झांसी

देश भर में थी यहां के टेरीकॉट की मांग, अब कोई नाम लेने वाला नहीं, ODOP से मिलेगी कपड़ा उद्योग को ऑक्सीजन

Jhansi News: रानीपुर के टेरीकॉट उद्योग को अब ओडीओपी से मिलेगी ऑक्सीजन। एक समय देशभर में थी रानीपुर के कपड़ों की मांग। आज कोई नाम लेने वाला भी नहीं मिलता। एक बार फिर इस उद्योग जे जुड़े लोगों में उम्मीद जागी है।

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Sep 18, 2023
इस तस्वीर को सोशल मीडिया से लिया गया है।

Jhansi News: उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद के रानीपर के टेरीकॉट उद्योग को ऑक्सीजन देने के लिए की जा रहीं कोशिशों को अब मुकाम मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। प्रदेश सरकार ने ओडीओपी (एक जनपद-एक उत्पाद) योजना में दूसरे उत्पाद के रूप में रानीपुर टेरीकॉट को शामिल कर लिया है। पहले झांसी का एक जनपद एक उत्पाद सॉफ्ट ट्वॉय था। सरकार के इस कदम से खत्म होने की कगार पर पहुंचे रानीपुर के कपड़ा उद्योग को नयी संजीवनी मिल सकती है।


ओरछा नरेश ने रानीपुर में बसाए थे जुलाहा परिवार

झांसी से लगभग 60 किलोमीटर दूर ओरछा नरेश सुजान सिंह की मां द्वारा कुछ जुलाहा परिवारों को शरण देकर बसाये गये रानीपुरवा में (वर्तमान रानीपुर) कभी टेरिकॉट वस्त्र उद्योग का डंका बजता था। सन् 1750 तक यहां का वस्त्र उद्योग शिखर पर पहुंच गया था। झांसी ही नहीं, निकटतम रियासतों में भी रानीपुर के कपड़े की जबरदस्ती मांग रही। किताबों, बहीखाता और सरकारी रजिस्टरों की जिल्द चढ़ाने के लिये यहां का खरूआ कपड़ा काफी अच्छा माना जाता था। रानीपुर के छीपा समाज ने अपने इस उत्पाद से ईस्ट इण्डिया कम्पनी को खूब लुभाया और आर्थिक उन्नति की।


बार-बार लड़खड़ाया रानीपुर का वस्त्र उद्योग

रानीपुर टेरीकॉट उद्योग पर गहन अध्ययन करने वाले साहित्यकार शमीम शेख बताते हैं कि समय के साथ उत्पादन और व्यापार में भी बदलाव आने से बाहर से कागज आने लगा, जिससे खरूआ उत्पादन शिथिल हो गया। रानीपुर के बुनकरों ने नया ट्रेंड अपनाते हुए राजस्थान में पहने जाने वाले चौड़ी किनारी के घाघरों के लिये कपड़ा तैयार करना शुरू कर दिया। इसने पूरे मारवाड़ में धूम मचा दी। वर्ष 1850 में यह वस्त्र उद्योग फिर शिखर पर पहुंच गया। धीरे-धीरे पैसे वालों ने इस व्यवसाय में प्रवेश किया। इससे आढ़त और दलाली का बाजार गर्म हो गया साथ ही बुनकरों का शोषण शुरू हो गया। वर्ष 1942 के विश्व युद्ध का भी प्रभाव रानीपुर वस्त्र उद्योग पर पड़ा। इसी बीच रानीपुर के निकट से निकली सुखनई नदी में बाढ़ आ गई, जिससे बुनकरों के कई परिवार तबाह हो गये। बाढ़ से फैली बीमारियों ने महामारी का रूप ले लिया और कुछ परिवार यहां से पलायन कर गये।


स्वतन्त्रता आन्दोलन ने दिया पुनर्जीवन

स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान विदेशी कपड़ों का बहिष्कार और हस्तनिर्मित वस्त्रों का प्रचार होने से रानीपुर के वस्त्र उद्योग को फिर संजीवनी मिलने लगी। रानीपुर की खादी ने बाजार में अपना सिक्का जमा लिया। आजादी के बाद रानीपुर हथकरघा बुनकरों ने अनेक उत्पाद बाजार में उतारे। इनमें धोती, रजाई, साड़ी, टेरीकॉट, पैंट, शर्ट आदि का व्यवसाय शुरू हुआ, लेकिन कपड़े में सुंदरता एवं चिकनापन लाने वाली कलेण्डर मशीन के अभाव में यह वस्त्र उद्योग मध्यम वर्ग तक ही सीमित रह गया। वर्ष 1960 के आते-आते खादी केवल नेताओं तक सीमित रह गई। वर्ष 1970 में कुछ युवाओं ने हथकरघा सिन्थेटिक वस्त्र निर्माण का प्रारम्भ किया। वर्ष 1980 आते-आते रानीपुर हथकरघा टेरीकॉट के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया। इस उद्योग का टर्न ओवर 60 से 80 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।

Published on:
18 Sept 2023 08:06 am
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