
अमर शहीद बाल मुकन्द बिस्सा की महाप्रयाण यात्रा में उमड़ पडे थे शहरवासी,अमर शहीद बाल मुकन्द बिस्सा की महाप्रयाण यात्रा में उमड़ पडे थे शहरवासी,अमर शहीद बाल मुकन्द बिस्सा की महाप्रयाण यात्रा में उमड़ पडे थे शहरवासी
जोधपुर. वर्ष 1908 में पीलवा गांव में एक साधारण पुष्करणा ब्राह्मण परिवार में जन्में बालमुकुंद बिस्सा की प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। बंगाल के क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वालों के संपर्क में आने से बिस्साजी में देशभक्ति की भावना जाग्रत हुई। सन् 1934 में वे जोधपुर चले आए। राजस्थान चरखा संघ से खादी की एजेन्सी लेकर खादी संघ की स्थापना की। शहर के मुख्य गांधी बाजार में खादी की दुकान लगाई जो देशभक्तों के मिलने का केन्द्र बना। सही मायने में बिस्साजी एक रचनात्मक संदेशवाहक थे और खादी भंडार एक समन्वय सम्पर्क केन्द्र था जहां सभी प्रकार की राजनैतिक गतिविधियो की सूचना प्राप्त हो जाती थी। उस जमाने में खादी को राज्य सरकार की नजरों में राजद्रोही माना जाता। उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए जयनारायण व्यास के नेतृत्व में 26 मई 1942 को सत्याग्रहियों का जेल भरो आंदोलन तीव्र गति से प्रारंभ हुंआ तब भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत मारवाड लोक परिषद के आंदोलन में बालमुकुंद बिस्सा को गिरफ्तार कर जोधपुर सेंट्रल जेल में नजरबंद कर दिया गया। सेन्ट्रल जेल में उन्होंने भूख हडताल आरंभ कर दी। इस दौरान जेल में उनका स्वास्थ्य गिरने लगा और लू का प्रकोप हो गया। जेल अधिकारियों की ओर से समूचित चिकित्सा व्यवस्था नहीं होने से 18 जून 1992 को उनका रक्तचाप गिरने लगा । खराब स्थिति को देखते हुए विण्डम हॉस्पीटल (वर्तमान में महात्मा गांधी अस्पताल) भेजा वहां पर पुलिस के पहरे में नजरबंद राजनैतिक बंदी का दुखद निधन हो गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए हजारों की संख्या में जनता उमड पडी। जनता ने तय किया गया शहीद बिस्सा की अंतिम यात्रा शहर के मुख्य बाजारों से होते हुए शमशान घाट ले जाएंगे परन्तु प्रशासन ने सभी मुख्य प्रवेश द्वारों पर भारी पुलिस बल तैनात कर निषेधाज्ञा लगा दी। शव यात्रा ज्योंही सोजतीगेट पहुंची हजारों की तादाद में जनता ने देशभक्ति के नारे शुरू करने पर लाठी चार्ज में कई व्यक्ति घायल हो गए। अंतिम यात्रा पांच मील का सफर कर श्मशान पहुंची ।
मूर्ति पर माल्यार्पण तक की सुविधा नहीं
जालोरीगेट सर्किल पर देशभक्त शहीद बिस्सा की मूर्ति पर शहरवासी हर साल 19 जून को श्रद्धांजलि अर्पित करते है। लेकिन मूर्ति तक पहुंचकर माल्यार्पण करने जैसी की कोई सुविधा या पाथ नहीं बना है। शहीद बिस्सा के पौत्र सुरेश बिस्सा ने बताया की जालोरी गेट से एमजीएच रोड का नामकरण शहीद बालमुकुंद बिस्सा मार्ग करने की घोषणा की गई लेकिन आज तक नामकरण नहीं हो सका है। पाल रोड शास्त्रीनगर में नामकरण पट्टिका टूटे एक साल बीत चुका है।
Published on:
14 Aug 2020 11:49 pm
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