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जैसलमेर

सजे मंदिर, जगमगाई दीपमालाएं और चहुंओर धार्मिक माहौल

गोपाष्टमी से शुरू हुआ चार दिवसीय धार्मिक पर्व देवोठनी एकादशी पर तुलसी विवाह समारोह के साथ मंगलवार को संपन्न हुआ। इस पर्व के अंतिम दिन कस्बे के मंदिरों में विशेषकर महिला श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई और कस्बे के चारभुजा मंदिर, गोवर्धननाथजी की हवेली ठाकुरजी के मंदिर, श्रीराम मंदिर, सत्यनारायण भगवान के मंदिर व बाबा रामदेव की कोटड़ी में देर रात तक महिला श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।

जैसलमेरNov 12, 2024 / 08:39 pm

Deepak Vyas

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गोपाष्टमी से शुरू हुआ चार दिवसीय धार्मिक पर्व देवोठनी एकादशी पर तुलसी विवाह समारोह के साथ मंगलवार को संपन्न हुआ। इस पर्व के अंतिम दिन कस्बे के मंदिरों में विशेषकर महिला श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई और कस्बे के चारभुजा मंदिर, गोवर्धननाथजी की हवेली ठाकुरजी के मंदिर, श्रीराम मंदिर, सत्यनारायण भगवान के मंदिर व बाबा रामदेव की कोटड़ी में देर रात तक महिला श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। गौरतलब है कि गोपाष्टमी से तुलसी पर्व शुरू होता है और महिलाएं परिवार में सुख समृद्धि एवं सुहाग की लम्बी उम्र व स्वास्थ्य के लिए एवं कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की कामना को लेकर प्रार्थना करती है। ये महिलाएं व कन्याएं गोपाष्टमी से एकादशी तक निराहार रहकर उपवास रखती है और घर में लगाए गए दीपक के दिन में कई बार दर्शन करती है। साथ ही दीपक के समक्ष हरिकथा व कीर्तन करती है। एकादशी के दिन विशेष पूजा-अर्चना का कार्यक्रम किया जाता है। सुहागिनें अपने घरों में लक्ष्मी के रूप में तुलसी के पौधे व विष्णु भगवान के प्रतीक के रूप में सालिगराम के विवाह कार्यक्रम का आयोजन करती है। इसके पश्चात् द्वादशी को सुबह पूजा-अर्चना के बाद ब्राह्मण भोजन करवाकर वे महिलाएं स्वयं भोजन करती है और परिवार में सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करती है।

मंदिरों में रही भीड़, किए धार्मिक अनुष्ठान

देवोठनी एकादशी के मौके पर मंगलवार को दिनभर कस्बे के मंदिरों में चहल पहल रही। शाम को महिलाएं व कन्याएं सजधज कर मंदिरों में पहुंची और मंदिरों की मुंडेर पर दीपक लगाकर उसे दीपमालाओं से सजाया। कस्बे के ऐतिहासिक मंदिरों में आकर्षक रोशनी भी की गई। देर रात तक कस्बे के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ रही। इस मौके पर विभिन्न मंदिरों में कथा व भजनों का कार्यक्रम आयोजित किया गया।

देर रात तक रही तुलसी-सालिगराम विवाह की धूम

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अपने जीवन में कन्यादान का विशेष महत्व है। जिस दम्पति के घर में कन्या का जन्म नहीं होता है, वे तुलसी के पौधे को लक्ष्मी के रूप में अपने घर में लगाकर उसकी देखभाल करती है। देवोठनी एकादशी के दिन सालिगराम के रूप में भगवान विष्णु की मूर्तियां बनाकर उसका तुलसी के साथ विवाह किया जाता है और कन्यादान की रस्म अदा की जाती है। इसी परंपरा के चलते मंगलवार रात में कई घरों में विवाह के मंडप सजाए गए, मंगल गीत गाए गए और गाजे बाजे के साथ सालिगराम की बारात का स्वागत कर विवाह समारोह का आयोजन किया गया। इसको लेकर देर रात तक कई घरों में विवाह कार्यक्रमों की धूम रही। मान्यताओं के अनुसार देवोठनी एकादशी के बाद चौमासा खत्म हो जाता है और शुभ कार्यक्रमों की शुरुआत हो जाती है। साथ ही लोग एकादशी से विवाह सहित नए व शुभ कार्यों की शुरुआत करते है।

सावों का रहा उल्लास

देवोठनी एकादशी के मौके पर अबूझ सावा होता है। ऐसे में प्रतिवर्ष इस दिन बड़ी संख्या में विवाह समारोह भी आयोजित होते है। इस वर्ष भी देवोठनी एकादशी के मौके पर मंगलवार को पोकरण कस्बे सहित ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह समारोह आयोजित हुए। जिससे क्षेत्र में खासी रौनक नजर आई।

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