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एबीवीपी के पहले प्रत्याशी व छात्रसंघ अध्यक्ष थे राजकुमार ओझा, छात्र राजनीति सहित आंदोलनों में निभाई भूमिका

विवि में सबसे कम उम्र के छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने का भी रिकॉर्ड इनके ही नाम है।

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जोधपुर. जोधपुर संभाग में भी अब छात्र राजनीति को शोर हो रहा है। सूर्यनगरी में विभिन्न संगठनों की ओर से चुनाव प्रचार-प्रसार जोरों पर है। छात्र राजनीति के किस्से हमेशा ही रोचक रहे हैं। इसमें अग्रणी रहे राजकुमार ओझा को आज भी याद किया जाता है। छात्रसंघ चुनावों में बनाए गए रिकॉड्र्स में ओझा एक मिसाल हैं। इसमें सर्वाधिक चुनाव जीतने वाले ओझा एबीवीपी के प्रथम प्रत्याशी व इस बैनर से लडकऱ जीतने वाले प्रथम छात्रसंघ अध्यक्ष रहे हैं। यही नहीं सिंडीकेट सदस्य के तौर पर निर्वाचित होने वाले प्रथम छात्रसंघ अध्यक्ष रहे हैं। जोधपुर विवि से बीएससी व एलएलबी की शिक्षा प्राप्त ओझा स्कूली स्तर से ही छात्र राजनीति में सक्रिय रहे थे। 1972-73 में ओझा तत्कालीन जोधपुर विवि (अब जेएनवीयू) के विज्ञान संकाय के उपाध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए। 1973-74 में वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद पर भारी मतों से निर्वाचित हुए। 1973-1975 तक सीनेट सदस्य व अकादमिक परिषद् के सदस्य चुने गए। 1974-75 में छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर भारी मतों से निर्वाचित हुए थे। जानकारों के अनुसार विवि में सबसे कम उम्र के छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने का भी रिकॉर्ड इनके ही नाम है।

जेपी आंदोलन में निभाई भूमिका

छात्र जीवन में अपनी लोकप्रियता के चलते ओझा ने जेपी आंदोलन के दौरान प्रदेश में आंदोलन का नेतृत्व किया था। राम जन्मभूमि आंदोलन में भी सक्रियता निभाई थी। 1973-75 तक छात्र राजनैतिक जीवन में भारत सरकार की ओर से उन्हें उत्तर रेलवे डिवीजन रेलवे यूजर्स सलाहकार समिति का सदस्य मनोनीत किया गया था। साथ ही केन्द्रीय मरू अनुसंधान सलाहकार समिति के भी सदस्य रहे थे। 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना से लगातार 1994 (मरणोपंरात) तक भाजपा के शहर जिला महामंत्री के पद पर कार्य किया था। राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के जोधपुर से अन्यत्र स्थानान्तरण के दौरान भी ओझा ने संघर्ष किया था।

मार्ग का नामकरण ओझा के नाम


प्रतिभाशाली ओझा के व्यक्तित्व की स्मृति को बनाए रखने के लिए भीतरी क्षेत्र के वार्ड संख्या 14 स्थित चांदपोल पुलिस चौकी से निगम के उप कार्यालय तक के मार्ग का नामकरण उनके नाम पर किया गया है। निगम की साधारण सभा में गत फरवरी माह में इसे सर्वसम्मति से पारित किया गया था। 1978 से एडवोकेट रहे ओझा ने अपने जीवन में खान श्रमिकों के हितों के लिए कार्य किए और उनके कल्याण व विभिन्न आंदोलनों में साथ निभाया। जीवनपर्यन्त ओझा ने एबीवीपी में मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हुए कई प्रत्याशियों को विजय दिलवाई।