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मरीजों मिलेगी बड़ी राहत, अब इलाज के लिए गोल्डन कार्ड बनवाने का मिलेगा 48 घंटे का समय

गोल्डन कार्ड बनवाने में मरीजों को आ रही दिक्कतों को देखते हुए शासन ने इस नियम में बड़ा बदलाव किया है।

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मरीजों मिलेगी बड़ी राहत, अब इलाज के लिए गोल्डन कार्ड बनवाने का मिलेगा 48 घंटे का समय

जांजगीर-चांपा. गोल्डन कार्ड बनवाने में मरीजों को आ रही दिक्कतों को देखते हुए शासन ने इस नियम में बड़ा बदलाव किया है। मरीज को भर्ती कराने के 24 घंटे के भीतर इस कार्ड को बनवाने की बाध्यता थी लेकिन अब 48 घंटे का समय मरीजों को मिलेगा। 24 घंटे के अंदर प्रक्रिया पूरी नहीं होने पर क्लेम रिजेक्ट तक हो रहे हैं और मरीजों को मजबूरी में इलाज का पूरा पैसा तक भरना पड़ रहा था।

बता दें, पंजीकृत प्राइवेट हॉस्पिटल व चिन्हित सरकारी अस्पतालों में स्मार्ट कार्ड की जगह आयुष्मान योजना के तहत गरीब परिवारों के प्रत्येक सदस्य को 5 लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की सुविधा मिल रही है। जिले में आयुष्मान योजना के कुल 4 लाख 73 हजार 566 हितग्राही परिवार हैं। लेकिन इस योजना से उनको इलाज कराना इतना आसान नहीं है। इसकी वजह किसी मरीज को इन अस्पतालों में भर्ती कराने के बाद लोगों को वहां 24 घंटे के अंदर आयुष्मान मित्र के जरिए गोल्डन कार्ड बनवाकर जमा करना होता है।

इसमें सर्वाधिक परेशानी उन परिवारों को होती थी कि जो दूरदराज क्षेत्रों से शहर के बड़े अस्पताल में इलाज कराने पहुंचते थे और आधे-अधूरे दस्तावेज के साथ निर्धारित 24 घंटे के भीतर गोल्डन कार्ड नहीं बनता था। मजबूरी में हितग्राही परिवारों को मरीजों के इलाज का पूरा खर्च वहन करना पड़ता है। जिले में प्रतिदिन कई मरीजों के सामने इसी तरह की परेशानी आ रही थी। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। जिले में अब आयुष्मान योजना के तहत गोल्डन कार्ड बनाने के लिए 48 घंटे का समय सुनिश्चित किया गया है।

आयुष्मान योजना से 5 लाख तक मुफ्त इलाज का लाभ पात्र मरीजों को ही मिले, इसके लिए सभी पंजीकृत अस्पतालों में गोल्डन कार्ड जनरेट सिस्टम किया जाता है। इसका समय मरीज भर्ती होने के साथ ही शुरू हो जाता है। 24 घंटे के भीतर पात्र हितग्राही या मरीज के परिजन कार्ड जनरेट करना होता है। मरीज से संबंधित सारे आईडी प्रूफ और दस्तावेज कम्प्यूटर में ऑनलाइन सिस्टम में अपलोड होने के बाद यह कार्ड जनरेट होता है। निर्धारित समय के भीतर गोल्डन कार्ड नहीं बनने की स्थिति में योजना का फायदा नहीं मिल रहा था। मुफ्त के बजाए इलाज के पूरे खर्च चुकाने पड़ रहे थे।

आयुष्मान योजना का लाभ लेने के लिए परिवार के लोग ऐसे प्राइवेट हॉस्पिटल में पहुंच रहे थे। लेकिन साथ में आधार कार्ड, वोटर आईडी समेत अन्य सरकारी दस्तावेज नहीं होने के कारण निर्धारित समय में गोल्डन कार्ड नहीं बन रहा था। ऐसे में इलाज का खर्च उठाने लोगों को उधार में रकम लेकर इलाज तक कराने की मजबूरी बन जा रही थी। निजी अस्पताल संचालक अपनी मजबूरी बताकर अपने हाथ खड़े कर लेते हैं। जिससे हितग्राही परेशान होते हैं।