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इमारत और रास्ते ही नहीं, यहां है चलता फिरता संग्रहालय

भीतरी शहर सिर्फ इमारतों और रास्तों का समूह नहीं है, यह एक जीवंत संग्रहालय है।

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जोधपुर. भीतरी शहर सिर्फ इमारतों और रास्तों का समूह नहीं है, यह एक जीवंत संग्रहालय है। जहां हर गली, हर गेट और हर बाजार में संस्कृति बसती है। शहर में बसे हुए कई मोहल्लों और स्थानों के नाम केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक स्मृतियों के प्रतीक हैं। घोड़ों की टाप, कबूतरों की गुटरगूं और नवचौकिया की विविधता। यह सब जोधपुर की आत्मा में बसा हुआ है।

नवचौकिया

नवचौकिया नौ अलग-अलग मोहल्ले के मिलन का बिंदु है। यहां की हथाई पर बैठे हुए हीरालाल व्यास ने बताया कि नवचौकिया विविध संस्कृतियों और समुदायों का मिलन स्थल रहा है। यहां की हर गली में अपना त्योहार, अपनी परंपरा आज भी कायम है। इसलिए इस इलाके को जोधपुर का सांस्कृतिक गलियारा भी कहते हैं।

नीम चौक

नीम चौक हालांकि एक छोटा सा मोहल्ला है, पर शहर का सांस्कृतिक प्रतीक भी है। इसका नाम वहां लगे एक विशाल नीम के पेड़ से पड़ा था। सिद्धार्थ व्यास बताते हैं कि यहां नीम की छांव तले बैठकर लोग बातें करते, पापड़ बेलते और तीज-त्योहार मनाते थे। आज नीम भले छोटा हो गया हो, लेकिन चौक की आत्मा लोगों के व्यवहार में है। यहां एक कुआं भी है, जिससे लोग अपनी प्यास बुझाते हैं।

घोड़ों का चौक

घोड़ों का चौक निवासी ओमप्रकाश भाटी बताते हैं कि यह स्थान कभी जोधपुर के शाही घुड़सालों के समीप था। यहां से घोड़े सवार होकर महलों या किलों तक जाते थे। माना जाता है कि यहां कभी घोड़ों का बड़ा अस्तबल होता था। जहां शाही सेना के घोड़ों की ट्रेनिंग होती थी। आज भले ही यहां घोड़े न हों, पर चौक की गलियों में अब भी राजस्थानी वीर रस और शौर्य की झलक मिलती है।

कबूतरों का चौक

पहले यहां हर छत पर एक संदेशवाहक बैठा रहता था। यानि कबूतर। यह इलाका कभी कबूतरों के लिए मशहूर था। यहां करीब 70 वर्षों से रहने वाले मोतीलाल व्यास बताते है कि लोग यहां पर कबूतरों का पालन-पोषण करते थे। यह चौक आज भीपारंपरिक माहौल लिए हुए है, जहां सुबह-शाम कबूतरों की गुटरगूं सुनाई देती है।