गेहूं-सरसों की बुवाई अधिक- जिले में इन दिनों किसान वर्ग खेतों में व्यस्त है, किसान रबी फसल की बुवाई में जुटे हुए है। कहीं हंकाई की जा रही है, तो कहीं खेतों में बुवाई की जा रही है। ऐसे में किसान वर्ग अपने खेत-कुओं पर दिनभर कार्य करने में जुटे हुए है। इस बार गेहूं, सरसो, मैथी,लहसुन, अलसी आदि फसलों की बुवाई अधिक की जा रही है। इसके साथ ही कुछ जगह खेतों में नमी को देखते हुए मसूर व चना की बुवाई भी की गई है। जिले में इस बार गेहूं की बुवाई का 1 लाख 30 हजार व सरसों 60 हजार हैक्टेयर में बुवाई का लक्ष्य तय किया गया है।
रबी में नवंबर माह में खाद की स्थिति खाद मांग उपलब्धता यूरिया 20000 15000 डीएपी 4000 450 एनपीके 5000 2000 एमओपी 300 850 एसएसपी 20000 28000
योग 49300 46300 (आंकड़े कृषि विभाग के अनुसार एमटी में) जिले में रबी सीजन में बुवाई का लक्ष्य फसल लक्ष्य हैक्टेयर गेहूं 130000 चना 55000
मसूर 8000 सरसों 60000 अलसी 5000 अन्य फसलें 70000 कुल 328000 मांग के अनुरूप नहीं मिल रहा डीएपी- गौरतलब है कि जिले में दीपावली के बाद से ही रबी की बुवाई ने जोर पकड़ लिया है। इससे अभी विशेषकर डीएपीए खाद की अधिक आवश्यकता हो रही है। जिससे किसानों को खाद नहीं मिलने की परेशानी हो रही है। कई खेतों में बुवाई के बाद रेलणी भी की जा रही है। किसान बुवाई के साथ ही गेहंू व सरसों, चना, मसूर, अलसी आदि फसलों की बुवाई केस साथ ही डीएपी की जरुरत पड़ रही है, लेकिन जिले में 4 हजार एमटी के मुकाबल मात्र 450 एमटी की डीएपी खाद आया है। ऐसे में किसानों को बुवाई के समय डीएपी खाद उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
समय पर उपलब्ध हो खाद- गत कई वर्षों से किसानों को समय पर खाद उपलब्ध नहीं हो पाता है। सहकारी समितियों में यह समस्या प्रति वर्ष की रहती है। ऐसे में किसानों को समय पर खाद के लिए बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है। अधिक रुपए देकर खाद लेना पड़ रहा है। जिले में डीएपी खाद कहीं भी नहीं मिल रहा है। कृषि विभाग व जिले के जनप्रतिनिधियों को पहल कर पर्याप्त खाद मंगवाना चाहिए।
राधेश्याम गुर्जर, जिलाध्यक्ष भारतीय किसान संघ, झालावाड़। 30 फीसदी कमी तो है- जिले में 20 से 30 फीसदी डीएपी खाद की कमी है, इसके विकल्प के रुप में एनपीके व एसएसपी दे रहे हैं। किसान गोष्ठी के माध्यम से किसानों को डीएपी के विकल्प के रुप में बता चुके हैं। डीएपी की मांग भेज रखी है।
केसी मीणा,संयुक्त निदेशक, कृषि विस्तार, झालावाड़।