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सरकारी सहायता प्राप्त प्राइवेट कॉलेज व स्कूल भी आरटीआई के दायरे में

- राज्य सूचना आयोग का अहम फैसला- राज्य से रियायती भूमि अथवा वित्त पोषित होने पर जनता को देनी होगी सूचना  

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जोधपुर. सरकारी सहायता प्राप्त प्राइवेट कॉलेज और स्कूलों को अब जनता को सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के अंतर्गत सूचना उपलब्ध करवानी होगी। राजस्थान राज्य सूचना आयोग ने एक अहम फैसला देते हुए कहा है कि राज्य से सहायता प्राप्त करने वाले निजी संस्थान आरटीआई के तहत लोक प्राधिकरण की परिधि में आते हैं। आयोग ने जोधपुर की लाचू मेमोरियल कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी को 21 दिवस की अवधि में अपीलार्थी को चाही गई सूचना उपलब्ध करवाने के आदेश दिए हैं।

अपीलार्थी रूपल माथुर ने दो बिन्दुओं की सूचना चाही थी। इसके जवाब में प्रत्यर्थी ने यह कहते हुए सूचना देने से इनकार किया कि प्रत्यर्थी का कॉलेज एक प्राइवेट संस्थान है तथा उसे राज्य सरकार की ओर से कोई वित्तीय सहायता प्राप्त नहीं होती। इस कारण वह सूचना का अधिकार के दायरे में नहीं आता। सुनवाई के दौरान अपीलार्थी ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा कॉलेज को भूमि का आवंटन हुआ है। सुनवाई के बाद सूचना आयुक्त लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने अपने फैसले में साफ कहा कि संस्था ने राज्य से प्रचलित मूल्य रियायती दर पर भूमि प्राप्त की है। इस कारण कहा जा सकता है कि संस्था ने राज्य से सहायता प्राप्त की है। ऐसे में प्रत्यर्थी संस्थान अधिनियम की धारा 2(एच) के तहत लोक प्राधिकरण की परिधि में आती है, भले ही प्रत्यर्थी की संस्थान राज्य की परिभाषा में नहीं आती। उक्त आलोक में प्रत्यर्थी कॉलेज को 21 दिवस की अवधि में अपीलार्थी द्वारा चाही गई सूचनाएं पंजीकृत डाक से भिजवाने के आदेश दिए गए।

शीर्ष न्यायालय ने दी है व्यवस्था
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2(ज)(घ)(दो) के तहत वे सभी गैरसरकारी संगठन भी लोक प्राधिकरण की श्रेणी में आते हैं, जो सरकार द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई समुचित निधियों द्वारा वित्तपोषित है। देश के शीर्ष न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने डीएवी कॉलेज ट्रस्ट एण्ड मैनेजमेंट सोसायटी एवं अन्य बनाम डायरेक्टर ऑफ पब्लिक इन्सट्रेक्शन व अन्य के मामले में अहम न्यायिक दृष्टांत में इसकी विस्तृत व्याख्या की है। जिसके बाद समुचित रूप से वित्तपोषित संस्थान अब आरटीआई के दायरे में आ गए हैं।
- रजाक के. हैदर, आरटीआई विशेषज्ञ एवं एडवोकेट राजस्थान हाईकोर्ट