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जिले में हर खेत से मिट्टी का नमूना लेकर प्रयोगशाला में इसकी जांच करवाने की तैयारी चल रही है। मिट्टी जांच रिपोर्ट के आधार पर कृषि अधिकारी किसानों को उन्नत पैदावार लेने की सलाह देंगे। साथ ही ग्राम पंचायत स्तर पर प्रशिक्षण शिविर लगाकर हर किसान को जैविक खेती के लिए प्रेरित किया जाएगा। मिट्टी की सेहत जांचने को जिले में तीन नई प्रयोगशाला खोलने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। पीलीबंगा, नोहर व भादरा में प्रयोगशाला के लिए करीब 60 लाख का बजट मंजूर होने के बाद निर्माण कार्य पूरा हो गया है। कृषि अधिकारी अब जांच संबंधी उपकरणों की खरीद सहित अन्य प्रक्रिया पूरी करने में जुटे हैं। नमूने जांचने का ठेका कोलकाता की एक कंपनी को ठेका दिया गया है। फरवरी माह में ठेका देने के बाद संबंधित कंपनी को 45 दिवस के भीतर सैंपलिंग का काम शुरू करने के लिए पाबंद किया गया है।
उम्मीद है कि अप्रेल के दूसरे सप्ताह तक तीनों नए लैब का संचालन शुरू कर दिया जाएगा। इसके बाद इन क्षेत्रों के किसानों को मिट्टी के नमूनों की जांच के लिए जिला मुख्यालय पर नहीं आना पड़ेगा।
अभी यह स्थिति
वर्तमान में जिला मुख्यालय पर एकमात्र मिट्टी के नमूने जांचने की लैब है। इसमें पूरे जिले से सैंपलिंग करके जांच की जाती है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) पैटर्न पर खुलने जा रही तीन नई मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं में मिट्टी के नमूने जांचने की एवज में संबंधित फर्म को प्रति सैंपल के हिसाब से भुगतान किया जाएगा। तीन वर्ष में जिले के सभी चकों में मिट्टी परीक्षण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
कितने कार्ड बनेंगे
वर्तमान में जिला मुख्यालय पर फतेहगढ़ मोड़ के नजदीक संचालित मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में औसतन हर वर्ष 10 से 15 हजार नमूने जांचने का काम होता है। वर्ष 2013-14 में 11 हजार, वर्ष 2014-15 में 12 हजार नमूनों की जांच की जा चुकी है। योजना के तहत जिले में तीन वर्षों में पौने दो लाख व पूरे प्रदेश में 70 लाख मृदा कार्ड बनाने की योजना है। मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला हनुमानगढ़ के प्रभारी गुरसेवक सिंह तूड़ ने बताया कि अब नोहर, भादरा व पीलीबंगा में भी नए लैब का संचालन होने के बाद किसानों को राहत मिलेगी।
कार्ड में यह सब
मिट्टी के नमूने जांचने के बाद इसका रिकॉर्ड तैयार होगा। सॉयल हैल्थ कार्ड में संबंधित खेत का संपूर्ण रिकॉर्ड दर्ज किया जाता है। मिट्टी का पीएच मान कितना है, विद्युत चालकता, नाइट्रोजन, कार्बन, पोटाश व सूक्ष्म तत्वों की स्थिति क्या है। इसकी पूरी जानकारी कार्ड में दर्ज रहेगी। जिस खेत में जितनी खाद की जरूरत है, उसी हिसाब से सरकार रासायनिक खाद का आवंटन करेगी। इससे रासायनिक खाद की खपत कम होने की संभावना है। वर्तमान में जिले में रासायनिक खाद का उपयोग बहुत अधिक हो रहा है। इसके कारण मिट्टी में नाइट्रोजन व फास्फोरस का अनुपात बिगड़ता जा रहा है। कृषि अधिकारी इस बिगड़ते अनुपात से भविष्य में अन्न उत्पादन की क्षमता प्रभावित होने की आशंका जता रहे हैं।
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