे. चलते-चलते उन्हीं के कड़वे प्रवचनों में से मौत का साक्षात्कार कराती कुछ पंक्तियां-


''तुम्हारी वजह से जीते जी किसी की आंखों में आंसू आए तो यह सबसे बड़ा पाप है। लोग मरने के बाद तुम्हारे लिए रोए, यह सबसे बड़ा पुण्य है। इसीलिए जिंदगी में ऐसे काम करो कि, मरने के बाद तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए किसी और को प्रार्थना नहीं करनी पड़े। क्योंकि दूसरों के द्वारा की गई प्रार्थना किसी काम की नहीं है।''