-शहरों के ज्यादातर चौराहों की डिजाइन इस तरह की गई है कि वहां से वाहन तेजी से निकल सके।
-बड़े शहरों में 72 प्रतिशत से ज्यादा सड़क पर फुटपाथ ही नहीं है और जहां हैं वहां भी 77 प्रतिशत हिस्सा आसानी से गुजरने लायक नहीं है। सड़क और फुटपाथ पर ही पार्किंग की छूट दे रखी है। ऐसे हालात में सड़क दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही है।
-शहर में सार्वजनिक परिवहन का हिस्सा केवल 13.8 प्रतिशत ही है। इससे लोगों के निजी वाहनों की संख्या का उपयोग करने का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।
-बड़े शहरों में ज्यादातर सड़क हिस्से में फुटपाथ नहीं है और जहां हैं वहां अधिकतर गुजरने लायक नहीं है। सड़क और फुटपाथ पर ही पार्किंग हो रही है।
-कई शहरों में सड़क की तुलना में फुटपाथ की चौड़ाई बढ़ाई गई है। इसी पर कुछ हिस्सा साइकिल ट्रेक के लिए छोड़ा गया। नतीजा, राहगीर और साइकिल चलाने वालों की संख्या बढ़ गई। बेतरतीब चलने वाले वाहनों की स्पीड में कमी आई।
-शहरों के ज्यादातर इलाकों से सार्वजनिक परिवहन सेवा की कनेक्टिविटी होगी तो निजी वाहनों की संख्या घटेगी। अरबन एण्ड रीजनल डवलपमेंट प्लान फॉर्मूलेशन-इंप्लीमेंटेशन (यूआरडीपीएफआई) की गाइडलाइन के अनुसार परिवहन सेवा में इसकी 50 फीसदी हिस्सेदारी होनी चाहिए।
-सड़क पर राहगीरों का हिस्सा 16.06 प्रतिशत
-साइकिल सवारी का ग्राफ 6.01 प्रतिशत ही रह गया
-बस और मिनी बस 18.49 प्रतिशत है
-कार, टैक्सी की सुविधा का हिस्सा 18.71 प्रतिशत है
-दोपहिया वाहन का 31.70 प्रतिशत है
-ऑटो रिक्शा 8.61 फीसदी हिस्सा है
-मेट्रो की 0.42 प्रतिशत सुविधा मिल रही है
(शहरी इलाकों का है)
ट्रेफिक लाइट फ्री जंक्शन की चिंता में भूले राहगीर… जयपुर: ट्रेफिक लाइट फ्री जंक्शन के लिए जयपुर शहर में करीब 700 करोड़ की लागत से काम का प्लान। इसमें रामबाग सर्किल, जेडीए सर्किल, ओटीएस चौराहा, जवाहर सर्किल, बी—2 बायपास, चौमूं सर्किल, लक्ष्मीमंदिर तिराहा पर अण्डरपास, एलीवेटेड रोड या ओवरब्रिज बनाने का प्रस्ताव। प्रारंभिक स्थिति में इससे सड़कें वाहन फ्रेंडली तो होगी, लेकिन राहगीरों के लिए ज्यादा कुछ नहीं।
2. कोटा : शहर को ट्रेफिक लाइट फ्री बनाने के लिए करोड़ों रुपए के काम। शुरुआत में रेलवे स्टेशन से लेकर आनंदपुरा तक के एरिया को चिन्हित किया गया। यहां भी करोड़ों रुपए की लागत से काम।
यातायात-परिवहन स्टडी से जुड़ी रिपोर्ट में राजस्थान के कई बड़े शहरों की चिंताजनक स्थिति है। 4123 किलोमीटर लम्बाई में हुए सर्वे में सामने आया है कि बदहाल फुटपाथ के कारण राहगीरों को सड़क पर वाहनों के बीच गुजरना पड़ रहा है, जिससे दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही है। हर साल औसतन 1600 से ज्यादा सड़क दुर्घटनाओं के मामले सामने आ रहे हैं।
केन्द्र की जिम्मेदारी: आवासन एवं शहरी विकास मंत्रालय और सड़क परिवहन मंत्रालय एक्सपर्ट….
शहरों में कॉम्पेक्ट डवलपमेंट की जरूरत है। इससे कम लागत में बेहतर विकास हो सकता है। यह राहगीरों के लिए सुरक्षित राह पर भी लागू होता है। सड़कों को वाहन फ्रेंडली बनाने की सोच को हतोत्साहित करना ही होगा। यह तभी संभव है जब सभी सम्बन्धित एजेंसियां मिलकर काम करे। सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दें। आखिर कब तक वाहनों के लिए सड़कों की चौड़ाई बढ़ाते रहेंगे, इसका अंत नहीं है। कई शहर इस कंसेप्ट पर काम कर रहे हैं, जहां स्थितियां बदली है।
एच.एस. संचेती, सेवानिवृत मुख्य नगर नियोजक, राजस्थान