किसी जमाने में जिस मंदिर में महाकवि बिहारीजी दोहे लिखते थे, आज वही मंदिर अपनी दुर्दश पर आंसु बहा रहा है। इतना ही नहीं इस मंदिर का नाम ही कवि के नाम पर रख दिया गया था।
पत्थरों पर उत्कृष्ट कारीगरी के चलते मंदिर का शिखर पर्यटकों को दूर से ही आकर्षित करता है। आमेर में स्थापित प्राचीन मुगल एवं राजपूत स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना बिहारी जी का मंदिर सरकार की अनदेखी केचलते अब अपनी पहचान खोता जा रहा है।