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गाय को सड़क पर तड़पते देखा तो बदल लिया खुद का नाम और काम

आरएसएस की शाखा में कार्यरत मुकेश कुमार को एक गाय मरणासन्न अवस्था में सड़क पर तड़पती दिखी तो उसने अपना नाम मुकेश आनंद रख लिया और पूरा जीवन ही गायों की सेवा में समर्पित कर दिया। आज वह 30 से अधिक गो-सेवा केंद्र बनाकर गायों को बचाने का काम कर रहा है।

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गाय को सड़क पर तड़पते देखा तो बदल लिया खुद का नाम और काम

गाय को सड़क पर तड़पते देखा तो बदल लिया खुद का नाम और काम

झुंझुनूं जिले के गोठड़ा गांव के एक युवक पर गोसेवा का ऐसा जुनून सवार हुआ कि उसने पूरा जीवन ही गायों की सेवा में समर्पित कर दिया। गायों से प्रेम इस हद तक बढ़ा कि 1999 में पांच गायों से गो-सेवा केंद्र बनाने का अभियान शुरू किया और अब तक 30 से अधिक गो-सेवा केंद्र बनाकर एक मिसाल कायम की है।

यूं शुरू हुआ गो-प्रेम
गोठड़ा निवासी मुकेश कुमार आरएसएस की शाखा में कार्य करते थे। इसी दौरान 1999 में एक गाय मरणासन्न अवस्था में सड़क पर तड़प रही थी। गाय को शाखा स्थल पर लाकर मुकेश ने उसकी सेवा करना शुरू कर दिया और उसी दिन से गायों को बचाने का संकल्प ले लिया। खास बात यह है कि उसी दिन से मुकेश ने अपना नाम मुकेश आनंद रख लिया। इसके बाद उन्होंने एक आनंद आश्रम बनाया और पांच गायों से यह गो-सेवा केंद्र शुरू किया।

30 केंद्र बनाए, 113 का लक्ष्य
मुकेश आनंद ने अब तक खेतड़ी, सिंघाना, बुहाना, झुंझुनू तक 30 केंद्र बना दिए हैं, जहां हजारों गाय रह रही हैं। उसका लक्ष्य 113 गांवो में गो-सेवा केंद्र बनाने का है। मुकेश ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अशोक सिंह शेखावत की प्रेरणा व सहयोग से वह इस मुकाम तक पहुंच पाया है।


आत्मनिर्भर भी हैं सेवा केंद्र

खेतड़ी के गो-सेवा केंद्रों में गायों के लिए सभी सुविधाएं हैं। गायों के रहने के लिए पक्के निर्माण हैं तथा सर्दी-गर्मी से बचाव का पूरा बंदोबस्त किया गया है। कई गो-सेवा केंद्रों को आत्मनिर्भर भी बनाया गया है। नंगली सलेदी सिंह के गो-सेवा केंद्र में गोबर से लकड़ियां बनाई जा रही है जो ईंट भट्टों पर व शहरों में बिकने को जाती हैं। होटलों पर दाल बाटी बनाने के काम आती हैं। गोमूत्र भी तैयार करके भेजा जाता है। बिजली की आपूर्ति के लिए सौर ऊर्जा प्लेट लगाई हुई है।हर बाड़े में गायों को कृष्ण धुन सुनाई जाती है।


हर गोशाला पंजीकृत
मुकेश आनंद के सभी गो-सेवा केंद्र पंजीकृत हैं। हालांकि सरकारी सहायता ऊंट के मुंह में जीरे समान है। लेकिन वह गांवो में लोगों को जोड़कर सहायता राशि से गायों का रखरखाव कर रहे हैं। जन्मदिन, शादी, विवाह के अवसर पर ग्रामीणों को प्रेरित कर गो-सेवा केंद्रों में कार्यक्रम आयोजित करवाए जाते हैं जिससे गायों के चारे-पानी व्यवस्था हो सके।


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