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भगोरिया उत्सव में परंपरागत धोती-कमीज की जगह अब लोग पैंट-शर्ट के लिबास में रहेंगे

उत्साह वैसा ही, लेकिन वक्त के साथ बदलती चली गई भगोरिया की परम्परा

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भगोरिया उत्सव में परंपरागत धोती-कमीज की जगह अब लोग पैंट-शर्ट के लिबास में रहेंगे

भगोरिया उत्सव में परंपरागत धोती-कमीज की जगह अब लोग पैंट-शर्ट के लिबास में रहेंगे

झाबुआ. लोक संस्कृति के उत्सव भगोरिया की तैयारी में आदिवासी समाज जोर-जोर से जुटा है। अंचल में ढोल मांदल की आवाज भी गूंजने लगी है। खास बात यह है कि इस सात दिवसीय पर्व के लिए आदिवासी युवा खास तौर से पेंट शर्ट सिलवा रहे हैं। यह एक बड़ा सामाजिक बदलाव है, जो पिछले कुछ सालों से समाज में आई आर्थिक समृद्धि को भी बयां कर रहा है। कभी भगोरिया उत्सव में आदिवासी युवा परंपरागत परिधान घुटने से ऊपर तक की धोती, कमीज और झूलड़ी पहने नजर आते थे। वक्त के साथ यह चीज सिर्फ रस्म के बतौर उपयोग में आने लगी है। समाज के बुजुर्ग तो अभी परंपरा में बंधे हैं, लेकिन युवा वर्ग तेजी से आधुनिकता की ओर मुड़ता जा रहा है। जिसका उदाहरण है कि भगोरिया उत्सव के लिए युवा अब पैंट शर्ट सिलवा रहे हैं तो वहीं जींस टी शर्ट भी खरीद रहे हैं।

दिन रात चल रहा सिलाई का काम-
ट्रेलर पवन नाडिया कहते हैं भगोरिया पर्व के लिए 300 से अधिक पैंट शर्ट की सिलाई के आर्डर हैं। उनके यहां के कर्मचारी दिन-रात काम में जुटे हैं। अभी तो सिर उठाने की भी फुर्सत नहीं है। वहीं पंकज टेलर ने बताया बीते कुछ सालों से आदिवासी युवा कपड़े सिलवाने आ रहे हैं। उसमें भी वे नई डिजाइन की पैंट शर्ट सिलवाने की मांग करते हैं। कुछ तो इसके लिए बकायदा नमूना लेकर आते हैं। आदिवासी युवा भगोरिया उत्सव के लिए कपड़ों पर दो से ₹3000 तक खर्च कर रहे हैं।इससे पता चल जाता है कि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। यह तो एक टेलर की बात है शहर में करीब 50 टेलर है और जिले का आंकड़ा सैकड़ो में जाता है।