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नए बसे जयपुर के भ्रमण पर जयसिंह-II जब आत्माराम संग निकले तो अफगानी सौदागर को काबुली और अरबी घोड़े बेचते देखा था

तो इसलिए था यहां राजाओं को हाथी और उूंट के बावजूद घोड़े का शौक

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जयपुर

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Vijay ram

Oct 29, 2017

sawai jai singh II

जितेन्द्र सिंह शेखावत, जयपुर . ढूढाड़ के राजाओं को घुड़सवारी करने का बहुत चाव रहा है। नए बसे जयपुर को देखने सवाई जयसिंह द्वितीय जब कवि आत्माराम को लेकर नगर भ्रमण पर निकले तब अफगानी सौदागर काबुली और अरबी घोड़ों को बेचते देखा। आमेर व जयपुर के अलावा जागीरदारों की हवेलियों में घोड़ों के सौदागरों का आना जाना बना रहता था। सवाई जयसिंह आमेर से घुड़सवारी करते तालकटोरा पर आए तब उनको जयपुर बसाने का विचार आया।

अंग्रेजों ने पहली बार रेल चलाई तब उसके साथ दौड़े घोड़ों ने भाप के इंजन को पीछे छोड़ दिया था। आवागमन का साधन और युद्ध के लिए रियासत में घोड़ों की मांग हमेशा बनी रहती। मुगल सेनापति आमेर नरेश मानसिंह प्रथम तो अच्छी नस्ल के घोड़ों के दीवाने रहे। उनके पास अरबी और काबुली घोड़े बहुत सारे थे। जाहंगीर ने आत्मकथा में लिखा कि अगर एक पलड़े में राज्य और दूसरे पलड़े में घोड़े हो तो आमेर नरेश मानसिंह घोड़ों को लेना ज्यादा पसंद करता। अंतिम शासक मानसिंह द्वितीय ने घोड़ों की ६१ कैवेलरी बटालियन का गठन किया।

उनकी पोलो खेलते हुए इंग्लैण्ड में घोड़े पर बैठे ही मृत्यु हुई थी। पहले घोड़ों की घुड़साल पुरानी विधानसभा के पास रही। बाद में घुड़साल को आतिश मार्केट में कायम किया गया। घोड़ों का उपचार करने के लिए १९४० में डॉ.आर.के.कैसोट व डॉ. चौधरी नामी पशु चिकित्सक रहे। आतिश की घुड़साल में खस की टाटिया व बिजली के पंखे भी लगाए गए। सियाशरण लश्करी के मुताबिक राम सिंह द्वितीय को घुड़सवारी और माधोसिंह द्वितीय को आठ घोड़ों की बग्घी में बैठने का खास चाव रहा। सवाई राम सिंह तो वेश बदल घोड़े पर बैठ रात को नगर भ्रमण करते।

कल्याण सिंह अजयराजपुरा को घोड़ों की नस्ल, शुभ अशुभ के लक्षण व बीमारियों के बारे में काफी ज्ञान था। सन् १९२५ में अश्व चिकित्सा विज्ञान पुस्तक वेंकटेश्वर प्रेस में छपी। कर्नल टी.एच. हैंडले और कर्नल स्वींटन एस जैकब आदि अंग्रेज अधिकारियों को घुड़सवारी का शौक रहा। सन् १९२३ में एफ.सी.कावेंट्री जयपुर पुलिस के मुखिया बने तब उन्होंने सवाई मानसिंह स्टेडियम की जगह पर घोड़ों का रेसकोर्स मैदान कायम किया। इस रेसकोर्स मैदान में घोड़ों को प्रशिक्षण भी दिया जाता। सामंत व जागीरदारों को अपनी जागीर के गढ़ या हवेली में घोड़े रखना जरूरी था।

संदेश भेजने के लिए डाक भी घुड़सवार लेकर चलते। कानून व्यवस्था के लिहाज से घुड़सवार पुलिस का माऊंटेड पुलिस दल गठित किया गया। चांदपोल गेट के पास अनाज मंडी की जगह पर इसका मुख्यालय रहा। बाद में जनाना अस्पताल के पास वर्तमान पुलिस लाइन में घुड़साल खोली गई। ईडर के सर प्रताप जयपुर में रहे तब आतिश के मैदान पर आए दिन घुड़दौड़ होती। पुलिस के कोतवाल व आला अफसर घोड़ों पर ही चलते। रामगंज के घोड़ा निकास रोड से घोड़ों का काफिला निकलता। दशहरे के दिन महाराजा खुद घोड़ों का पूजन करते रहे हैं।

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