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Right To Health Bill : प्राइवेट अस्पतालों ने आरजीएचएस-चिरंजीवी योजना में रोका इलाज

राइट टू हेल्थ बिल के संशोधित प्रारूप को स्वीकार लेने के बाद प्रदेश के सभी चिकित्सक संगठनों की जॉइंट एक्शन कमेटी भंग कर दी गई है, लेकिन इस बिल के संशोधित प्रारूप के विरोध में आंदोलन के लिए ऑल राजस्थान प्राइवेट हॉस्पिटल संघर्ष समिति गठित की गई है।

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right to health bill : प्राइवेट अस्पतालों ने आरजीएचएस-चिरंजीवी योजना में रोका इलाज

right to health bill : प्राइवेट अस्पतालों ने आरजीएचएस-चिरंजीवी योजना में रोका इलाज

प्राइवेट अस्पतालों ने आरजीएचएस-चिरंजीवी योजना में रोका इलाज
राइट टू हेल्थ बिल का विरोध : प्राइवेट हॉस्पिटल संचालकों की बैठक में बनाई आंदोलन की रणनीति

जोधपुर. राइट टू हेल्थ बिल के संशोधित प्रारूप को स्वीकार लेने के बाद प्रदेश के सभी चिकित्सक संगठनों की जॉइंट एक्शन कमेटी भंग कर दी गई है, लेकिन इस बिल के संशोधित प्रारूप के विरोध में आंदोलन के लिए ऑल राजस्थान प्राइवेट हॉस्पिटल संघर्ष समिति गठित की गई है। शनिवार शाम को शहर के प्राइवेट हॉस्पिटल संचालकों की बैठक में रात आठ बजे से बिल के विरोध में आरजीएचएस-चिरंजीवी योजना के तहत उपचार रोकने का फैसला किया है।जेएसी जोधपुर ने बैठक बुलाई। बैठक में आइएमए जोधपुर के अध्यक्ष डॉ. संजय मकवाना, सचिव डॉ. सिद्धार्थ लोढ़ा, उपचार के स्टेट सह संयोजक डॉ. कांतेश खेतानी तथा जोधपुर प्राइवेट हॉस्पिटल एसोसिएशन से डॉ. प्रदीप जैन व डॉ. प्रशांत विश्नोई सहित कई प्राइवेट हॉस्पिटल संचालक बैठक में शामिल हुए। बैठक में हुए निर्णय की जानकारी देते हुए डॉ. खेतानी ने बताया कि राज्य सरकार जब तक इस मुददे पर वार्ता के लिए नहीं बुलाती है, तब तक आरजीएचएस तथा मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना का बहिष्कार जारी रखेंगे।

वोट बैंक की राजनीतिउपचर के स्टेट सह संयोजक डॉ. कांतेश खेतानी ने बताया कि बिल के संशोधित प्रारूप में भी कई खामियां हैं। सभी सरकारी अस्पतालों में उपचार फ्री है। प्राइवेट हॉस्पिटल आरजीएस और चिरंजीवी योजना में ट्रीटमेंड कर रहे हैं, जो पहले ही कम है। संविधान और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार देश में राइज टू हेल्थ का पहले से ही सभी को हक है। किसी अस्पताल में आपात स्थिति में कोई ट्रीटमेंट से इनकार नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की राइट टू हेल्थ को लेकर सारी कवायद वोट बैंक की राजनीति से ज्यादा कुछ नहीं है।

संशोधित प्रारूप पर प्रमुख आपत्तियां

- इमरजेंसी की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। लिखा गया है कि रूल्स में परिभाषित होगी।

- दूसरे अस्पताल में पहुंचाने के बाद ही अस्पताल उपचार का भुगतान लेने का हकदार होगा।

- फ्री में इमरजेंसी ट्रीटमेंट की पात्रता भी रूल्स में परिभाषित होगी।

बिल को लेकर आशंका

- ओपीडी क्लिनिक के भी दायरे में लाने की आशंका।- डॉक्टर,-नर्सिंग स्टाफ, आयुर्वेद-यूनानी चिकित्सक भी इसके दायरे में आएंगे।

- डिलीवरी के दौरान जच्चा-बच्चा के लिए 'सेव दा लाइफ' शब्द से कानूनी कार्रवाई की आशंका।

मांग

- जिला एवं राज्य प्राधिकरण में आइएमए के साथ प्राइवेट हॉस्पिटल के प्रतिनिधि भी हों।