
खेतों की नहीं जांचे सेहत, 17100 सॉयल हैल्थ कार्ड में से बने 4070
झालावाड़.जिले के किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच कर उसके स्वास्थ्य की जानकारी देने के लिए केन्द्र सरकार ने 7 साल पहले शुरू की गई योजना के तहत बड़ी संख्या में किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड बांटे जा चुके हैं। लेकिन उसका परिणाम नाममात्र का भी नहीं मिल पाया है। योजना की खामी व किसानों में जागरूकता की कमी के चलते मृदा की सेहत नहीं सुधर पा रही है। जिले में बिना मृदा परीक्षण के ही किसान अंधाधुंध रसायनों व उर्वरकों का प्रयोग कर रहे हैं। इससे मिट्टी की सेहत दिनों दिन बगड़ती जा रही है। लेकिन जिम्मेदार इसका उपचार नहीं कर पा रहे हैं। इसके चलते कई गंभीर बीमारियों के रूप में इसके परिणाम इंसानों में सामने आ रहे हैं।
17 हजार का लक्ष्य, आधा भी पूरा नहीं-
मृदा स्वास्थ्य कोर्ड सॉयल हैल्थ कार्ड योजना के तहत झालावाड़ जिले में कृषि विभाग ने इस वर्ष 17100 सॉयल हैल्थ कार्ड वितरण का लक्ष्य रखा था।लेकिन विभाग 4070 ही नूमने ले पाया है। ऐसे में मिट्टी की सेहत कैसे सुधरेगी और 5 दिसम्बर को मनाए जाने वाले विश्व मृदा दिवस का उद्देश्य दूर-दूर तक पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। यदि यह कहा जाए कि मिट्टी परीक्षण की व्यवस्था ही पंगु है तो इसमें कोई ऐतराज नहीं होगा। क्योंकि यहां मिट्टी की सेहत बताने वाला कोई नहीं है। जिला मुख्यालय पर मृदा परीक्षण लैब में एक ही अधिकारी है। लैब स्वयं बीमार नजर आ रही है। लैब में जगह-जगह कचरा फैला हुआहै, कहीं पर सफाई नहीं हो रही है। ऐसे में किस तरह का उपचार करके वो किसानों के खेतों की मिट्टी की सेहत सुधारेंगे।
उद्देश्य सही था, लागू नहीं कर पाए-
देशभर में किसान खेतों में अंधाधूंध रसायनों का प्रयोग कर रहे हैं। इससे न केवल किसानों को आर्थिक नुसान हो रहा है,बल्कि जमीन की सेहत भी खराब हो रही है। अधिक उपयोग से अनाज की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। इसका समाधान करने व उत्पादन बढ़ाने के लिए केन्द्र सरकार ने सॉइल हैल्थ कार्ड योजना लागू की थी, लेकिन जानकारी के अभाव में किसान आज भी हैल्थ कार्ड की रिपोर्ट जाने बिना ही उर्वरकों का प्रयोग कर रहे हैं। इससे सरकार योजना पर खर्च किए गए करोड़ों रूपए मिट्टी में ही मिल रहे हैं। योजना को 19 फरवरी 2015 को प्रधानमंत्री ने राजस्थान के सूरतगढ़ से शुरू की थी।
नाममत्र का शुल्क फिर भी रूचि नहीं-
सूत्रों ने बताया कि मृदा परीक्षण के लिए किसानों से मात्र 5 रूपए प्रति नमूना शुल्क लिया जाता है। इसके बाद भी किसानों की मिट्टी परीक्षण में रूचि नहीं है। ऐसे में खेतों में यूरिया व डीएपी की जरूरत नहीं फिर भी अंधाधूंड उर्वरक डाल रहे है।
जिले की मिट्टी :कई पोषक तत्वों की कमी
-आर्गेनिक कार्बन की काफी कमी
- जिंक, आयरन की कमी
- किसानयूरिया व डीएपी पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं, लेकिन अन्य न्यूर्टेन्ट की कमी है।
- जिले में किसान संतुलित उर्वरक नहीं दे रहे हैं, इससे पैदावार कम हो रही है।
फैक्ट फाइल-
- इस वर्ष का लक्ष्य-17100
- विश्लेषित नमूने- 3558
-तैयार हैल्थ कार्ड- 2588
- वितरण किए गए है- 2588
17 पोषक तत्वों का होना जरूरी है-
मृदा में कुल 17 प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं। इनमें 9 मुख्य पोषक तत्व तथा 8 सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं। इनपोषक तत्वों में से यदि एक की भी मृदा में कमी होती है तो फसल उत्पादन में विपरित प्रभाव पड़ता है।इसके लिए किसान मृदा की वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिए मृदा की जांच करवाकर ही फसलों में उर्वरक दें। किसान अपने गोबर की खाद व जैविक दवाई बनाकर भी महंगी दवाई के खर्चे से बच सकते हैं।
डॉ. सेवाराम रूंडूला,मृृदा विशेषज्ञ केवीके, झालावाड़।
अंधाधुंध डाल रहे -
जिले की खेती में जिंग, आयरन, कार्बन आदि की बहुत ज्यादा कमी पाई गई है। किसान यूरिया व डीएल अंधाधुुंध डाल रहे हैं। कई न्यूर्टेंट की कमी होने से मिट्टी की सेहत खराब हो रही है। समय रहते इसके उपचार की जरूरत है, संतुलित व जैविक उर्वरक का प्रयोग कर किसान कैंसर जैसी घातक बीमारियों से लोगों को बचा सकते हैं।
त्रिलोक चन्द शर्मा, कृषि अनुसंधान अधिकारी, रसायन, मृदा प्रयोगशाला, झालावाड़।
Published on:
08 Dec 2021 05:03 pm
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