
पत्रिका न्यूज नेटवर्क/झालावाड़/सुनेल। Hartalika Teej 2023: अखंड सौभाग्य की कामना के साथ महिलाओं द्वारा हरतालिका तीज पूजन 18 सितंबर को किया जाएगा। खास बात यह है कि इस बार यह पूजन रवि योग और इंद्र योग में मनाया जाएगा। इसी दिन सोमवार रहेगा, जिसके अधिपति भगवान शिव है। इसलिए इसका महत्व बढ़ गया है। इस दिन महिलाएं शिव- पार्वती की निर्जला व्रत रखकर पूजा-अर्चना करेंगी। ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र जोशी ने बताया कि इस व्रत में रात्रि जागरण कर आरती करने का भी विधान है। इस तरह कस्बे में कई मंदिरों व घरों में महिलाओं द्वारा पूजा के सामूहिक आयोजन भी किए जाएंगे। ज्योतिषाचार्य पंडित जोशी ने बताया कि हरतालिका तीज के पहले पहर की पूजा-आरती का शाम 6 बजकर 30 मिनट रहेगा। दूसरे पहर की पूजा रात 9 बजे से तीसरे पहर की पूजा रात 12 बजे से और चौथे पहर का पूजन तड़के 4 से 6 बजे के बीच होगा। हरतालिका तीज पर महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना के लिए निर्जल व्रत रखकर शिव पार्वती माता की पूजा अर्चना करती है।
हरतालिका तीज व्रत रखने का तरीका : सर्वप्रथम इस मंत्र से शुरुआत करें। 'उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये' उस के बाद इस मंत्र का संकल्प करके मकान को मंडल आदि से सुशोभित कर पूजा सामग्री एकत्र करें। हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात् दिन-रात के मिलने का समय। संध्या के समय स्नान करके शुद्ध व उज्ज्वल वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात पार्वती तथा शिव की सुवर्णयुक्त (यदि यह संभव न हो तो मिट्टी की) प्रतिमा बनाकर विधि-विधान से पूजा करें। बालू रेत अथवा काली मिट्टी से शिव-पार्वती एवं गणेशजी की प्रतिमा अपने हाथों से बनाएं। इसके बाद सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी सामग्री सजा कर रखें, फिर इन वस्तुओं को पार्वतीजी को अर्पित करें। शिवजी को धोती तथा अंगोछा अर्पित करें और तपश्चात सुहाग सामग्री किसी ब्राह्मणी को तथा धोती-अंगोछा ब्राह्मण को दे दें। तत्पश्चात सर्वप्रथम गणेशजी की आरती, फिर शिवजी और फिर माता पार्वती की आरती करें। भगवान की परिक्रमा करें। रात्रि जागरण करके सुबह पूजा के बाद माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं। ककड़ी-हलवे का भोग लगाएं और फिर ककड़ी खाकर उपवास तोड़ें, अंत में समस्त सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी या किसी कुंड में विसर्जित करें।
जानिए क्या है कथा: शास्त्रों के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
Published on:
15 Sept 2023 01:35 pm
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