किसानों के लिए खुशखबर: अब पाळा भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा सरसों का

अब पाळा भी सरसों का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल (आईसीएआर) की ओर से विकसित सरसों की किस्म सीएस 60 का शेखावाटी सहित राजस्थान के अनेक जिलों में प्रयोग सफल रहा है।

<p>अब पाळा भी सरसों का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल (आईसीएआर) की ओर से विकसित सरसों की किस्म सीएस 60 का शेखावाटी सहित राजस्थान के अनेक जिलों में प्रयोग सफल रहा है।</p>

झुंझुनूं। अब पाळा भी सरसों का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल (आईसीएआर) की ओर से विकसित सरसों की किस्म सीएस 60 का शेखावाटी सहित राजस्थान के अनेक जिलों में प्रयोग सफल रहा है। राजस्थान सरकार के कृषि ग्राह्य केन्द्र आबूसर (एटीसी) में इस सीजन में सीएस 60 सरसों की बुवाई की गई। इसे क्रॉप कैफेटरिया में उगाया गया। इसी के निकट सरसों की गिर्राज व अन्य किस्में भी उगाई गई। इस बार पड़े पाळे के कारण अन्य किस्मों में 50 से 90 फीसदी तक नुकसान हो गया। लेकिन सीएस साठ किस्म में पाळे का एक प्रतिशत नुकसान भी नहीं हुआ।

जानें क्या है एटीसी और इसका क्या है काम
राजस्थान में कृषि की दृष्टि से अनेक कृषि जलवायु खंड हैं। आबूसर के एडप्टिव ट्रायल सेंटर (एटीसी) के अधीन चूरू, सीकर, झुंझुनूं व नागौर जिले आते हैं। कोई भी किस्म की बुवाई करने से पहले उसे सरकार एटीसी में प्रायोगिक तौर पर उगाकर देखती है। वहां पर प्रयोग सफल होने पर ही किसानों को संबंधित बीज उगाने की सलाह देती है।

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उत्पादन 20 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
कृषि अनुसंधान अधिकारी शीशराम ढीकवाल ने बताया कि इस सरसों का उत्पादन बीस से पच्चीस क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाता है। यह पाळा रोधी किस्म है। इसके साथ ही इसकी दूसरी विशेषता यह है कि यह खारे पानी में भी उगाई जा सकती है। यह किस्म 7680 टीडीएस तक के पानी में भी उगाई जा सकती है। यह बारह विद्युत चालकता (ईसी) वाले पानी में भी उग जाती है। पौधों की लम्बाई अच्छी होती है। फलियों की संख्या अन्य किस्मों से ज्यादा होती है। हर फली में बीजों की संख्या ज्यादा होती है। जहां पाळा पडऩे की आशंका रहती है और पानी खारा है वहां के लिए यह किस्म सर्वश्रेष्ठ है।

एटीसी में पहली बार सरसों की सीएस 60 किस्म उगाई है। इस बार खूब पाला पड़ा, लेकिन इस किस्म की फसल पर कोई नुकसान नहीं हुआ। यह पाळा रोधी किस्म है। इसका प्रयोग सफल रहा है। राजस्थान में जहां पाळा ज्यादा पडऩे की आशंका रहती है तथा पानी खारा है वहां के लिए यह श्रेष्ठ किस्म है।
उत्तम सिंह सिलायच, उप निदेशक, एटीसी आबूसर

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