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स्कूल खुलने के पहले बच्चे खुद ही करते हैं सफाई, ऐसा है सरकारी स्कूलों का हाल

छत्तीसगढ़ शासन भले ही प्रदेश के विद्यार्थियों को उचित शिक्षा दिलाने की हर संभव कोशिश करे। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।

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Piyushkant Chaturvedi

Aug 02, 2017

Before school opens, children do their own self-cl

Before school opens, children do their own self-cleaning

पामगढ़.
छत्तीसगढ़ शासन भले ही प्रदेश के विद्यार्थियों को उचित शिक्षा दिलाने की हर संभव कोशिश करे। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।


अकलतरा ब्लाक के शासकीय प्राथमिक शाला बनाहील सबरियाडेरा स्कूल के शिक्षक-शिक्षिकाएं मनमर्जी की चाल चल रहे हैं।


देर से आना जल्दी जाना की तर्ज पर शिक्षक काम करते हैं। स्कूल लगने का समय भले ही सुबह 10 बजे का हो, लेकिन शिक्षकों को इससे कोई लेना देना नहीं हैं। स्कूल के बच्चों ने बताया कि हमारे शिक्षक-शिक्षिका कभी 10:30 बजे तो कभी 11 बजे आते हैं।


कोई भी शिक्षक 10 बजे तक नहीं आते। वहीं स्कूल से जल्दी निकल जाते हैं। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कई वर्षों से ये स्कूल 11 बजे के बाद खुलता है। जबकि नियम 10 बजे का है। शिक्षकों की मनमानी से छात्राओं का भविष्य संकट में हैं।


प्रदेश सरकार द्वारा स्कूली बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ावा दिया जा रहा है। बच्चों को स्कूल जाने व शिक्षित करने कई योजनाएं चलाईं जा रहीं हैं। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में संचालित शासकीय स्कूलों में चपरासी की सुविधा नहीं होने से शिक्षकों द्वारा बच्चों से चपरासी का कार्य कराया जा रहा है।


गौरतलब हो कि शासन द्वारा मिड डे मील, निशुल्क साइकिल, पाठ्य पुस्तक सहित अन्य सामग्री वितरण व उच्च शिक्षा के प्रयास कर करोड़ों रुपए व्यय किया जा रहा है। लेकिन शासन-प्रशासन द्वारा स्कूलों में चपरासी की व्यवस्था करने कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।


बच्चे कर रहे सब काम- बच्चे स्कूल आते है खुद ही ताला खोलते है और सभी लाइन लग कर राष्टगान गाते है हद तो तब हो जाता है जब बच्चे खुद पूरे स्कूल का साफ सफाई करता है चपरासी नहीं होने से प्राथमिक व माध्यमिक स्कूल के छोटे बच्चे स्कूल में साफ-सफाई से लेकर पानी भरने व मास्टरों सहित स्कूल में आने वाले अतिथियों को पानी व चाय पिलाने का कार्य कर रहे है।


इससे शासकीय स्कूलों में छात्रों की दर्ज संख्या पर भी असर पड़ रहा है। छात्रों के अभिभावकों का निजी स्कूलों में पढ़ाने रूचि बढ़ रही है।

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