
अभिषेक श्रीवास्तव
बांसवाड़ा. Rajasthan Assembly Election 2023 : कुशलगढ़ से बांसवाड़ा पहुंचा तो रात के नौ बज चुके थे। इसलिए होटल में विश्राम के बाद अगले दिन अलसुबह ही शहर भ्रमण की तैयारी की। सिटी सेंटर से करीब 18 किलोमीटर दूर माही बजाज सागर बांध स्थित है। यहां जाते समय मन में उसकी सुंदरता की अनगिनत तस्वीरें उभर चुकी थीं, जो वहां पहुंचते ही धूमिल हो गईं। सीना ताने बांध खड़ा था। रास्ते में न तो कोई साइनबोर्ड था और न ही कोई ऐसा आकर्षण जो पर्यटकों को अपनी ओर खींच सके। जिस बांध की चर्चा इस चुनावी यात्रा में तकरीबन हर विधानसभा में थी, वह खुद बदहाल था। जो बांध क्षेत्र पर्यटन के लिए मॉडल बन सकता था, उसे ही सर्जरी की जरूरत महसूस हुई। बांध के पास कार को पार्क करने के बाद 215 सीढिय़ां चढ़ मैं ऊपरी हिस्से पर पहुंचा। वहां गिनती के दो लोग थे। एक श्रमिक और दूसरा सुरक्षाकर्मी। पूछने पर पता चला कि माही से अभी बांसवाड़ा शहर और आस-पास की लगभग एक दर्जन ग्राम पंचायतों को पानी की आपूर्ति हो रही है। कुछ क्षेत्रों के लिए पाइपलाइन बिछाई जा रही है। बरसात के दिनों में माही गुजरात की भी प्यास बुझाता है।
मक्का खूब...मंडी नहीं
जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर आगे बढ़ते ही मैं घाटोल बाजार पहुंच गया। सड़क किनारे एक रेस्टोरेंट संचालक नरेंद्र गामोर ने बताया कि घाटोल की बड़ी समस्या सिंगल लेन है। यहां बाइपास की वर्षों से मांग हो रही है। रेस्टोरेंट से थोड़ा आगे सड़क किनारे ग्रामीणों का समूह बैठा था। ये पास के गांव जामुड़ी के रहने वाले थे। हालचाल पूछने पर रावजी डामोर का गुस्सा फूट पड़ा। कहा, हालत यह हैं कि नहर से जो पानी सप्लाई होता है, वह आधे गांव को सिंचित करता है। मक्के की पैदावार अच्छी होती है, लेकिन बाजार में कीमत नहीं मिलती। मंडी न होने से व्यापारियों को मक्का 18 रुपए किलो की दर से बेचनी पड़ती है। यही व्यापारी गुजरात के बाजार में इसी को ऊंची कीमत पर बेचते हैं।
माही बन सकता पर्यटन का बड़ा नक्षत्र
दरअसल, माही का जिक्र यहां इसलिए कि जिस होटल में ठहरा था, उसके संचालक ने बताया कि माही पर्यटन के मानचित्र में बड़ा नक्षत्र बन सकता है। सरकार की योजना थी कि मेवाड़-वागड़ टूरिस्ट सर्किट में यह शामिल हो। लेकिन यह योजना कागजों में ही सिमट कर रह गई। पास में ही एक दुकान पर बैठे प्रदीप मीणा ने बताया कि माही में इतना पानी है कि बांसवाड़ा के साथ ही आस-पास के जिलों की भी प्यास बुझा सकता है। नहरों के जाल के माध्यम से दूरस्थ इलाकों में खेती-बाड़ी को बढ़ावा देकर पलायन की समस्या कम की जा सकती है। माही की चर्चा के बीच ही वहां मौजूद एक अन्य युवक सवालिए लहजे से मुझसे ही पूछ बैठा कि बांसवाड़ा में ट्रेन कब चलेगी। जब तक रेल नहीं आएगी, बड़े उद्योग कैसे लगेंगे। कई वर्षों से सिर्फ बातों में ही रेलवे स्टेशन बनता है और ट्रेनें चलती हैं।
पूर्व के अनुभव कर रहे स्वाद खराब
दरअसल, टीएसपी क्षेत्र बांसवाड़ा में योजनाएं तो बहुत आईं, लेकिन वे धरातल पर आकार नहीं ले सकीं। संभाग बनाने की घोषणा ने जरूर लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने का काम किया है। फिर भी पूर्व के अनुभव कहीं न कहीं स्वाद खराब कर रहे हैं। जनजातीय और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिले में स्वास्थ्य के लिए आज भी गुजरात पर निर्भरता है।
Updated on:
02 May 2023 08:34 am
Published on:
02 May 2023 08:14 am
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