जांजगीर-चांपा. सरकारी पैसे का किस तरह दुरपयोग होता है इसका नजारा जिला मुख्यालय में सर्किट हाउस में बगल में बने पुरातत्व विभाग के संग्रहालय निर्माण के रूप में देखा जा सकता है। १२ साल पहले जो बिल्डिंग २६ लाख रुपए की लागत से तैयार हो गई थी वह हैंडओवर नहीं होने के चलते खंडहर हो गई। अब उसी बिल्डिंग में फिर से जान डालने ३० लाख रुपए और फूंकने की तैयारी शुरू हो गई है।
बिल्डिंग के ऊपरी हिस्से को तोड़कर कंस्ट्रशन का काम पीडब्ल्यूडी विभाग ने हाल ही शुरू करा दिया है। बताया जा रहा है कि बिल्डिंग का निर्माण मानक के अनुरूप नहीं हुआ था जिसके कारण ही इसे हैंडओवर लेने से इंकार कर दिया गया था और १२ साल गुजर जाने के बाद भी हैंडओवर हुआ ही नहीं और बिल्डिंग पूरी तरह से खंडहर हो गई। अब एक बार फिर संग्रहालय निर्माण को लेकर अफसरों ने कवायद शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि भवन की रिपेयरिंग के लिए ३० लाख रुपए सेक्शन हुए हैं। जिससे एक बार पीडीब्ल्यूडी विभाग इस संग्रहालय को जीवित करने की कोशिश में लग जा रहा है। मगर इसके कितनी हद तक सफलता मिलती है यह देखने वाली बात होगी। क्योंकि एक बार के २६ लाख रुपए तो पानी में डूबने के सामान ही है। उल्लेखनीय है कि जिले की पुरातात्विक धरोहरों को एक स्थान में संग्रहित करने और लोगों को उनके इतिहास काल से रूबरू कराने 26 लाख रुपए खर्च कर पुरातत्व संग्रहालय का निर्माण कराया गया था। संग्रहालय भवन का निर्माण पीडब्ल्यूडी विभाग ने 2007 में किया था। 26 लाख रुपए की लागत से संग्रहालय भवन 2009 में बनकर तैयार हो गया। 7 जुलाई 2009 को पीडब्ल्यूडी विभाग ने संग्रहालय भवन को हैंडओवर करने पुरातत्व विभाग बिलासपुर को पत्र जारी किया लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया और न ही पुरातत्व विभाग ने टेक ओवर किया।
धूल खाते पड़े हैं जिले में पुरातात्विक धरोहर
जिले में पुरातात्विक धरोहर धूल खाते पड़े हैं और दूसरी ओर संग्रहालय भवन जर्जर हो रहा है। बारहवीं शताब्दी में निर्मित जांजगीर का विष्णु मंदिर, आठवीं शताब्दी का खरौद का लक्ष्मणेश्वर व इंदलदेव का मंदिर, शिवरीनारायण का शबरी मंदिर, सक्ती ब्लाक के ऋषभतीर्थ (दमऊदहरा) केन्द्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं। लेकिन संरक्षण के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है।
बैनर-पोस्टर तक सिमटा संरक्षण
जाज्वल्य देव लोक महोत्सव के मंच पर हर साल महोत्सव जाज्वल्य देव व शिवरीनारायण मंदिर से जुड़ी कलाकृतियों के अलावा जिले की पुरातात्विक धरोहरों को बैनर पोस्टर के माध्यम से फोकस किया जाता है, लेकिन पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण को लेकर कोई पहल नहीं हो रही है।
प्राचीनकालीन दुर्लभ मूर्तियों का नहीं बना ठिकाना
प्राचीनकालीन दुर्लभ मूर्तियां इधर-उधर बिखरी हुई है। जांजगीर में जाज्वल्य देव द्वारा निर्मित अधूरे विष्णु मंदिर परिसर, अड़भार और शिवरीनारायण महानदी तट के यत्र-तत्र पुरानी कलाकृतियां बिखरी पड़ी है। इन स्थानों पर जमीन की खुदाई के दौरान कई लोगों के घरों में प्राचीन मूर्तियों के अवशेष मिले हैं जो घर के किसी कोने या गली में धूल खाते पड़े हैं। शहर के ही देवी दाई मंदिर, कहरा पारा, तलवापारा सहित आसपास के कई मोहल्लों में पुरातात्विक धरोहर खुले में रखे है। जिसे सहेजा नहीं जा सका है।