सवारी गाड़ियों को या तो स्पेशल का दर्जा दे दिया और कुछ ट्रेनों को सवारी गाड़ी से एक्सप्रेस बना किराया बढ़ा दिया
जोधपुर। रेलवे बोर्ड ने आज से करीब 3 साल पहले कोरोना काल में लोकल ट्रेनों को एक्सप्रेस का दर्जा देकर ट्रेनों के नम्बर व न्यूनतम किराया बढ़ा दिया था। लोकल ट्रेनों के नम्बर के आगे ’0’ लगाकर उन्हें एक्सप्रेस बनाया गया और लोकल ट्रेनों में एक्सप्रेस के नाम पर यात्रियों की जेबें ढीली की जाने लगी। रेलवे ने आज करीब तीन साल बाद भी इन ट्रेनों के नम्बर से आगे ’0’ नहीं हटाया और यात्रियों से न्यूनतम बढ़ा हुआ किराया ही लिया जा रहा है।
इससे समाज के अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्ति का ध्यान रखने के दावा यहां खोखला साबित हो रहा है। सरकार ने कोरोना काल में आपात स्थिति को अवसर बनाते हुए ट्रेनों में न्यूनतम किराया दस रुपए से बढ़ाकर तीस रुपए कर दिया था, जो आज करीब तीन साल बाद भी वापस कम नहीं किया है।
पहले बुजुर्गों को 40 से 50 फीसदी की थी छूट
रेल किराए में किसी भी श्रेणी का टिकट लेने पर बुजुर्ग महिला को 50 फीसदी और बुजुर्ग पुरुष को 40 फीसदी की छूट दी गई थी। इसका लाभ लेने के लिए महिलाओं की न्यूनतम आयु 58 वर्ष और पुरुषों की न्यूनतम आयु 60 वर्ष होनी चाहिए थी।
न्यूनतम किराया, जो दो से तीन गुना तक बढ़ गया
कहां से कहां तक
पहले-अब
जोधपुर-बालोतरा 30-55
जोधपुर-रेण 30-60
जयपुर-रेण 45-75
रेण- मेड़ता रोड 10-30
(किराया रुपए में)
पैसेंजर ट्रेनें हो गई स्पेशल और तीन गुना हो गया न्यूनतम किराया
सवारी गाड़ियों को या तो स्पेशल का दर्जा दे दिया और कुछ ट्रेनों को सवारी गाड़ी से एक्सप्रेस बना किराया बढ़ा दिया, जबकि यह ट्रेनें पैसेंजर ट्रेनों की तरह सभी स्टेशनों पर ठहराव करती है। उदाहरण के लिए पहले मेड़ता रोड-रतनगढ़ सवारी गाड़ी में मेडता रोड से रेण का किराया दस रुपए था, जो अब तीन गुना बढ़कर तीस रुपए हो गया। इसी प्रकार, जोधपुर-हिसार, जोधपुर-रेवाड़ी ट्रेनों में जोधपुर से रेण तीस रुपए किराया था, जो बढ़कर साठ रुपए हो गया । उत्तर पश्चिम रेलवे जयपुर मुख्य जनसंपर्क अधिकारी कैप्टन शशि किरण का कहना है कि ट्रेनों के किराया कम-ज्यादा करने का निर्णय रेलवे बोर्ड से ही होगा।
छोटे गांवों-स्टेशनों के यात्री ज्यादा परेशान
रेलवे की ओर से ट्रेनों का भाड़ा बढ़ाए जाने के बाद विशेषकर छोटे स्टेशनों के यात्रियों पर आर्थिक भार पड़ रहा है। छोटे स्टेशनों व गांवों के यात्री, जो शहर व अपने गांव अप-डाउन यात्रा करते हैं, वे ज्यादा परेशान हैं। छोटे-छोटे स्टेशनों के यात्रियों के निजी साधनों से आसपास के ट्रेनों के ठहराव वाले स्टेशनों पर पहुंचकर ट्रेन पकड़ रहे हैं।