Ahoi Ashtami 2022 : संतान दीर्घायु और खुशहाली के लिए माताएं सोमवार को अहोई अष्टमी का व्रत रख कर कथा सुनेंगी। वहीं कई महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना के व्रत रख पूजा अर्चना करेंगी।
जयपुर. संतान दीर्घायु और खुशहाली के लिए माताएं सोमवार को अहोई अष्टमी का व्रत रख कर कथा सुनेंगी। वहीं कई महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना के व्रत रख पूजा अर्चना करेंगी। अहोई अष्टमी का व्रत दिवाली से आठ दिन पहले कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। यह दिन अहोई देवी को समर्पित होने से घर-घर देवी की पूजा की जाएगी। अहोई यानी कि अनहोनी का अपभ्रंश, देवी पार्वती अनहोनी को टालने वाली देवी मानी गई है इसलिए इस दिन वंश वृद्धि और संतान के सारे कष्ट और दुख दूर करने के लिए मां पार्वती और सेह माता की पूजा की जाती है। पर्व को लेकर रविवार को बाजार में अहोई माता की फोटो व पूजन सामग्री खरीदने के लिए महिलाओं की भीड़ रही।
पं सुरेश शास्त्री ने बताया कि राजस्थान, गुजरात सहित उत्तर भारत के प्रदेशों में महिलाएं संतान की रक्षा व संतान प्राप्ति के लिए अष्टमी के दिन निर्जल रह कर अहोई माता की पूजा-अर्चना करती है। महिलाएं सूर्यास्त के समय घर की दीवार पर गेरु से अहोई माता के चित्र के साथ सेह व उसके बच्चों की आकृति बनाकर कथा सुनती है। अहोई माता के व्रत में सरसों के तेल से बने पदार्थों का ही प्रयोग होता है। महिलाएं घरों में म_ियां, गुड़ से बना सीरा, पूड़े, गुलगुले, चावल, साबुत उड़द की दाल, गन्ना और मूली के साथ ही मक्की अथवा गेहूं के दाने रखकर उस पर तेल का दीपक रखकर जलाएंगी तथा अहोई माता से परिवार की सुख-शांति, पति व पुत्रों की रक्षा एवं उनकी दीर्घायु की कामना से प्रार्थना करती है। इसके बाद तारा निकलने पर उसे अघ्र्य देकर व्रत का पारण करेंगी। यह व्रत ना केवल स्वयं की संतान बल्कि अन्य जीव-जंतु की रक्षा का भी संदेश देता है। इस दिन अरुणोदय के समय राधाकुंड में स्नान करने का विधान है।
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त
शाम - 05.57 से 07.12 बजे
अवधि - 1 घंटा 15 मिनट
तारों को देखने के लिएं सांझ का समय - शाम 6.20 बजे
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय- रात 11.35 बजे
अष्टमी तिथि प्रारम्भ- 17 अक्टूबर को सुबह 9.29 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त - 18 अक्टूबर, सुबह 11.57 बजे
इन नियमों का करें पालन
-अहोई अष्टमी के दिन माताओं को पूजा की तैयारियां सूर्य अस्त होने से पहले पूरी कर लेनी चाहिए।
-सबसे पहले घर की दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं।
-एक कलश में पानी भरकें और उसके ऊपर करवा चौथ पर इस्तेमाल किया गया करवा रख दें।
-अब अपने हाथों में गेहूं मक्की के दाने लेकर की व्रत कथा सुनें।
-पूजा समाप्त होने के बाद आरती कर कलश से चंद्रमा और तारों को अघ्र्य दें।
- बचे हुए पानी को सुरक्षित रख लें और दिवाली के दिन पूरे घर में छिडक़ाव करें।