
The Bhagoria festival of Alirajpur will play here from March 11 to 17
आलीराजपुर. सहज ही हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेने वाली मनमोहक पारंपारिक विशेषभूषा में सजी-धजी आदिवासी बालाएं, मांदल की थाप और बांसुरी की सुमधुर धुन पर थिरकती युवाओं की टोली, चारों और उल्लास और उमंग के माहौल में 11 से 17मार्च तक लोक पर्व भगोरिया का आयोजन होगा। आदिवासी लोक संस्कृति को विश्व मानचित्र पर जीवंत कर देने वाले भगोरिया हाट की धमक देश-विदेशों तक है। आदिवासी बाहुल आलीराजपुर जिले में 11 मार्च से प्रारंभ हो रहे भगोरिया की तैयारियां जोरों पर है। अंचल के इस सबसे बड़े कार्निवाल को निहारने के लिए एक सप्ताह तक देशी-विदेशी सैलानियों का जमावड़ा लगा रहेगा। सप्ताह भर तक निरंतर रूप से चलने वाले इन हाटों को सफलता पूर्वक संपन्न करवाने के लिए शासन-प्रशासन भी मुस्तैद नजर आ रहा है। इन सबके बीच अंचलवासियों का उत्साह भी चरम पर पहुंचता नजर आ रहा है। बाजार में आदिवासीजन सेठ-साहुकारों से नकदी आदि की व्यवस्था करते दिखाई दे रहे हंै। भगोरिया की शुरुआत शुक्रवार को अंचल के वालपुर, कटठीवाड़ा व उदयगढ़ से होगी तथा समापन १७ मार्च को सोंडवा, फुलमाल व जोबट में होगा।
आलीराजपुर जिले के भगोरिया पर्व
दिनांक स्थान
11 मार्च शुक्रवार कठ्ठीवाड़ा, वालपुर, उदयगढ़
12मार्च शनिवार नानपुर, उमराली, बलेडी
13 मार्च रविवार छकतला, सोरवा, आमखूंट,झीरण
14 मार्च सोमवार आलीराजपुर,आजादनगर
15 मार्च मंगलवार बखतगढ, आंबुआ
16मार्च बुधवार चांदपुर, बरझर, खटटाली और बोरी
17 मार्च गुरूवार फुलमाल,जोबट
हर किसी को थिरकने पर विवश कर देता है आदिवासी संगीत
अंचल के मूल निवासियों की सैकड़ों वर्ष पूरानी ऐतिहासिक संस्कृति व विरासत को विश्व परिदृश्य में स्थान दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला भगोरिया रोमांचित कर देने वाली विशेषताओं से भरा है। हालाकि आदिवासी समाज में संगीत का पहले ही महत्वपूर्ण स्थान है किंतु भगोरिया के दौरान बांसूरी से निकलने वाली सुमधुर धुन और मांदल से मस्ती बांध देने वाली निकलने वाली थाप की बात कुछ और ही होती है। भगोरिया हाट में आदिवासी नृत्य दलों के सदस्यों द्वारा बजाए जाने वाला संगीत सहज ही हर किसी को थिरकने पर मजबूर कर देता है।
सप्ताह भर तक गुजेंगी लोकसंगीत की सुमधुर धुनें
11 मार्च को अंचल में सूर्योदय के साथ दिनभर लोकसंगीत की सुमधुर धुनें गूंजती रहेगी। यह गूंज सप्ताह भर तक अंचल के वातावरण में संगीत घोलती रहेगी। उल्लेखनीय है कि आदिवासियों द्वारा बजाए जाने वाले सभी वाद्ययंत्रों का निर्माण स्वयं उनके द्वारा किया जाता है। वाद्ययंत्रों के निर्माण की परंपरा अचंल में सदियों से चली आ रही है। हालांकि आधुनिक युग में धीरे-धीरे अन्य म्यूजिक उपकरण का उपयोग भी प्रचलन में आने लगा है, बावजूद इसके पारंपारिक वाद्ययंत्रों का अपना महत्वपूर्ण स्थान आज भी बरकरार है।
कुर्राटियों की गूंज आकर्षण का केंद्र
भगोरिया हाट बाजारों में हजारों की संख्या में फलिया टोली के साथ आने वाले आदिवासी नगरीय सीमा में प्रवेश करने के बाद से हाट स्थल तक ढोल मांदल की थाप व बासुरी की धुन पर लोक नृत्य करते हुए पहुंचेंगे। आदिवासियों की लोक संस्कृति से रूबरू होने के लिए बाहर से आने वाले अतिथियों के लिए यह कुर्राटियां सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र रहती है। अकसर लोग कुर्राटियों की तीव्रता से संबंधित टोली के उत्साह को भी भांप लेते हैं। यहां यह बताना आवश्यक है कि कुर्राटियां संगीत के साथ ही सुनाई दे तो, ही सुखद लगती है, अन्यथा अंचल के आदिवासी आवेश में आने के बाद भी जोरदार तरीके से कुर्राटी लगाते हैं।
Published on:
08 Mar 2022 04:07 pm
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