सुनेल। संत निरंकारी मंडल ब्रांच के तत्वावधान में रविवार को स्वच्छ जल, स्वच्छ मन, निरंकारी सतगुरू द्वारा प्रोजेक्ट अमृत का शुभारंभ जन की स्वच्छता के साथ मन की स्वच्छता भी आवश्यक सतगुरू माता सुदीक्षा महाराज एवं निरंकारी राजपिता के पावन कर कमलों द्वारा आजादी के 76 वें अमृत महोत्सव के तहत रविवार सुबह 8 बजे से अमृत परियोजना के अंतर्गत स्वच्छ जल स्चच्छ मन का शुभारंभ हुआ। इसके तहत सुनेल के भवानीमंडी मार्ग पर स्थित आहूनदी पर किया। यह परियोजना समूचे भारतवर्ष के 1500 से अधिक स्थानों के 900 शहरों, 27 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में विशाल रूप से एक साथ आयोजित लाखों श्रद्वालु निरंकारी सेवादल के नौजावानों ने सेवा की। मीडिया सहायक विजय कुमार गुप्ता निरंंकारी ने बताया कि इस कार्यक्रम के तहत सुनेल ब्रांच के मुखी महात्मा राजेन्द्र कुमार गुप्ता निरंकारी ने किया। कार्यक्रम की शुरूआत सेवादल प्रार्थना गीत से हुई। इस अवसर पर भवानीमंडी से भी काफी संत महात्मा इस मानव योगदान के लिए पंहुचकर जल स्त्रोतों की सफाई कर आसपास के स्थानों की भी सफाई की एवं जल स्त्रोतों को चकाचक किया। श्रद्वालु भक्तों ने जल स्त्रोतों में बहुत सारी गंदगी थी जिसे बाहर निकाला एवं उचित स्थान पर डाला। इस अवसर पर संत गुप्ता ने कहा कि स्वच्छ पर्यावरण का ध्यान रखते हुए प्लास्टिक की बोतल धर्माकोल पॉलीथिन आदि का प्रयोग पूर्णतया वर्जित था,जल स्त्रोतों में गंदगी ना डालें जल स्त्रोतों की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखे। संत ने कहा जल ही जीवन है संत जन जहां सेवाएं करते है। जल भी अमृत हो जाता है कहा कि यह मानवता का परिचय है ऐसी मानवता का परिचय है एसी मानवता की सेवा है। बाबा हरदेव सिंह की शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हुए संत निरंकारी मिशन द्वारा निरंकारी सतगुरू माता सुदीक्षा महाराज के देव निर्देशन में अमृत परियोजना का आयोजन हुआ। इस अवसर पर संत निरंकारी मिशन के सभी अधिकारीगण केंद्रीय एवं राज्य सरकार के मंत्री गणमान्य अतिथि तथा हजारों की संख्या में संघ सेवक और सेवादल के सदस्य सम्मिलित हुए कार्यक्रम का सीधा प्रसारण संत निरंकारी मिशन की वेबसाइट के माध्यम से किया। जिसका लाभ देश एवं विदेशों में बैठे सभी श्रद्वालुओं एवं निरंकारी भक्तों ने प्राप्त किया। इस परियोजना का शुभारंभ करते हुए सत्गुरू माता सुदीक्षा महाराज ने जल की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि परमात्मा ने हमें यह जो अमृत रूपी जल दिया है तो हम सभी का कर्तव्य बनता है कि हम सब उसकी उसी तरह संभाल करें स्वच्छ जल के साथ-साथ मनो का भी स्वच्छ होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इसी भाव के साथ हम संतों वाला जीवन जीते हुए सभी के लिए परोपकार का ही कार्य करते हैं।