यूं तो आमतौर पर इमली देश में सभी जगह मिल जाती है। इसके पेड़ भी गांव और शहर में नजर आते है, लेकिन झालावाड़ जिले के डग कस्बे में खुरासानी इमली की अलग ही पहचान है। सदियों पुराना इमली का पेड़खुरासानी बाबा की मजार के पास है, इस वजह से इस इमली का नाम खुरासानीपड़ गया। कस्बे में प्राचीन कल्याण सागर तालाब के किनारे खुरासानी बाबा की मजार के पास आजाद कॉलोनी में यह विशाल पेड़ है। यह पेड़ अपनी विचित्र प्राकृतिक बनावट तथा स्वाद के लिए खासा प्रसिद्ध हैं। यह अन्य इमली से अलग है।
इसका आकार नारियल या बया के घोंसले जैसा है और जब इसको तोड़ते हैं तो अंदर कई भाग में इमली और बीज निकलते हैं। इसके फल बड़े खीरा, ककड़ी जैसे करीब 8 से 10 इंच के होते हैं। डग क्षेत्र में इसके दो पेड़ हैं। इनमें एक बुधवारिया गेट के निकट दरगाह के समीप भी है।
तोडऩे के बाद हो जाती है कठोर
यह हरे रंग का आवरण लिए होती है। तोडऩे के बाद धीरे-धीरे कठोर होने लगती हैं। इसे तोडऩे पर अंदर सूखे मेवे की तरह पावडर निकलता है। इसके बीज राजमा के आकार के होते हैं। यह अल्प खटाई ही पूरे मुंह को खट्टा कर देती हैं। खुरासानी इमली को सुखाकर पावडर बनाया जाता है। इससे नींबू-पानी जैसा खट्टा स्वास्थ्यवद्र्धक पेय बनता है।
इमली के पेड़ की ऊंचाई करीब 70 फीट
खुरासानी इमली सबसे लंबी जड़ वाला पेड़ है। इसकी ऊंचाई करीब 70 फीट है। तने का व्यास 20 फीट के आसपास है। इस पेड़ पर पत्ते साल में सिफऱ् 6 महीने ही आते हैं। शुष्क मौसम में इसके पत्ते झड़ जाते हैं और उस समय यह एक दम सूखा दिखता है। इसके फूल बड़े आकार के होते हैं, जो शाम को बहुत तेजी से खिलते हैं और सुबह होने तक मुरझा जाते हैं। खुरासानी इमली के एक फ ल में करीब 30 बीज होते है। बीजों से भी कई तरह की दवाइयां, गोन्द, कच्चा तेल और साबुन बनाए जाते हैं। यह फ ल पोषक तत्वों से भरपूर है जिसमें टार्टरिक एसिड और विटामिन सी पाए जाते हैं।
1665 में लगाए थे तीन पेड़
सन 1665 ई. में डग के शासक होशदार खां ने एक महल बनवाया था। उसके दरोगा पद पर एक विदूषक मीर खुरशीद अली को नियुक्त किया था। खुरशीद अली अपनी बातों से होशदार खां को हमेशा खुश रखता था। इसी कारण होशदार खां ने उसे खुशदिल नाम दिया। खुशदिल ने महल की सभी स्त्रियों को सैर करवाने के लिए कल्याण सागर के किनारे एक सुन्दर बाग बनवाया। इसे खुशदिल बाग नाम दिया गया। इसी बाग में उसने खुरासानी इमली के तीन पेड़ लगवाए थे। वर्तमान में यहां एक ही पेड़ हैं। इसी बाग में खुशदिल की मृत्यु होने पर उसकी कब्र बनाई गई थी, जो आगे चलकर खुरासानी बाबा की मजार के रूप में आस्था स्थल बन गई। ललित शर्मा, इतिहासकार, झालावाड़