26 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

400 की ओपीडी एक कम्प्यूटर ऑपरेटर के हवाले, पर्ची कटाने मरीजों को घंटों लग रहे लाइन में

जिला अस्पताल के ओपीडी में पंजीयन पर्ची काटनी पड़ती है

2 min read
Google source verification
जिला अस्पताल के ओपीडी में पंजीयन पर्ची काटनी पड़ती है

जिला अस्पताल के ओपीडी में पंजीयन पर्ची काटनी पड़ती है

जांजगीर-चांपा. जिला अस्पताल प्रबंधन की व्यवस्था के चलते मरीजों को इलाज कराने से पहले ओपीडी में पंजीयन पर्ची बनवाने में ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ रही है। पर्ची बनवाने के लिए ओपीडी पंजीयन काउंटर में घंटों लाइन में खड़ा होकर पड़ रहा है जिसके बाद जाकर कहहं पर्ची बन पा रही है।
दरअसल, जिला अस्पताल के ओपीडी में पंजीयन पर्ची काटनी पड़ती है। इसके बाद ही डॉक्टर के पास जाकर इलाज करा सकते हैं।

इसके लिए ओपीडी पंजीयन कक्ष में दो कम्प्यूटर ऑपरेटर की नियुक्ति की गई थी मगर पिछले महीने एक कम्प्यूटर ऑपरेटर को अस्पताल प्रबंधन द्वारा एमपीडब्ल्यू के प्रशिक्षण में भेज दिया गया। इसके बाद से एकमात्र कम्प्यूटर ऑपरेटर के हवाले पूरे ओपीडी को छोड़ दिया गया है। जबकि यहां पहले से ही एक और कर्मचारी की आवश्यकता थी।

बता दे, ओपीडी पंजीयन कक्ष में जहां सबसे पहले पंजीयन कराना होता है, उसके बाद अगर डॉक्टर द्वारा कोई जांच कराने कहा जाता है तो फिर जीवन दीप समिति के नाम जांच के एवज में निर्धारित शुल्क पटाकर दोबारा पर्ची बनवाई पड़ती है। दो कर्मचारी थे तो एक के द्वारा कम्प्यूटर में पंजीयन पर्ची बनाया जाता था तो दूसरा कर्मचारी जांच रसीद पर्ची बनाता था। अब एक ही कर्मचारी होने से दोनों काम उसी के द्वारा किया जाता है जिसके कारण मरीजों को घंटों लाइन में खड़ा होना पड़ रहा है।


पर्ची में देरी होने का मतलब इलाज नहीं होगा
आपको बता दे, पंजीयन पर्ची कटने में देरी होने का सीधा असर मरीजों के इलाज पर पड़ रहा है। ओपीडी केवल 2 बजे तक खुलती है। घंटों लाइन में लगे होने के बाद जब पर्ची बन जाती है तो मरीज और परिजन डॉक्टर को ढुंढते फिरते हैं। क्योंकि 1 बजे के बाद ओपीडी में डॉक्टर ही नहीं मिलते। अगर डॉक्टर मिल गए और एक्स-रे, पैथालेब या दूसरी जांच कराने लिख तो फिर उस दिन इलाज शुरू होना मुश्किल। क्योंकि जांच कराने के बाद रिपोर्ट दूसरे दिन ही मिलती है और डॉक्टर बिना जांच रिपोर्ट देखे इलाज शुरू नहीं करते।


प्रबंधन को पहले करनी थी कर्मचारी की व्यवस्था
किसी कर्मचारी को ट्रेनिंग में भेजना गलत नहीं है, लेकिन यह जानते हुए भी एक कर्मचारी कम हो जाने से व्यवस्था चरमरा जाएगी, उसकी जगह किसी अन्य कर्मचारी की ड्यूटी नहीं लगाना गलत है। विभागीय ट्रेनिंग है तो कर्मचारी के जाने से जानकारी अस्पताल प्रबंधन को पहले से थी मगर इसे अस्पताल प्रबंधन ने हल्के में ले लिया है। इसका खामियाजा अब जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।


अस्पताल प्रबंधन बना लापरवाह
मरीजों को हो रही परेशानी को देखते हुए अस्पताल प्रबंधन इस दिशा में व्यवस्था बनाने में बेपरवाह बना हुआ है। यह जानते हुए भी कि दो दिन मंगलवार और शुक्रवार को मेडिकल बोर्ड भी लगता है जिससे ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो जाती है। जहां एक कर्मचारी के भरोसे मरीजों और मेडिकल बोर्ड के लिए आए लोगों का पर्ची काटना संभव ही नहीं है। वहीं इसके बाद भी अस्पताल प्रबंधन का मानना है कि ओपीडी पंजीयन में दूसरे कर्मचारी की जरूरत ही नहीं है।