
नि:शक्त अभ्यर्थियों को राहत के आदेश पर खंडपीठ की रोक
जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एक पैर में नि:शक्तता के कारण शरीर के अन्य हिस्से पर होने वाले प्रभाव को शारीरिक अक्षमता मानते हुए नियुक्ति से इनकार करने को न्यायोचित नहीं मानने वाले एकलपीठ के आदेश पर रोक लगा दी है।
मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महांति तथा न्यायाधीश विनित कुमार माथुर की खंडपीठ ने राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई के बाद अंतरिम आदेश पारित किया। सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता करणसिंह राजपुरोहित तथा सहयोगी रजत अरोड़ा ने पैरवी करते हुए एकलपीठ के आदेश को चुनौती दी। पिछले वर्ष दिसंबर में नर्स ग्रेड द्वितीय और महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता भर्ती को लेकर दायर याचिकाओं को मंजूर करते हुए एकलपीठ ने कहा था कि लंबे समय तक एक पैर में 40 प्रतिशत से अधिक नि:शक्तता यदि किसी के रहती है तो दूसरे पैर अथवा शरीर के अन्य हिस्सों पर स्वाभाविक रूप से उसका प्रभाव पड़ेगा। दूसरे पैर अथवा शरीर के अन्य हिस्से पर आई इस सूक्ष्म नि:शक्तता के आधार पर याचिकाकर्ताओं को नियुक्ति के लिए अयोग्य मानना उन्हें लोक सेवाओं में समान अवसर से वंचित करना होगा। एकलपीठ ने यह भी स्पष्ट किया था कि राज्य सरकार के मेडिकल बोर्ड से विधिवत जारी नि:शक्तजन प्रमाण पत्र ही नियुक्ति के लिए मान्य है। जब तक नि:शक्तजन प्रमाण पत्र उचित विधिक प्रक्रिया के माध्यम से निरस्त नहीं किया जाता है, तब तक उसे नहीं मानना विधिसम्मत नहीं है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने दोनों भर्तियों की नि:शक्तजन वर्ग की वरीयता सूची संशोधित कर याचिकाकर्ताओं को चयन सूची में उचित स्थान देने के आदेश दिए थे।
Published on:
13 Apr 2021 07:22 pm
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