
मालाबार नीम की खेती (फोटो-पत्रिका)
Malabar Neem cultivation: झुंझुनूं। करगिल की लड़ाई में फौजियों को भोजन व आयुध सामग्री पहुंचाने वाले रिटायर्ड सूबेदार राकेश कुमार शर्मा का जुनून अब माटी के धोरों में दिखाई दे रहा है। वह खुद के गांव नूआं के खेतों में मालाबार नीम की खेती कर रहे हैं। रिटायर्ड सूबेदार ने वर्ष 2019 में हैदराबाद व अन्य जगह से नीम के 900 पौधे लगाकर खेती शुरू की। अब यहां करीब 800 पौधे बड़े पेड़ बन चुके हैं।
मालाबार नीम की खेती में लागत न के बराबर है, जबकि मुनाफा अच्छा है। यह एक ऐसा पौधा है, जिसे अधिक पानी और खाद की जरूरत नहीं होती। साथ ही इसमें कोई रोग नहीं लगता। कम जमीन में ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं। मालाबार नीम का विकास काफी तेजी से होता है। 2-3 साल में ही मालाबार नीम के पौधे 20-25 फीट के हो जाते हैं। ऐसे में किसान इसकी खेती करके बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं।
नूआं में मालाबार नीमों की ऊंचाई बढ़कर 50 से 55 फीट तक हो गई है। भारत में मालाबार नीम की खेती तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल राज्यों में ज्यादा होती है। राजस्थान में काजरी ने भी कुछ साल पहले मालाबार नीम के पौधे उगाए थे, लेकिन उनकी ऊंचाई अभी नूआं वाले पेड़ों से कम है।
रिटायर्ड फौजी राकेश ने बताया कि मालाबार नीम के पौधे यूकेलिप्टस की तरह तेजी से बढ़ते हैं और काफी ऊंचे होते हैं। इनके नीचे इतनी जगह होती है कि कम ऊंचाई वाली फसल चना, मूंग, मोठ, ग्वार, सरसों आदि की आसानी से खेती कर लेते हैं। इसका फायदा यह होता है कि छोटे-छोटे खर्च निकलते रहते हैं।
इसके अलावा फौजी राकेश हैदराबादी नींबू से हर साल दो से तीन लाख रुपए की कमाई कर लेते हैं। इनके खेत में अमरूद, शहतूत, इमली, अंजीर व आंवला के पेड़ भी लहलहा रहे हैं। वहीं सबसे अधिक मालाबार नीम और नींबू के पौधे हैं।
मालाबार नीम का उपयोग पेपर उद्योग, हार्ड बोर्ड व पैकेजिंग उद्योग में ज्यादा होता है। यह एक इमारती लकड़ी भी है। इसकी लकड़ी से बने फर्नीचर में दीमक नहीं लगते हैं। सबसे अधिक इसका उपयोग प्लाईवुड बनाने और माचिस की तीली आदि बनाने में किया जाता है। दक्षिण भारत में मालाबार नीम का प्रयोग ज्यादातर बांस की जगह किया जाता है, क्योंकि इसके पौधे पतले और काफी सीधे लंबे होते हैं।
मालाबार नीम के पौधे करीब से सात से आठ साल बाद पांच से छह क्विंटल लकड़ी दे सकता है। मालाबार नीम की एक क्विंटल लकड़ी की कीमत करीब 800 से 1000 रुपए प्रति क्विंटल तक है। हालांकि मांग व आपूर्ति के अनुसार भाव कम ज्यादा होते रहते हैं। फिर भी औसत एक पेड़ चार से छह हजार रुपए का बिक जाता है। राकेश ने अब निमोळी से मालाबार नीम की नर्सरी भी तैयार कर ली है, इसके पौधे बेचकर भी कमाई कर रहे हैं।
फौजी ने बताया कि उसके पिता जेपी शर्मा भी फौज से कैप्टन पद से रिटायर्ड हो चुके हैं, गांव से हमेशा लगाव रहा है। रिटायर्ड होने के बाद हालांकि जयपुर में रहने लग गए। लेकिन एक दिन उनके उद्यान वैज्ञानिक मित्र ने नूआं में बगीचा तैयार करने की सलाह दी। इसके बाद मिट्टी व पानी का परीक्षण करवाने के बाद पौधे लगा दिए। पत्नी सविता और बेटा विकास भी इसमें सहयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों का लगाव अपनी माटी से होता रहे, इसलिए वापस खेती का रुख किया।
Published on:
29 Jul 2025 09:01 pm
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