केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) ने प्रदेश के कृषि जलवायु जोन को नए सिरे से परिभाषित करके रिपोर्ट तैयार की है।
गजेंद्र सिंह दहिया
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बहुत बड़े स्तर पर देखते हुए केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) ने प्रदेश के कृषि जलवायु जोन को नए सिरे से परिभाषित करके रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें जोन पहले की तरह 10 ही रखे गए हैं, लेकिन जोन में आने वाले जिले और क्षेत्र बदल गए हैं।
इससे कृषि नीति निर्धारण करने, फसल पैटर्न, सिंचाई, एमएसपी खरीद जैसे निर्णयों में बड़ा बदलाव आएगा। काजरी ने इसकी रिपोर्ट मुख्य सचिव को भेजकर इसे नीतिगत तौर पर लागू करने का सुझाव दिया है। यह अध्ययन काजरी के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. डीवी सिंह ने किया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 1979 में प्रदेश को 10 कृषि जलवायु जोन में बांटा था। रिपोर्ट के अनुसार अब जैसलमेर से अधिक रेगिस्तानी जिला बीकानेर है और जयपुर की जलवायु सीकर-झुंझनूं जैसी हो गई है।
| जोन / क्षेत्र | पुराने क्षेत्र / जिले | नए प्रमुख जिले |
|---|---|---|
| पश्चिमी शुष्क क्षेत्र | बाड़मेर, जोधपुर का कुछ हिस्सा | बाड़मेर, जालोर |
| सिंचित क्षेत्र | श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ | श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ |
| शुष्क कुछ सिंचित | बीकानेर, जैसलमेर, चूरू | बीकानेर, चूरू |
| आंतरिक ड्रेनेज ड्राईजोन | नागौर, सीकर, झुंझुनूं | सीकर, झुंझुनूं, जयपुर |
| लूणी बेसिन क्षेत्र | जालोर, पाली, सिरोही | अजमेर, पाली, सिरोही शहर, रेवदर, शिवगंज |
| शुष्क व अर्द्ध शुष्क क्षेत्र | नया जोन | जोधपुर, नागौर, जैसलमेर |
| बाढ़ प्रभावित क्षेत्र | अलवर, धौलपुर, करौली, भरतपुर, सवाई माधोपुर | इन 5 के अलावा टोंक व अजमेर भी शामिल |
| उप-नमी युक्त क्षेत्र | उदयपुर, सिरोही, भीलवाड़ा, चित्तौड़ | उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, सिरोही (केवल आबू रोड व पिण्डवाड़ा) |
| नमी युक्त क्षेत्र | डूंगरपुर, बांसवाड़ा | डूंगरपुर, बांसवाड़ा |
| नमी युक्त हाड़ौती क्षेत्र | कोटा, झालावाड़, बारां, बूंदी | कोटा, बारां, बूंदी, झालावाड़, प्रतापगढ़ |
राजस्थान की अधिकांश भूमि शुष्क और अर्ध-शुष्क है, जहां कृषि पूरी तरह से मौसमी वर्षा पर निर्भर है। जलवायु परिवर्तन के चलते पारंपरिक फसल चक्र प्रभावित हो रहे हैं, जिससे किसानों की आय और खाद्य सुरक्षा पर संकट उत्पन्न हो सकता है। ऐसे में काजरी का यह वैज्ञानिक अध्ययन राज्य सरकार के लिए नीति निर्धारण का मजबूत वैज्ञानिक आधार बन सकता है।
-डॉ. ओपी यादव, पूर्व निदेशक, काजरी
यह अध्ययन नीति-निर्धारण का नया खाका है। इससे कृषि विभाग, सिंचाई योजनाएं, बीज वितरण, फसल बीमा और अनुदान योजनाओं में बदलाव आएगा।
-डॉ. पी सांतरा, प्रधान वैज्ञानिक, काजरी