देश भर में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी और हीटवेव के बीच जब महानगरों में एसी भी विफल हो रहे हैं, जैसलमेर की पारंपरिक वास्तुकला एक शांत संदेश देती है—सहज, प्राकृतिक और टिकाऊ जीवन अब भी संभव है।
देश भर में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी और हीटवेव के बीच जब महानगरों में एसी भी विफल हो रहे हैं, जैसलमेर की पारंपरिक वास्तुकला एक शांत संदेश देती है—सहज, प्राकृतिक और टिकाऊ जीवन अब भी संभव है। यहां की हवेलियां और गलियां इस बात का प्रमाण हैं कि बिना अतिरिक्त ऊर्जा के भी भीषण गर्मी में ठंडक पाई जा सकती है। जैसलमेर की पारंपरिक इमारतें पीले बलुआ पत्थर से बनी होती हैं। इनकी मोटी दीवारें दिन की गर्मी को अवशोषित करती हैं और रात को ठंडक छोड़ती हैं। इससे घर का तापमान संतुलित रहता है, जिससे एसी या कूलर की आवश्यकता नहीं होती। यहां की संकरी गलियां छायादार होती हैं। हवेलियों में बने आंगन, झरोखे और खिड़कियां प्राकृतिक वेंटिलेशन को प्रोत्साहित करते हैं। आड़ी-तिरछी गलियां हवा के प्रवाह को गति देती हैं और धूप को रोकती हैं, जिससे भीतरी हिस्सों में शीतलता बनी रहती है।
हवेलियों में पत्थरों पर की गई नक्काशी और जाली कार्य केवल सजावट नहीं है। जालियां प्रकाश को छनकर भीतर आने देती हैं और हवा का प्रवाह बनाए रखती हैं, जिससे घर रोशनी से भरा, लेकिन गर्मी से सुरक्षित रहता है।
जैसलमेर के सिविल इंजीनियर चन्दनसिंह भाटी कहते हैं कि जैसलमेर भवन निर्माण मॉडल ऊर्जा दक्ष और पर्यावरण के अनुकूल है। जालियां और नक्काशी ताप नियंत्रण और वायु के प्रवाह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।