दिवाली से पहले सज गया चुनावी बाजार हैडिंग......
सचिन बैरागी, झाबुआ। चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद एक नया बाजार सज गया है। अनुमान है कि झाबुआ जिले में मतदान के दिन 17 नवबर तक 5 करोड़ रुपए से ज्यादा पैसा बाजार में आएगा। ये वो पैसा वो है जो राजनीतिक दल विजय श्री हासिल करने खुलकर खर्च करेंगे। यूं तो चुनाव आयोग ने प्रति उम्मीदवार 40 लाख रुपए की खर्च सीमा तय कर रखी है, लेकिन प्रत्याशियों से लेकर पार्टियां चुनाव में बेहिसाब धन बल का उपयोग करती है। कुछ ऐसे भी नेता हैं जो टिकट घोषित होने से पहले ही शक्ति प्रदर्शन के नाम पर मोटी रकम खर्च कर चुके हैं।अब चुनावी सभा, प्रचार-प्रसार और मतदाताओं को लुभाने के लिए पैसा खर्च करने से चुनावी प्रसार सामग्री के बाजार बूम आएगा।
ऐसे समझे खर्च का गणित
झाबुआ जिले में तीन विधानसभा है- झाबुआ, थांदला और पेटलावद। दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों की संख्या 6 रहेगी। चुनाव आयोग के मापदंड के अनुरूप ये प्रत्याशी कुल 2 करोड़ 40 लाख रुपए खर्च कर सकेंगे। वहीं अन्य दल और निर्दलीय उम्मीदवारों का कुल खर्च करीब एक करोड़ तक जाएगा। इससे चुनावी खर्च का आकलन किया जा सकता है।
बाजार में ये हैं इलेक्शन इफेक्ट-
मौसमी रोजगार मिलेगा : चुनावी खर्चे से मौसमी तौर पर रोजगार का सृजन भी हुआ है। जैसे हलवाई, होटल, रेस्टोरेंट और ढाबे वालों को रोजाना कार्यकर्ताओं के लिए भोजन का ऑर्डर मिल रहा है। मजदूरों को भी अतिरिक्त काम मिल गया है।
२. ट्रांसपोटर्स कारोबार में उछाल: पार्टियों के लिए वाहन की व्यवस्था कर रहे हैं। बड़ी सभाओं में कार्यकर्ताओं को लाने ले जाने के लिए भी वाहनों की आवश्यकता होगी।
३. होर्डिंग और बैनार की डिमांड : यूं तो बड़े राजनीतिक दलों की प्रचार सामग्री पार्टी से ही उपलब्ध कराई जा रही है, इसके बावजूद जिले में बैनर-पोस्टर व होर्डिग बनाने वालों को स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दल काम दे रहे हैं। निर्दलीय प्रत्याशियों को इनके पास ही अपनी प्रचार सामग्री प्रिंट करवानी होगी।
४. टेंट और लाइट कारोबार : टेंट, लाइट और साउंड वालों का भी काम बढ़ गया है। चूंकि अभी देव प्रबोधिनी एकादशी तक शादी ब्याह जैसे शुभ कार्य बंद है, ऐसे में टेंट, लाइट और साउंड वाले भी खाली ही बैठे थे। उन्हें अच्छा काम मिल गया है।
५. आइटी प्रोफेशनल की पूछपरख: अभी आईटी प्रोफेशनल को भी काम मिल रहा है। क्योंकि प्रचार प्रसार का काम काफी हाईटेक हो गया है।
चुनाव में इन खर्चों का नहीं होगा बहीखाता
- झाबुआ जिले में नेता बड़े पैमाने पर शराब बांटते हैं। इसका कोई हिसाब किताब नहीं रहता।
- गांवों में मतदाताओं में प्रभुत्व रखने वालों को एक बड़ी रकम दी जाती है।
- मुर्गे और बकरे पर भी बड़ी रकम खर्च होती है।
ये भी है भारी भरकम खर्च-
चुनाव वाले दिन प्रत्येक बूथ पर बैठने वाले कार्यकर्ता को ही औसत 5 हजार रुपए खर्च देना होता है। जिले की तीनों विधानसभा में कुल 981 मतदान केंद्र है। दोनों ही दल यदि अपने एक एक प्रतिनिधि को यहां बैठाता है तो 981 केंद्रों पर कुल 1962 कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगेगी। प्रत्येक कार्यकर्ता पर 5 हजार रुपए खर्च के हिसाब से आंकड़ा 98 लाख 10 हजार रुपए हो जाता है। आयोग का अपना हिसाब-किताब चुनाव आयोग ने इस बार उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले खर्चों की रेट लिस्ट तैयार की है।
इस लिस्ट में चुनाव प्रचार के दौरान चाय, कॉफी, समोसा, रसगुल्ला, आइसक्रीम समेत प्रत्येक सामान के रेट तय किए गए हैं। ये खर्चा उम्मीदवार के खाते में जोड़ा जाएगा। चुनाव आयोग ने प्रचार सामग्री और सभा में काम आने वाले सामान की भी कीमत निर्धारित कर रखी है। आयोग अपनी रेट लिस्ट के अनुसार ही उम्मीदवार के खर्चे का आकलन करेगा।