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भाखरवाला गांव में मिले धांधल राठौड़ों के दुर्लभ शिलालेख

ध्वस्त होती कलात्मक छतरियों की सुध लेने वाला नहीं

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भाखरवाला गांव में मिले धांधल राठौड़ों के दुर्लभ शिलालेख

इतिहास की कई नई जानकारियां

जोधपुर.

जोधपुर से 15 किलोमीटर दूर भाखरवाला गांव में धांधल राठौड़ों के दुर्लभ शिलालेख मिले हैं। लावारिस पड़े ऐतिहासिक शिलालेखों के आधार पर शोध किया जाए तो जोधपुर से जुड़े इतिहास की कई नई जानकारियां सामने आ सकती है।

राजस्थानी शोध संस्थान के अधिकारी व शोधकर्ता डॉ. विक्रमसिंह भाटी के अनुसार पूर्व में धांधल राठौड़ों के प्रमुख ठिकानों में से एक इस गांव को रोयला या रोहिला के नाम से जाना जाता था। यहां धांधल सूरतसिंह, धांधल महेशदास, धांधल केसरीसिंह की भव्य कलात्मक छतरियां और देवली भी है। सूरतसिंह की भव्य, कलात्मक छतरी ध्वस्त होने के कगार पर है। लेकिन पुरातत्व या पर्यटन विभाग की ओर से किसी ने सुध नहीं ली है।

सूरतसिंह के पुत्र महेशदास की 20 खम्भों की छतरी में लगे शिलालेख के अनुसार छतरी निर्माण में पांच हजार एक रुपए की लागत आई थी। धांधल केसरीसिंह की छतरी जोधपुर के तत्कालीन शासक मानसिंह के कालखण्ड से ही है। उनका नाम विश्वास पात्र सेनानायकों में अव्वल था। उस समय के एतिहासिक ग्रंथों में इनका नाम पांच प्रमुख मुसाहीबों के तौर पर दर्ज है। कविराजा बांकीदास ने कई डिंगल गीतों में इन्हें ‘पाल रौ पौतरौ’ अर्थात् ‘पाबूजी का पोता’ और धांधल वंश का सूर्य बताया है।

छतरियों की देवलियां संगमरमर से और गुम्बज ईंटों से बने हैं। कुछ छतरियां 10 खम्भों की हैं। डॉ. भाटी के अनुसार धांधल राठौड़ों का इतिहास गरिमामयी रहा। तत्कालीन जोधपुर राज्य की सेवा में रहते हुए ये प्रधान, मुसाहीब, किलेदार, कोतवाल, रसोड़े और सुतरखाने के दरोगा जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे।

मारवाड़ के तत्कालीन शासक अभयसिंह के समय धांधल सूरतसिंह को रोहिला का पट्टा मिला था। इन्हें केलावा खुर्द, भादराजून परगने के काकरिया, लोरोली और विरामा गांव भी ईनाम में मिले थे। लावारिस पड़े ऐतिहासिक शिलालेखों के आधार पर शोध किया जाए तो जोधपुर से जुड़े इतिहास की कई नई जानकारियां सामने आ सकती है।