एक परिचय वीर गुमान सिंह का तिंवरी के ठिकानेदार राजपुरोहित सेवड़ रण सिरमौड़ अनवी अखेराजोत वीर गुमान सिंह वीर दौलत सिंह के पुत्र थे ।इन की राज्य सेवाएँ मारवाड़ के महाराजा विजय सिंह से लेकर महाराजा मान सिंह के समय तक रही। यह अपने वंश के वीरोचित गुणों के कारण मारवाड़ के महाराजाओं के अति विशिष्ट एवं विश्वास पात्र सरदारों में शुमार रहे। वि.सं. 1872 आसोज सुदी अष्टमी को नवाब मीर खां पठान की सेना मेहरानगढ़ किले पर पहुची थी। इस दौरान तिंवरी के वीर गुमान सिंह भी गोली लगने से घायल हो गए फिर भी अपनी वीरता व साहस का परिचय देते हुए अपने कमर पर बंधी कटार निकालकर दुश्मनो पर अकेले ही टूट पड़े और मुख्य हमलावर को मौत के घाट उतार बदला लिया। थक हारकर दुश्मनो को पीछे हटना पड़ा । इस दौरान वीरता पूर्वक युद्ध करते हुए किले की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए। उनकी वीरता और स्वामीभक्ति को देख महाराजा मानसिंह भावविभोर हो गए तथा उनका दाह संस्कार गढ़ की तलहटी पर स्थित रासोलाई नाडी पर करवाया। जहाँ बना स्मारक आज भी गुमान सिंह के शौर्य, स्वामीभक्ति तथा वीरता का यशोगान करता है।