फिर क्यों न सामने आए मी टू
जयपुरPublished: Oct 19, 2018 02:17:04 am
तुरन्त सुननी चाहिए शिकायत मगर…
जयपुर. गजल सम्राट मरहूम जगजीत सिंह की गायी गजल का मतला है-‘मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन। आवाजों के बाजारों में खामोशी पहचाने कौन।Ó देशभर में बवाल खड़ा कर चुके ‘मी-टूÓ के बीच राज्य में महिलाओं की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। कार्यस्थलों पर उनके साथ होने वाली यौन हिंसा या अभद्रता को लेकर कानून तो बना दिया गया लेकिन उसकी पालना नहीं हो रही है। कानूनन हर सरकारी-गैर सरकारी दफ्तर में आन्तरिक शिकायत कमेटियां बनाना जरूरी है लेकिन राज्य में लाखों दफ्तरों के बीच सिर्फ 1450 कमेटियां बनी हैं। इनमें से भी ज्यादातर कागजों में या निष्क्रिय ही हैं। यही कारण है कि सुनवाई की पुख्ता व्यवस्था नहीं होने के कारण महिलाएं मौका और हौसला मिलने पर पीड़ा जताने आगे आती हैं।
गौरतलब है कि कार्यस्थलों पर महिलाओं से यौन हिंसा के खिलाफ केंद्र सरकार ने वर्ष 2013 में संसद में कानून पास किया था। महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीडऩ (प्रतिषेध एवं निवारण) के नाम से लागू इस कानून के तहत कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन हिंसा, अनचाहा स्पर्श, गलत सामग्री दिखाना आदि कानूनन अपराध है। इस कानून के तहत सरकारी व निजी कम्पनियों या दफ्तरों सभी में आन्तरिक शिकायत कमेटियां बनाना अनिवार्य है। कमेटी की मुखिया उस विभाग की सीनियर महिला अधिकारी ही होनी चाहिए। ताकि संबंधित उपक्रम में काम करने वाली महिलाएं कमेटी में अपनी शिकायत रख सकें।
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कागजी कानून : पालना की शर्मनाक स्थिति
– 05 साल हो गए कानून लागू हुए, मगर राज्य में केवल 1450 कमेटियां बन पाई हैं
– 33 स्थानीय (लोकल) कमेटियां जिला स्तर पर बनी हुई हैं इनमें, बाकी सरकारी विभागों या निजी कम्पनियों में बनाई गई हैं
– 01 नहीं बल्कि ज्यादातर कमेटियां निष्क्रिय या कागजों में हैं
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इसीलिए नतीजा निराशाजनक
– 44 शिकायतें ही दर्ज हो पाई हैं 1450 आन्तरिक शिकायत कमेटियों के समक्ष
– 38 शिकायतें स्थानीय कमेटियों व 6 शिकायतें आंतरिक कमेटियों में आईं इनमें से
– 38 में से 34 व 6 में से 5 शिकायतों का हो चुका है निस्तारण
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दो प्रकार की होती हैं शिकायत कमेटियां
संबंधित कानून के तहत 2 प्रकार की कमेटियां बनाई जाती हैं। पहली आंतरिक कमेटी, दूसरी स्थानीय कमेटी।
1. आंतरिक कमेटी (आइसी) : जिस सरकारी या निजी उपक्रम में कर्मचारियों की संख्या 10 या इससे अधिक हो, उनमें आंतरिक कमेटी या आंतरिक शिकायत कमेटी बनाने का नियम है। इसमें चेयरपर्सन उस विभाग या कम्पनी की सबसे सीनियर महिला अधिकारी होनी चाहिए। एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता को शामिल करना भी जरूरी है। कमेटी में कम से कम 4 सदस्य आवश्यक हैं, जिनमें 50 फीसदी सदस्य महिलाएं होनी चाहिए।
2. स्थानीय कमेटी (एलसी) : जिन विभागों या कम्पनियों में कर्मचारियों की संख्या 10 से कम हो तथा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों व कार्मिकों के लिए जिला स्तर पर स्थानीय कमेटी या स्थानीय शिकायत कमेटी बनाई जाती है। जिला स्तरीय कमेटी जिला कलक्टर बनाते हैं। यह भी कम से कम 4 सदस्यीय होनी चाहिए। जिला कलक्टर इसमें किसी महिला को चेयरपर्सन बना सकते हैं। साथ ही महिला बाल विकास विभाग के कार्यक्रम अधिकारी को शामिल किया जाता है।
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मजबूत मंच नहीं, इसलिए ‘मी-टूÓ
– शिकायत कमेटियां संबंधित विभाग या कम्पनियां अपने स्तर पर बनाती हैं
– कमेटी बनी या नहीं, उसमें कौन-कौन शामिल हैं, शिकायतों का निस्तारण ठीक से हो रहा है या नहीं, इसकी मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं है
– एक्ट में भी राज्य स्तर पर मॉनिटरिंग का कोई प्रावधान नहीं है
– महिला कर्मचारी आंतरिक कमेटी के निर्णय से असंतुष्ट हो तो आगे अपील की व्यवस्था भी नहीं है। महिला को आखिर कोर्ट या ट्रिब्यूनल का ही सहारा लेना पड़ता है