scriptइस जेल में कमाई के लिए आते हैं कैदी, कई बन चुके हैं लखपति | Jail where inmates are learning acting, painting for livelihood | Patrika News

इस जेल में कमाई के लिए आते हैं कैदी, कई बन चुके हैं लखपति

locationजयपुरPublished: Feb 18, 2019 02:01:27 pm

भारत की जेलों की अक्सर जो छवि उभरकर आती है, उसमें गंदे और तंग कोठरियों में अमानवीय जीवन जी रहे कैदी होते हैं जिनको वहां से मुक्त होने का इंतजार रहता है।

Jail Inmates

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भारत की जेलों की अक्सर जो छवि उभरकर आती है, उसमें गंदे और तंग कोठरियों में अमानवीय जीवन जी रहे कैदी होते हैं जिनको वहां से मुक्त होने का इंतजार रहता है। इसलिए कैदियों की एक मंडली का मंच पर उतरना और रवींद्रनाथ टैगोर के नाटक का मंचन करने के लिए उनकी तारीफ होना या कैदियों की चित्रकारी की कला के कद्रदानों द्वारा सराहना करना और प्रदर्शनी में हजारों रुपए में उनकी चित्रकारी का बिकना बेशक हैरान करने वाली बात है।

अपने जीवन में गलतियां करने वालों को सुधरने का दूसरा मौका देने के मकसद से तिहाड़ जेल और पश्चिम बंगाल के बरहामपुर केंद्रीय सुधार गृह में कैदियों में सुधार लाने और उनको नई जिंदगी जीने को प्रेरित करने के लिए चित्रकारी और रंगकर्म के अभिनय के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कला और रंगकर्म को बदलाव का जरिया बनाते हुए दोनों जेलों के कैदियों को बंदीगृहों में सृजन की आजादी मिली हुई है। कैदी भी इसे महज समय बिताने का साधन नहीं बल्कि सुधारात्मक उपाय मानकर और कारावास की अवधि समाप्त होने पर इसे संभावित व्यवसाय के रूप अपनाना चाहते हैं।

कॉलेज ऑफ आर्ट के कला प्रशिक्षक सूरज प्रकाश तिहाड़ की जेल नंबर-4 में कैदियों को जून 2017 से हर सप्ताह कला का प्रशिक्षण दे रहे हैं। दरअसल जेल प्रशासल ने कुछ कैदियों को शौकिया तौर पर चित्रकारी व पेटिंग करते देखा था। प्रकाश ने बताया, उनको प्रोत्साहित करने के लिए अधीक्षक राजेश चौहान ने उनके प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षकों से संपर्क किया। महज मुट्ठीभर लोगों से शुरू कर यह समूह अब काफी बड़ा बन गया है और इसमें करीब 200 लोग जुड़ गए हैं और दो साल से कम समय में 20 लोगों ने कला में निपुणता हासिल कर ली है।

आर्ट गैलरी से सुसज्जित तिहाड़ स्कूल ऑफ आर्ट ने अपनी स्थापना से लेकर अब तक 60 कलाकृतियां बेची हैं जिनसे पांच से छह लाख रुपये प्राप्त हुए हैं। प्रकाश के अनुसार, प्रत्येक कलाकृति की बिक्री से प्राप्त आधी रकम संबंधित कैदी के खाते में जमा करवा दी जाती है और बांकी कला संबंधी कार्यकलापों पर खर्च की जाती है। भारत कला महोत्सव में कैदियों की कलाकृतियों के प्रदर्शन के लिए एक बूथ है।

तिहाड़ की दीवारों पर अब अन्य कृतियों में सरस्वती, गणेश और बुद्ध के चित्र बनाए गए हैं जिन्हें अनुमति से देखा जा सकता है। कैदियों के कैलेंडर में अब योग, नृत्य और संगीत के कार्यक्रम भी शामिल हैं। रंगकर्म निर्देशक प्रदीप भट्टाचार्य जब 2006 में बहरामपुर कारावास में प्रदर्शन के लिए गए, उसी समय थिएटर थेरेपी के रूप में दूसरी पहल की शुरुआत हुई। उन्होंने देखा कि ***** के आधार पर विभाजित जेल की कोठरियों में रहने वाले कैदियों में कम लोग साक्षरत थे।

कारावास के महानिरीक्षक बी. डी. शर्मा के प्रस्ताव पर भट्टाचार्य ने कैदियों के साथ काम करना आरंभ किया जिनमें से अधिकांश को आजीवान कारावास की सजा मिली थी। निर्देशक और अभिनेताओं के साथ-साथ भोजन करने से उनके बीच जुड़ाव को मजबूती मिली और उनका हावभाव पूरी तरह बदल गया। उन्होंने कहा, रंगकर्म मेरा हथियार है। इससे इनलोंगों की जिंदगियां बदल गई हैं। उन्होंने अपराध किया है, लेकिन उनमें सुधार लाने में काफी सफलता मिली है।

इन कैदियों में कुछ जमीन के विवाद में संलग्न रहे हैं तो कुछ गुस्से में हत्या करने के मुजरिम हैं। भट्टाचार्य ने कहा कि वे जन्म से अपराधी नहीं थे, लेकिन अप्रत्याशित घटनाओं से वे अपराधी बन गए, इसलिए उनमें सरलता से सुधार आ गया। बहरामपुर रेपरेट्री थियेटर ने यहां नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के रंगमहोत्सव के दौरान गुरुवार को रवींद्रनाथ टैगोर लिखित नाटक रक्तकरबी का मंचन किया।

पूरे भारत में टैगोर की तीन रचनाओं का 50 से अधिक बार मंचन करने के बाद अब मंडली के कलाकार जेल से मुक्त होने पर भी रंगकर्म से जुड़े रहना चाहते हैं। कैदी कलाकार अभिनेता सपन मेहना ने कहा, रंगकर्म से मानसिक शांति मिलती है। जब मैं अभिनय करता हूं तो मुझे सारे तनावों से छुटकारा मिलता है। नाटक के एक मुख्य किरदार बुद्धदेव मेटा ने कहा, जब मुझे आजीवन कारावास की सजा मिली तो मेरे चारों तरफ घना अंधेरा था और मैं सोचता था कि मेरी जिंदगी समाप्त हो गई है, लेकिन जब निर्देशक ने मुझे रंगकर्म के लिए प्रोत्साहित किया तो मुझे साथ जीवन जीने का एक नया मंच मिल गया। मैं अब इसे खोना नहीं चाहता हूं।

मेटा ने कहा कि नाटक में नंदिनी का किरदार निभाने वाली कलाकार उनकी साथी बन गई है और उनको नया संसार मिल गया है और आजीविका चलाने के लिए भट्टाचार्य ने उनको नई राह प्रदान की है। उन्होंने गर्व से कहा कि जेल से मुक्त होने के बाद भी वह रंगकर्म से जुड़े रहना चाहते हैं।

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