
जोधपुर के बासनी औद्योगिक क्षेत्र में जिसका जितना रसूख, उतना ही उसका कब्जा
बासनी (जोधपुर).
जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत बासनी औद्योगिक क्षेत्र में सटीक बैठती है। यहां की सड़कों पर रसूख इस कदर हावी है कि जिसको जितनी जगह मिली उसने उतनी ही सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया। नियम कायदों की परवाह शायद अतिक्रमण करने वालों को नहीं है। इसी का नतीजा है कि बासनी की सड़कों पर कई उद्योगों का सामान रखा जा रहा है। यह भी तब जब हाईकोर्ट की ओर से लगातार जेडीए व नगर निगम को सरकारी जगहों पर, सड़क किनारे हो रहे अतिक्रमण को हटाने के लिए पाबंद किया जा रहा हो। इसके बावजूद बासनी क्षेत्र की सड़कों पर धड़ल्ले से कई उद्योगों की ओर से अतिक्रमण किया जा रहा है। जिससे यहां से निकलने वाले वाहन चालकों व राहगीरों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं रीको के अफसर इन पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।
सड़कों पर रखे हैं कंटेनर
अतिक्रमण करने वालों का दुस्साहस इस कदर बढ़ गया है कि उन्हें प्रशासन का कोई भय नहीं है। शायद प्रशासन भी इन्हें भय का अहसास करवाने में नाकाम साबित हो रहा है। परिणामस्वरुप अब विदेशों तक निर्यात होने वाले उत्पादों को भरकर ले जाने वाले कंटेनर मुख्य मार्गों की सड़कों पर ही रखे जा रहे हैं। तीस से चालीस फीट तक के कंटेनर सड़क का आधा हिस्सा कब्जा रहे हैं। जबकि यहां से रीको के भी अफसर गुजरते हैं, लेकिन उद्योगों के रसूख के आगे वो भी कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठा पा रहे हैं। नियमानुसार इन कंटेनर को कारखाने के अंदर रखने का प्रावधान है। जरूरी होता है।
बाहरी राज्यों से आ रहा करोड़ों का माल
औद्योगिक क्षेत्र में बाहरी राज्यों से पुराने सामान को लाकर सड़क पर बेचने का प्रचलन कई वर्षों से चल रहा है। ऐसे व्यापारी बिना किसी नियमों का पालन किए लाखों रुपए की कीमत का पुरातात्विक सामान अन्य राज्यों से लाकर बेच रहे हैं। इन व्यापारियों के पास कई तरह के मिलिट्री बॉक्स हैं तो कहीं पर आदिवासी जीवन शैली से संबंधित सामान भी है। जिन्हें यहां के व्यापारी खरीद कर विदेशों में बेच रहे हैं।
लेकिन पुरातत्व विभाग भी मौन है।
ढाबे वालों ने भी जमाया कब्जा
कई उद्योगों की ओर से किए जा रहे अतिक्रमण के बाद रही सही कसर ढाबे, केबिन वालों ने पूरी कर दी है। बासनी क्षेत्र में लगभग सभी गलियों में मोड़ पर भोजनालय खुल गए हैं। जो अतिक्रमण कर बरसों से सरकारी भूमि पर डटे हैं। इन ढाबों में न तो खाद्य विभाग की ओर से जारी किया जाने वाला फूड लाइसेंस है, न गुणवत्तापूर्ण भोजन। बावजूद यहां कार्य करने वाले श्रमिक मजबूरी में इन ढाबों पर आकर खाना खाने का मजबूर हैं। इन ढाबों पर गुणवत्तापूर्ण खाने के अभाव के चलते कई बार श्रमिक बीमार भी पड़ जाते हैं।
Published on:
28 May 2018 07:02 pm
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