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सावन में जहां नहीं मिलती थी पैर रखने की जगह, वहां पसरा है सन्नाटा

जयपुर. सावन मास में जिस ब्रज में पैर रखने की जगह नहीं मिलती थी, वहां अब सन्नाटा पसरा हुआ है। कोविड—19 के चलते बनी इस स्थिति से ब्रज के वे मंदिर भी सूने पड़े हैं जिनमें पिछली कई सदियों से कभी भी भक्तों का आना—जाना नहीं थमा था।

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जयपुर

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Subhash Raj

Jul 12, 2020

सावन में जहां नहीं मिलती थी पैर रखने की जगह, वहां पसरा है सन्नाटा

सावन में जहां नहीं मिलती थी पैर रखने की जगह, वहां पसरा है सन्नाटा

सावन आते ही जहां गोवर्धन की परिक्रमा करने की ऐसी होड़ लगती थी कि एकादशी से पूर्णिमा तक गोवर्धन में एक प्रकार से सूर्यास्त नही होता था तथा पांच दिन तक 24 घंटे परिक्रमा चलती थी। बंदरों और गायों को इतना खाने को मिलता था कि वे खा नही पाते थे। उसी परिक्रमा मार्ग में आज कोरोनावायरस के कारण वीरानगी छाई हुई है। कोरोनावायरस के कारण मंदिरों के बंद होने से बहुत ऐसे लोग निराश हो गए हैं जो रोज मंगला करके ही अन्नजल ग्रहण करते थे या ठाकुर की संध्या आरती में गिरिराज जी के दर्शन कर ब्यालू करते थे। कोरोना ने उनकी दिनचर्या को अस्तव्यस्त कर दिया है। ब्रजयात्रा ब्रज का ऐसा प्रमुख पर्व है जो भावात्मक एकता का अनुपम उदाहरण है। सामान्यतय: एक ब्रजयात्रा में दस से 12 हजार तीर्थयात्री एक साथ 84 कोस की परिक्रमा करते हैं। चातुर्मास होते ही उसकी तैयारी शुरू हो जाती थी। ब्रजयात्रा में भाग लेनेवाला तीर्थयात्री भी चातुर्मास शुरू होने के पहले ब्रज में आ जाता था। वह सावन का आनन्द लेने के साथ जन्माष्टमी भी यहीं करता था तथा राधाष्टमी या उसके बाद शुरू होनेवाली 45 दिवसीय 84 कोस की ब्रजयात्रा में शामिल हो जाया करता था। इससे उसका चातुर्मास भी ब्रज में हो जाता था तथा वह 84 कोस की परिक्रमा भी कर लेता था। कोरोना के कारण आज तीर्थयात्री इस धार्मिक आनन्द से वंचित हो गया है।
ब्रज में दालबाटी और वर्षा ऋतु एक—दूसरे के पूरक हैं। समाजसेवी सर्वेश कुमार शर्मा एडवोकेट ने बताया कि दालबाटी और बरसात एक दूसरे के पर्यायवाची से हैं। ब्रज में इसे पर्व के रूप में मनाते हैं तथा चाहे मुठिया की बाटी हो या धूधरबाटी चूरमा हो या इसमें किया गया मामूली परिवर्तन हो - सभी कार्यक्रम ठाकुर को समर्पित होते हैं तथा ठाकुर का प्रसाद लगाकर ही इसे ग्रहण किया जाता है। चूंकि यह गरिष्ठ प्रसाद है इसलिए इसका आयोजन इस प्रकार किया जाता है कि प्रसाद ग्रहण करने वाला दिन में एक बार ही भोजन कर सके। ब्रज में इसका आयोजन प्राय: हनुमान जी के रोट के रूप में होता है तथा इसे बाद में प्रसादस्वरूप भक्तों में वितरित किया जाता है। कोरोना के कारण भंडारों का आयोजन बिल्कुल बन्द है अन्यथा तीर्थयात्री इसे न केवल प्रसाद स्वरूप ग्रहण करता था बल्कि इसके कारण उसके खाने की समस्या का भी निराकरण हो जाता था। ब्रज में मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गहवरवन बरसाना, बल्देव आदि में परिक्रमा करने का विशेष महत्व है। कोरोना के कारण इनमें भी ग्रहण लग गया है तथा धार्मिक भावना से ओतप्रोत ब्रजभूमि के निवासी भी मन मसोस कर बैठे हैं। ब्रज में कुनबाड़ा से लेकर छप्पन भोग तक ऐसे कई आयोजन है जिन पर कोरोना ने विराम लगा दिया है। जिस गोकुल में 24 घंटे भक्त अनवरत नृत्य करते थे, आज कोरोना ने उसमें जबर्दस्त वीरानगी पैदा कर दी है।