जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के लेह स्थित ठंडे मरुस्थल में खोले गए क्षेत्रीय केंद्र में वैज्ञानिकों की अब सेना के जवानों की तरह टाइम बाउंड ट्रांसफर होगी। उन्हें एक-एक साल के लिए भेजा जाएगा। जोधपुर आए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उप महानिदेशक (डीडीजी) डॉ एसके चौधरी ने पत्रकारों को बताया कि वैज्ञानिक सामाजिक व पारिवारिक कारणों के कारण लेह जाने से कतरा रहे हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों के लिए नए मॉड्यूल पर काम किया जा रहा है। काजरी के लेह स्थित केंद्र में 8 साल बाद भी अभी तक केवल एक वैज्ञानिक कार्यरत था, जिसकी संख्या बढ़ाकर हाल ही में तीन की गई है, जबकि काजरी में करीब 100 वैज्ञानिक कार्यरत हैं।
इस साल देश के कृषि विवि में नया पाठ्यक्रम
डॉ चौधरी ने कहा कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए आईसीएआर की ओर से कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी की रिपोर्ट के बाद 2 महीने में नया पाठ्यक्रम सामने आ जाएगा जो अधिक रोजगारोन्मुखी होगा। देश में वर्तमान में 71 कृषि विश्वविद्यालय हैं।
पराली का विकल्प मौजूद, पंजाब के किसान नहीं मानते
पत्रकारों द्वारा उत्तर भारत में पराली से वायु प्रदूषण की समस्या के संबंध में प्रश्न पूछने पर डॉ चौधरी ने कहा कि पराली से निपटने के लिए आईसीएआर की दो नई टेक्नोलॉजी है। हरियाणा के किसान इस पर खूब कार्य कर रहे हैं जिससे वहां से पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है जबकि पंजाब ने पिछले साल अपना पुराना रिकॉर्ड भी तोड़ दिया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी नई तकनीक के कारण पराली जलाने में कमी आई है। उन्होंने कहा कि इसको रोकने के लिए राज्य सरकार के स्तर पर पॉलिसी निर्माण की जरुरत है। डॉ चौधरी अपने दो दिवसीय दौरे के तहत शनिवार को काजरी पहुंचे थे।